देश की कुछ संविधान संस्थाओं को यह अधिकार है कि वे अपने स्व विवेक से किसी भी मामले को ग्राह्य करके उससे जुड़ी समस्याओं का निराकरण करने के लिए काम करें। संसद, विधायिका, विविध आयोग, न्यायालय इसके सर्वोच्च आधार हैं, जो तमाम समस्याओं को ग्राह्य कर बहुत हद तक उन्हें समाप्त करने की दिशा में पहल करते हैं। ऐसा ही एक निराकरण वक्फ बोर्ड को लेकर भी होना है, कानून में बदलाव जब होगा, तब होगा, किंतु तब तक यह न जाने कितने लागों के जीवन को सड़क पर ले आएगा कुछ पता नहीं। यह गांव, किसानों की जमीन, मंदिर हर जगह दावा कर रहा है। इसलिए जरूरी यही है कि न्यायालय कड़ा हस्तक्षेप करे और वक्फ बोर्ड को उसकी सीमाएं सीमित करने के लिए कहे। जैसा कि मध्यप्रदेश हाईकोर्ट ने बुरहानपुर ऐतिहासिक इमारतें, वक्फ बनाम एएसआई के मामले में अपना निर्णय सुनाया ।
यहां तीन ऐतिहासिक इमारतों बीवी की मस्जिद, आदिल शाह और बेगम सूजा के मकबरों को न्यायालय ने वक्फ बोर्ड की संपत्ति मानने से इनकार कर दिया और अपना निर्णय आर्कियोलॉजिकल सर्वे आफ इंडिया यानी एएसआई के पक्ष में सुनाया। इस केस में कोर्ट की जो टिप्पणी सामने आई, वह गौर करने लायक है। जस्टिस अहलूवालिया ने वक्फ बोर्ड वकील को काफी फटकार लगाई और कहा- कल को किसी भी सरकारी दफ्तर को वक्फ की प्रॉपर्टी कह देंगे तो वह हो जाएगा क्या? आप ताजमहल भी ले लो, लाल किला भी ले लो, कौन मना कर रहा है? प्यार से सवाल समझ नहीं आते हैं आपको, किसी भी प्रॉपर्टी को आप वक्फ की प्रॉपर्टी डिक्लेयर कर दोगे। दरअसल, 1989 में प्रॉपर्टी वक्फ बोर्ड ने अपने पक्ष में घोषित कर दी थी। इस पर जस्टिस अहलूवालिया ने कहा भी कि 1989 में वक्फ बोर्ड को इसकी ऑनरशिप कैसे डिक्लेयर की गई? कौन इसका ऑनर था? किसी को नहीं मालूम 1989 के नोटिफिकेशन से पहले किसकी थी ये प्रॉपर्टी, किसी को कुछ नहीं मालूम। मन आया और वक्फ प्रॉपर्टी डिक्लेयर कर दी गई। जो बात यहां जस्टिस अहलूवालिया ने वक्फ बोर्ड द्वारा जारी की गई अधिसूचना रद्द करते हुए आर्कियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया के पक्ष में फैसला सुनाते वक्त कही।
देखा जाए तो यही बात आज पूरे देश में कई संपत्तियों के मामले में उजागर हो रही है। वक्फ बोर्ड का जहां, जब किसी भी प्रॉपर्टी पर मन आता है वह अपना घोषित कर देती है। अब न्यायालय में संघर्ष करने की बारी सामने वाले की है, यदि वह कमजोर है, गरीब है, आर्थिक रूप से बहुत सम्पन्न नहीं तो यह वक्फ बोर्ड तो उसकी जमीन छीन ही लेता है! अब नए ताजे प्रकरण ने एक बार फिर वक्फ बोर्ड सवालों के घेरे में है। कर्नाटक के विजयपुर जिले में वक्फ बोर्ड अधिनियम पर चर्चा तेज है। इस बार वक्फ बोर्ड को पूरा साथ कांग्रेस सरकार के जिला प्रशासन का मिला। जिसने कि कुछ किसानों की जमीनों को वक्फ को शामिल करने निर्णय ले लिया है। किसानों के लाख यह दावा करने के बाद भी कि यह जमीन उनकी अपनी है, कई पीढ़ियों से पूर्वजों की इस जमीन पर वे खेती करते आ रहे हैं, इसके बाद भी कर्नाटक सरकार के प्रशासन की ओर से कहा जा रहा है कि वह हुन्नारा टिकोटा तालुक के होनवाड़ा गांव में 1200 एकड़ जमीन वक्फ बोर्ड में जोड़ेगा।
कहां जाएगा किसानों का परिवार
