देहरादून: कॉर्बेट टाइगर रिजर्व में क्या अभी भी वन गुर्जर रह रहे हैं? इस सवाल का जवाब हां में है। जिस जंगल में इंसानों के पैदल चलने की मनाही के नियम लागू है वहां 28 परिवार रह रहे हैं और उनका जंगल के भीतर आना जाना बदस्तूर जारी है।
उत्तराखंड में 2013/14 में जंगलों से, खास तौर पर राजा जी टाइगर रिजर्व और कॉर्बेट टाइगर रिजर्व से आबादी को बाहर करने के दिशा निर्देश, नेशनल टाइगर कंजरवेशन अथॉर्टी (एनटीसीए) ने दिए थे। ताकि जंगल में बाघ सुरक्षित और संरक्षित रहे। जंगल में उस दौरान सबसे अधिक मुस्लिम वन गुर्जर ही रहा करते थे, उस समय .87 हैक्टेयर और पांच लाख रु प्रति परिवार देकर ,टाइगर रिजर्व से पहले 500 फिर करीब 2000 परिवारों को बाहर किया गया था।
इस प्रक्रिया के बावजूद कॉर्बेट टाइगर रिजर्व के झिरना ढेला रेंज में आज भी मुस्लिम गुर्जरों के 28 परिवार कैसे और क्यों रह रहे है ? ये बड़ा सवाल है। पहले कहा जाता था कि ये वनों में रहने वाले ये वन मुस्लिम गुर्जर मांस नहीं खाया करते थे, किन्तु जब से इनके बीच तब्लीगी जमात के लोग आने जाने लगे हैं तब से ये कट्टरवाद की तरफ हैं और कुर्बानी देकर मांस के सेवन भी करने लगे है। इनकी युवा पीढ़ी अब अपने पुश्तैनी कारोबार पशु पालन दूध व्यवसाय से विमुख होकर खनन और लकड़ी के अवैध कारोबार में लिप्त देखी जा रही है। इनके झालों में अब ट्रैक्टर जीपें डंपर देखे जा सकते हैं।
कुछ साल पहले आम पोखरा रेंज में एक हाथी मार कर उसके बेशकीमती दांत निकाल लिए गए ऐसे ही एक मामला राजा जी टाइगर रिजर्व के पास हुआ और इसमें बाघों को खाले बरामद की गई, इन दोनों मामलों में मुस्लिम वन गुर्जर पकड़े गए यानि ये बात साबित हुई कि मांस न खाने वाले और जंगल के रख वाले कहे जाने वाले वन गुर्जरों में अब वन्य जीव तस्कर भी हैं। ऐसी खबरों के बावजूद कॉर्बेट टाइगर रिजर्व के वन गुर्जरों की मौजूदगी अभी तक कैसे बरकरार है? ये बड़ा सवाल है।
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कॉर्बेट टाइगर रिजर्व में वन गुर्जरों के कुछ परिवार रह रहे हैं, मैंने कुछ माह पूर्व ही ज्वाइन किया है और इस बारे में रिपोर्ट तलब की है, वन गुर्जरों को एनटीसीए की गाइड लाइंस के अनुसार मुआवजा दे कर कॉर्बेट टाइगर रिजर्व से बाहर किए जाने की प्रक्रिया शुरू की गई है।
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