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मूल्यों को संजोए जनजातीय परिवार

केरल के वायनाड में वनवासियों के लगभग 50 बड़े परिवार हैं। एडथना परिवार उन्हीं में से एक है। इन परिवारों के तीन मुखिया होते हैं, जिनके पास अलग-अलग दायित्व होते हैं

by टी. सतीशन
Oct 28, 2024, 08:19 am IST
in भारत, संस्कृति, केरल, जीवनशैली
एडथना परिवार की महिलाएं एवं पुरुष सदस्य

एडथना परिवार की महिलाएं एवं पुरुष सदस्य

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ठंडी पहाड़ियों वाले वायनाड जिले में केरल की सबसे बड़ी वनवासी आबादी रहती है। जिले में इनकी जनसंख्या 1,51,443 है। इसके बाद इडुक्की (55,815), पलक्कड़ (48,972), कासरगोड (48,857) और कन्नूर जिले (41,371) हैं। वायनाड में वनवासियों के लगभग 50 बड़े परिवार हैं। ये मातृसत्तात्मक व्यवस्था का पालन करते हैं। उन्हीं में से एक है-एडथना परिवार। इस परिवार में तीन मुखिया होते हैं, जो पदानुक्रम में क्रमश: उदयक्करन, विधिक्करन और कुंथक्करन कहलाते हैं। इनका चुनाव परिवार के सदस्यों द्वारा किया जाता है।

परिवार के रोजमर्रा के खर्चे, कृषि जैसे कार्य उदयक्करन की देखरेख में होते हैं। परिवार की जिम्मेदारी लेने के बाद उदयक्करन सबसे पहले ईश्वर का आशीर्वाद प्राप्त करता है। परिवार का दूसरा मुखिया विधिक्करन कहलाता है, जो परिवार के सदस्यों के बीच विवादों का निपटारा करता है। तीसरे स्थान पर कुंथनक्करन होता है, जिसके पास धार्मिक और आस्था से जुड़े मामलों का दायित्व होता है। परिवार की कोई लड़की जब युवावस्था को प्राप्त करती है और रजस्वला होती है, तब एक बड़ा उत्सव मनाया जाता है, जो वैवाहिक कार्यक्रम या अंत्येष्टि से भी बड़ा होता है।

एक समय था, जब प्रत्येक वनवासी परिवार के पास 100 एकड़ से अधिक भूमि और 50 एकड़ धान के खेत होते थे। लेकिन भूमि सुधार कानून लागू होने के बाद प्रत्येक उप-परिवार के हिस्से में 5 एकड़ जमीन आई। वैसे तो एडथना परिवार में 100 से अधिक सदस्य हैं, लेकिन अब वे अलग-अलग घरों में हैं, जो इनके पैतृक आवास के आसपास ही हैं। लेकिन वे एक-दूसरे से मजबूती से जुड़े हुए हैं। खास बात यह है कि भले ही ये अलग-अलग रहते हैं, पर उनके मुखिया एक होते हैं।

इनके खेत बंटे नहीं हैं। ये साझा खेती करते हैं और त्योहारों के दौरान खाना बड़ी-सी साझी रसोई में बनता है। परिवार के सदस्य फर्श पर चटाई बिछाकर एक साथ बैठकर खाना खाते हैं। इसलिए वे अलग-अलग रहने के बावजूद किसी से अलग नहीं हैं। यही वजह है कि प्राय: उन्हें परिवार में किसी चुनौती का सामना नहीं करना पड़ता है। एक परिवार में सदस्यों की संख्या 23 है।