यहां के किसान बता रहे हैं कि हमारे गांव और हमारे खेत की जमीन को अधिकारी धार्मिक संस्था शाह अमीनुद्दीन दरगाह के अधीन करने का प्रयास कर रहे हैं, वे बता रहे हैं कि सरकारी रिकॉर्ड, कब इस तरह से तैयार हो गया जिसमें उनकी जमीन वक्फ बोर्ड की बता दी गई, कुछ पता नहीं चला । इस संबंध में सामने आया है कि हाल ही में कर्नाटक सरकार में आवास, वक्फ और अल्पसंख्यक कल्याण विभाग के मंत्री बी जेड जमीर अहमद खान ने वक्फ संपत्तियों पर अतिक्रमण को संबोधित करने के लिए वक्फ अधिकारियों के साथ बैठक की थी । खान ने डिप्टी कमिश्नर और राजस्व अधिकारियों को 15 दिनों के भीतर वक्फ बोर्ड के पक्ष में जमीन पंजीकृत करने का निर्देश दिया था। इस के बाद से अधिकारियों ने अवैध अतिक्रमण हटाने के लिए कदम उठाए हैं, जिसके परिणामस्वरूप यह विवादास्पद नोटिस जारी कर दिया गया। अब यहां के किसानों के सामने अपनी ही जमीन के मालिकाना हक को सिद्ध करने का संकट खड़ा हो गया है। किसान बार-बार यही कह रहे हैं कि ‘अमीनुद्दीन नाम की कोई दरगाह’ यहां कभी नहीं रही। फिर भी सरकारी रिकॉर्ड में इसका उल्लेख ‘अमीनुद्दीन दरगाह’ के रूप में इश्तार मादे होनवाड़ा गांव के लगभग 43 सर्वे नंबरों में कर दिया गया है। गांव वालों को लग रहा है कि यदि उनसे वक्फ बोर्ड ने 1200 एकड़ जमीन छी ली गई तो वे अपने परिवारों को लेकर कहां जाएंगे। ये उनकी पुश्तैनी जमीन है। उनके पूर्वज और उनकी यादें यहीं बसती हैं!
दरगाह अस्तित्व में ही नहीं
इस पूरी घटना के सामने आने के बाद से यहां के किसानों में कांग्रेस सरकार के खिलाफ भयंकर रोष है । विजयपुर जिले के किसानों ने जिला प्रभारी मंत्री एमबी पाटिल को एक ज्ञापन सौंपा है। मामले में जब होनवाड़ा गांव के किसान तुकाराम नालोदे से बात हुई तो उन्होंने अपने दर्द को विस्तार से बयां किया, इनका कहना यही है हमारे गांव के 41 किसानों को नोटिस मिला है, जिसमें दावा यही है कि यह जमीन शाह अमीनुद्दीन दरगाह की है, लेकिन यह दरगाह सदियों से अस्तित्व में नहीं है और हमारे परिवार पीढ़ियों से इस जमीन के मालिक हैं। अब हम से उलटा कहा जा रहा है स्वामित्व रिकॉर्ड उपलब्ध कराओ, हालांकि हम करा भी देंगे, किंतु इस तरह से परेशान वक्फ बोर्ड के कहने से अधिकारियों द्वारा करना हमारे ऊपर जुल्म है। इन्होंने कहा कि कई गरीब किसान हैं, उनके लिए कोर्ट की महंगी न्यायालय की लड़ाई लड़ना आसान नहीं है, लेकिन हम एक जुट हैं, वक्फ बोर्ड हमारे पूर्वजों की संपत्ति पर ऐसे कब्जा नहीं कर सकता है। हम असली मालिक हैं और आगे भी रहेंगे, क्योंकि यही सच है। वे यह भी कहते हैंकि अगर सरकार इन नोटिसों को वापस नहीं लेती है, तो हम विरोध प्रदर्शन करेंगे।
1974 का नोटिफिकेशन बना रहे आधार
इसे लेकर दूसरा एक पक्ष विजयपुर वक्फ बोर्ड से जुड़े अधिकारियों का है। ये कह रहे हैं कि उक्त नोटिस 1974 के गजट नोटिफिकेशन पर आधारित है। उक्त भूमि को राज्य सरकार ने वक्फ संपत्ति के रूप में चिह्नित किया था और इसे गजट में दर्ज किया गया था। हालांकि, इनका यह भी मानना है कि यदि किसनों के पास वैध भूमि रिकॉर्ड हैं, तो वक्फ बोर्ड उनके खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं करेगा। वहीं, विजयपुर वक्फ बोर्ड के बारे में यह भी जानकारी सामने आई है कि उसने 1200 किसानों की जमीन के अलावा अन्य इधर-उधर की जमीनों को मिलाकर कुल 1500 एकड़ जमीन पर अपने होने का दावा ठोका है। फिलहाल वक्फ बोर्ड एवं कर्नाटक कांग्रेस सरकार के प्रशासन के विरोध में यहां के किसानों को भाजपा का समर्थन मिला है। बेंगलुरु दक्षिण के सांसद तेजस्वी सूर्या ने का कहना है कि कर्नाटक राज्य वक्फ बोर्ड ने उत्तर कर्नाटक के विजयपुरा जिले के होनवाड़ा गांव में किसानों की 1,500 एकड़ से अधिक पुश्तैनी जमीन पर अपना स्वामित्व जताया है, किसानों को जो नोटिस भेजे गए हैं, वे बिना किसी सबूत या स्पष्टीकरण के भेज दिए गए हैं। भाजपा किसानों के साथ है, वह कांग्रेस सरकार की मनमानी नहीं चलने देगी।
