भारत के विदेश मंत्री ने बताया कि सेनाओं के कदम वापस लेने का 21 अक्तूबर को समझौता हुआ था। इसमें दो इलाकों, देपसांग और देमचोक में गश्त करने की बात की गई है। इसके बाद विचार किया जाएगा कि आगे क्या करना है। लेकिन इतना तो तय है कि इस घटनाक्रम से यह न माना जाए कि संबंध सामान्य हो गए हैं।
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और राष्ट्रपति शी जिनपिंग के बीच गत दिनों रूस में हुई मुलाकात के बाद से दोनों देशों के बीच लद्दाख में चल रहे सीमा तनाव में कुछ राहत के संकेत मिल रहे हैं। दोनों देश सेनाएं पीछे हटा रहे हैं। चीन ने वहां बनाए अस्थायी ढांचे हटाए हैं, तंबू हटाए हैं। पूर्वी लद्दाख सीमा पर सिर्फ दो स्थानों पर सेनाएं गश्त करेंगी। ये दो स्थान हैं देमचोक और देपसांग पॉइंट। बताया गया है कि कल यानी 29 अक्तूबर तक सेनाएं वर्तमान तैनाती बिन्दु से पीछे पहुंच जाएंगी। लेकिन इस बीच आया भारत के विदेश मंत्री जयशंकर का यह बयान भी बहुत कुछ संकेत करता है कि सेनाओं के पीछे हटने के ये अर्थ न लगाए जाएं कि सब कुछ ठीक है। यानी भारत पूरी तरह चौकन्ना है, क्योंकि चीन अपने कहे पर कम ही अमल करता है।
लद्दाख में सीमाओं पर किस देश के कितने सैनिक गश्त करेंगे, इसकी भी संख्या मर्यादित हुई है। लेकिन अभी यह साफ नहीं हुआ है कि सैनिकों की तादाद कितनी रहने वाली है। जानकारी के अनुसार, दोनों देश के सैनिक अप्रैल 2020 से पहली वाली पोजीशन में लौटने वाले हैं और बस उन्हीं इलाकों में गश्त जारी रखेंगे जहां तब ऐसी निगरानी रखी जाती थी। तनाव के ‘डी—एस्केलेशन’ के साथ ही कमांडरों के स्तरा की सीमा वार्ता भी चलती रहने वाली है।
गश्त को लेकर भारत और चीन के बीच जो ताजा समझौता हुआ है, उसके बारे में विदेश मंत्री जयशंकर का कहना है कि इसका उद्देश्य है, लद्दाख में आगे फिर गलवान जैसा तनाव न हो, इसके लिए पूर्व की स्थिति बनाना। जयशंकर ने साफ किया कि एलएसी की चौक्सी के लिए गश्त के बारे में चीन के साथ समझौता जरूर हुआ है, लेकिन इसका अर्थ यह न निकाला जाए कि हमारे दोनों देशों के बीच जो तनाव के बिन्दु थे, वे दूर हो गए हैं। यह जरूर है कि सेनाओं के कदम वापस लेने से सोच—विचार का वक्त मिल गया है।जयशंकर के इस वक्तव्य से विशेषज्ञों के मन में उठे उस सवाल का जवाब मिला है कि क्या माना जाए कि अब दोनों देशों के बीच संबंध सुधरने की ओर हैं?
जयशंकर ने इस तनाव कम करने की इस स्थिति तक पहुंचने के लिए भारतीय सेना को श्रेय दिया है। उनके अनुसार, हमारी सेना ने सोच से परे हालातों में बहादुरी के साथ काम करके दिखाया है उसकी का यह नतीजा है।
भारत के विदेश मंत्री ने एक कार्यक्रम में यह भी बताया कि सेनाओं के कदम वापस लेने का 21 अक्तूबर को समझौता हुआ था। इसमें दो इलाकों, देपसांग और देमचोक में गश्त करने की बात की गई है। इसके बाद विचार किया जाएगा कि आगे क्या करना है। लेकिन इतना तो तय है कि इस घटनाक्रम से यह न माना जाए कि संबंध सामान्य हो गए हैं। सेनाओं का कदम पीछे लेना तो अभी पहले चरण में है। लेकिन इसे भी पाने में हम कामयाब हुए हैं तो यह सेना और हमारी कूटनीति के कारण है।
शब्दों को बिना छुपाए जयशंकर यहां तक बोले कि दोनों देशों के बीच संबंधों के पटरी में आने में अभी और वक्त लगेगा। विश्वास को नए सिरे से कायम करना है तो इसमें वक्त लगता है। मोदी और जिनपिंग की रूस में ब्रिक्स शिखर सम्मेलन के दौरान हुई बातचीत में यही तय हुआ है कि दोनों देशों की वार्ता विदेश मंत्री और राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार स्तर पर जारी रहेगी। उसमें से आगे बढ़ने की राह निकाली जाएगी।
विदेश मंत्री जयशंकर का कहना है कि भारत ने स्वाभिमान से समझौता किए बिना इस स्थिति को पाकर दिखाया है। हमारी पूरी कोशिश यही रही कि अपनी बात को दमदारी से रखें और स्पष्टता से सामने पहुंचाएं। गत अनेक वर्षों से सीमा पर बुनियादी ढांचा खड़ा करने तक का ध्यान नहीं रखा गया लेकिन मोदी सरकार ने अब वहां प्रशंसनीय काम किया है। आज भारत 10 साल पहले के मुकाबले हर साल पांच गुना से ज्यादा संसाधन वहां खड़े कर रहा है। इसके अच्छे नतीजे निकले हैं। हम अपनी सेना को और बेहतर तरीके से तैनात कर पा रहे हैं।
टिप्पणियाँ