चंथु एडथना परिवार के वर्तमान उदयक्करन हैं। वे किसान हैं और हाल ही में उन्हें ‘कार्षका श्री’ पुरस्कार मिला है। यह एक प्रतिष्ठित पुरस्कार है, जो मलयाला मनोरमा प्रकाशन समूह द्वारा कृषि क्षेत्र से जुड़े लोगों को दिया जाता है। इस पुरस्कार में 3 लाख रुपये नकद, एक स्वर्ण पदक और एक प्रशस्ति पत्र दिया जाता है। एडथना परिवार के बच्चे शिक्षा में किसी से पीछे नहीं हैं। परिवार के सदस्य केंद्र और राज्य, दोनों जगह सरकारी नौकरी में हैं। परिवार के कई सदस्य बैंकों में भी कार्यरत हैं, जबकि कुछ पीएचडी हैं। परिवार की महिलाएं भी किसी मामले में कम नहीं हैं। घरेलू कामकाज के साथ वे आर्थिक रूप से भी परिवार को सहयोग करती हैं। श्रीधन्या सुरेश इसी परिवार की हैं। वे सिविल सेवा परीक्षा उत्तीर्ण करने वाली केरल की पहली वनवासी महिला हैं। उन्होंने 2018 में सिविल सेवा परीक्षा में राष्ट्रीय स्तर पर 410वां रैंक हासिल किया था। वे आईएएस अधिकारी हैं और राजस्व विभाग में तैनात हैं। चूंकि इन परिवारों के पास अपने खेत और बगान हैं, इसलिए अधिकांश महिलाएं खेती से ही जुड़ी हैं। कुछ मामलों में परिवार का मुखिया दूसरे जिलों में भी काम करता है। ऐसी स्थिति में उसकी पत्नी खेती-किसानी के कामकाज संभालती है, जबकि मुखिया श्रम शक्ति, उर्वरक फसल, उपज की बिक्री आदि का प्रबंधन करता है।

साथ भोजन करते परिवार के सदस्य

पूरा वनवासी समुदाय अपनी परंपराओं और रीति-रिवाजों से जुड़ा है और इनका पालन करता है। उच्च शिक्षा और अलग-अलग जगहों पर नौकरी करने के बावजूद आधुनिकता को उन्होंने अपने ऊपर हावी नहीं होने दिया है। वे पीढ़ी दर पीढ़ी चली आ रही अपनी आस्था और मूल्यों को संजोए हुए हैं। परिवार की महिलाएं और लड़कियों पर कोई पाबंदी नहीं होती है। वे आधी रात को भी बाहर जा सकती हैं। जब कोई व्यक्ति एडथना परिवार को अपने किसी कार्यक्रम या समारोह में आमंत्रित करता है, तो उसमें परिवार की उपस्थिति कई कारकों पर निर्भर करती है। जैसे-यदि न्योता देने वाला और न्योता पाने वाले व्यक्ति के बीच अत्यधिक निकटता है, तो उस समारोह में पूरा परिवार शामिल होता है, अन्यथा परिवार का मुखिया अकेला ही जाता है।

एडथना परिवार में कुछ ऐसे भी लोग हैं, जिनके पास अपनी जमीन नहीं है। ऐसी स्थिति में उन्हें बेहतर स्थिति वाले समुदाय और गैर-वनवासी भूमि मालिकों के खेतों और बगानों में काम करना पड़ता है, जो कई दशक पहले वनवासी क्षेत्रों से जा चुके हैं। लेकिन खेती और पारिवारिक जरूरतों की पूर्ति करने में उन्हें कठिनाई होती है। जाहिर है, चिकित्सा खर्च, बच्चों की शिक्षा, अच्छे घर, बेहतर कपड़े आदि के लिए खर्च जुटाने में मुश्किलें आती हैं। यही कारण है कि वायनाड में कई वनवासी सिकल सेल एनीमिया नामक गंभीर बीमारी से पीड़ित हैं। यह एक वंशानुगत रक्त विकार है, जिसमें लाल रक्त कोशिकाओं का आकार असामान्य हो जाता है। वायनाड में संघ-प्रेरित विवेकानंद मेडिकल मिशन इसमें बड़ी भूमिका निभाता है। अस्पताल की मोबाइल इकाइयां वनवासी बस्ती में जाकर सिकल सेल एनीमिया का इलाज करती हैं। पलक्कड़ जिले के अट्टापडी में भी इसी तरह की चिकित्सा सुविधा उपलब्ध कराई जा रही है, जहां वनवासियों की दूसरी सबसे बड़ी बस्ती है।

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