विवादों से घिरा है वक्फ बोर्ड
यहां ध्यान रहे कि देश भर में वक्फ बोर्ड कहीं भी सार्वजनिक और व्यक्तिगत संपत्तियों को लेकर इस वक्त दावा ठोक रहा है। यही कारण है कि तमाम विवादों में घिरने के कारण से ही इसमें सुधार लाने के लिए एनडीए सरकार इसमें कुछ जरूरी परिवर्तन करना चाहती है, जिसका कि विरोध तुष्टीकरण के चलते कांग्रेस एवं अन्य कुछ राजनीतिक पार्टियां लगातार कर रही हैं। दूसरी ओर वक्फ बोर्ड है कि सबसे ज्यादा हिन्दुओं की जमीनों के साथ ही अन्य की जमीन पर अपना दावा ठोकता जा रहा है। और ऐसा करते हुए उसने अपनी संपत्तियों में हाल की कुछ वर्षों के दौरान बहुत बड़ा इजाफा कर लिया है। लोग परेशान है, वे न्याय पाने दर-दर भटक रहे हैं, दूसरी ओर ये वक्फ बोर्ड है जो कहीं भी अपना दावा ठोक दे रहा है। इसकी जमीनों के इजाफे का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि साल 2009 में वक्फ़ बोर्ड के पास ज़मीन चार लाख एकड़ थी, जो कुछ सालों में दोगुनी हो गई है। आज वक्फ बोर्ड सशस्त्र बलों और भारतीय रेलवे के बाद भारत में तीसरा सबसे बड़ा भूस्वामी है। केरल के चिरई गांव पर इसी वक्फ बोर्ड ने दावा किया था। दिल्ली के मंदिरों पर भी इसने दावा किया था।
2013 में वक्फ को दिए असीमित अधिकार
केंद्र की तत्कालीन कांग्रेस नीत यूपीए सरकार ने 2013 में वक्फ बोर्ड को कानून के तहत संशोधन करते हुए असीमित अधिकार दे दिए थे, जिसका कि बुरा परिणाम आज गैर मुसलमान देश भर में भुगत रहे हैं। वक्फ बोर्डों को कांग्रेस सरकार ने जो अधिकार दिए, उसके अनुसार वह किसी की भी संपत्ति छीन सकता है, क्योंकि उसके निर्णय को किसी भी अदालत में चुनौती नहीं दी जा सकती है। हालांकि यह बात अलग है कि इसके बाद भी उसे चुनौतियां मिल रही हैं और कई जगह उसे मुंह की भी खानी पड़ी है। पर यहां कांग्रेस सरकार ने कोशिश यही की थी कि वक्फ बोर्ड जोकि एक धार्मिक निकाय है उसे असीमित अधिकार देकर वादी को न्यायपालिका से न्याय मांगने से भी रोका जा सके। जिसके चलते ही वक्फ बोर्ड अब तक निजी संपत्ति से लेकर सरकारी भूमि, मंदिर की भूमि से लेकर गुरुद्वारों, चर्च तक की संपत्ति पर कब्जा कर पाने में सफल हो गया।
लाखों वक्फ संपत्तियां
पहले वक्फ के पास पूरे भारत में लगभग 52,000 संपत्तियां थीं जोकि 2009 तक, 4 लाख एकड़ में फैली 300,000 पंजीकृत वक्फ संपत्तियों तक पहुंच गईं, अब इसमें जो इजाफा हुआ है, उसके वक्फ बोर्डों के पास करीब 9 लाख 40 हजार एकड़ में फैली करीब 8 लाख 72 हजार 321 अचल संपत्तियां हैं । चल संपत्ति 16,713 हैं। इनका विवरण वक्फ एसेट्स मैनेजमेंट सिस्टम ऑफ इंडिया (डब्ल्यूएएमएसआई) पोर्टल पर उपलब्ध है। अब तो सुप्रीम कोर्ट से ही आग्रह है, जैसे वह तमाम विषयों का स्वत: संज्ञान लेती है, वैसे ही वक्फ बोर्ड की इस जमीन हड़पने की तानाशाही को भी संज्ञान में लेवे और उसकी इस असंविधानिक गतिविधि पर रोक लगाने का काम करे।
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