देहरादून उत्तरकाशी में मस्जिद वैध है या अवैध इस बहस के बीच उपजी हिंदू जनाक्रोश रैली के बाद ये बहस भी शुरू हो गई है कि उत्तराखंड बनने के बाद यहां कितनी नई मस्जिदें, मदरसे और मजारे बनी हैं? हिंदू संगठनों ने सरकार से ये मांग की है कि देवभूमि में इस्लामिक स्थलों की भू संपत्तियों की गहनता से छानबीन की जाए। हिंदू जागरण मंच ने कहा है कि देवभूमि का सनातन देव स्वरूप बना रहे ये, जिम्मेदारी राज्य सरकार की है। सरकारी भूमि पर कब्जे कर वहां पहले मस्जिद, मदरसे मजारे बनाई जा रही है फिर उन्हे वक्फ बोर्ड में पंजीकरण करके विवाद खड़े कर दिए जाते हैं।
हिंदू जागरण मंच का आरोप है कि हरिद्वार में उपचुनाव के समय मस्जिद बना दी गई, सुदूर पहाड़ों में बेरीनाग, धारचूला आदि कस्बों में मस्जिदें बना दी गईं। जंगलों में मस्जिद और मदरसे बनाए जा रहे हैं, ये चिंता के विषय हैं। देहरादून नैनीताल हरिद्वार उधम सिंह नगर और अन्य जिलों में इतनी बड़ी संख्या में आलीशान मस्जिदें कैसे खड़ी हो गईं? इनकी फंडिंग कौन कर रहा है? ये सब जांच के विषय होने चाहिए।
उधर हिंदू संगठनों ने आरटीआई से मिली जानकारी और अन्य दस्तावेजों के साथ सीएम पुष्कर सिंह धामी को एक पत्र प्रेषित किया है। इसमें उन्होंने दावा किया है कि उक्त मस्जिद अवैध रूप से बनाई गई हैं। हिंदू संगठनों ने कहा कि जिला मजिस्ट्रेट कार्यालय के 100 मीटर की दूरी पर, बगैर कोई नक्शा पास करवाए, निजी भूमि पर अवैध रूप से आवासीय भवन निर्मित किया गया है। हिंदू संगठनों ने कहा कि उक्त आवासीय भवन, मुस्लिम वर्ग के लोगों की निजी भूमि पर निर्मित है, उक्त भवन में, बड़ी अधिक संख्या में बाहरी अजनबी लोगों की भीड़ जुटाई जाने लगी है, जिसके कारण उत्तरकाशी देवभूमि का माहौल अशांत और चिंताजनक बना हुआ है व उत्तरकाशी मूल का जनमानस आक्रोषित है।
संगठनों द्वारा सूचना के अधिकार के तहत, जिला प्रशासन से लिखित जानकारी प्राप्त है कि उक्त स्थल पर मस्जिद के नाम पर, कोई भी भूमि मौजूद नहीं है, जबकि,उक्त भूमि का दाखिला खारिज भी नियम विरुद्ध हुआ है। वर्ष 2004-5 में दाखिल खारिज प्रक्रिया जब गतिमान थी तब से 15 वर्ष पूर्व, विक्रेता सरदार सिंह का निधन हो चुका था और मृतक के नाम उक्त भूमि वर्ष 1991 के बाद कागजात माल में दर्ज नहीं थी। फिर भी मृतक व्यक्ति के विरुद्ध, चुपके से षड़यंत्र के तहत एक वाद (मुकदमा) चलाया गया था। जबकि मृतक व्यक्ति के दोनों पुत्र उस वक्त जीवित थे और भूस्वामी दर्ज थे, लेकिन उक्त दाखिला खारिज प्रक्रिया के वक्त, दोनों भूमि मालिकों को व उनके परिवार के सदस्यों को और उनके गांव के जन प्रतिनिधियों को सूचित तक नहीं किया गया था। संबंन्धित वाद संख्या 406/ 2004 – 2005 धारा 34 भू अधिनियम, फाइल के अवलोकन से पूरी साजिश को समझा जा सकता है।
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संगठनों ने कहा कि वादीगण एवं तत्कालीन अधिकारियों ने सोची समझी रणनीति के तहत, 15 वर्ष पूर्व मर चुके शख्स को संबंधित फाइल के भीतर मात्र कागजों में प्रतिवादी बनाया है और 6 महीने तक न्यायालय में पुकार लगने पर मृतक व्यक्ति जब आपत्ति करने नहीं उपस्थित हुआ। एक पक्षीय फैसला किया गया था, क्योंकि भूमि के मालिक व परिवार के सदस्यगण, उक्त दाखिल खारिज के पक्ष में कभी नहीं थे, यही वजह थी, कि उक्त प्रक्रिया को संबंधित परिवार जनों से छुपा कर, पूरी साजिश को अंजाम दिया गया था।
हिंदू संगठनो द्वारा भू स्वामियों के दादाजी व पिता ने अपने जीते जी 36 वर्षो तक दाखिला खारिज प्रक्रिया के लिए हमेशा इंकार किया था व इसको कभी होने नहीं दिया था,क्योंकि गांव के पुराने लोग बताया करते थे, कि वर्ष 1969 में उनके साथ कपट हुआ था और धोखे से सम्पूर्ण पांच नाली भूमि का बैनामा लिखवाया गया था। इसी कारण उनकी मौत के 36 साल बाद वर्ष 2004 – 2005 में, तत्कालीन भू स्वामियों और परिवार जनों को सूचित किये बगैर, चोरी छुपे, उक्त दाखिल खारिज किया गया था। दाखिला खारिज प्रक्रिया वाद फैसले में साफ अंकित है, कि संबंधित भूमि पर, भवन निर्मित था, जिसे जान बूझकर मस्जिद लिखा गया है, जबकि उक्त निर्मित भवन को नजर अंदाज करके मात्र भूमि का ही दाखिला ख़ारिज किया जाना भी साजिश का हिस्सा था।
हिंदू संगठनों ने सीएम धामी को लिखे अपने पत्र में कहा है कि सम्बंधित वाद फाइल का अवलोकन करवाया जाय एवं सम्पूर्ण मामले की जाँच की जाए। संगठनों ने ये भी कहा है कि अवैध रूप से बने उक्त निजी भवन पर, अवैध रूप से चल रही गतिविधि पर व वहां भीड़ जुटने पर पूर्ण रोक लगवाई जाए एवं बाहरी राज्यों से आए घुसपैठियों/अवैध कब्जा धारियों और फेरी के नाम पर, बाहरी अजनबी लोगों का, हमारे दूरस्त ग्रामीण इलाकों में घुसने पर रोक लगवाई जाय।
उधर उत्तरकाशी जिले के डीएम मेहरबान सिंह कहते हैं कि मस्जिद के भू दस्तावेजों का परीक्षण करवाया गया है जोकि सही है मस्जिद निजी भूमि पर है, जब उनसे आरटीआई से मिली जानकारी के बारे में तथ्य दिए जाते हैं तो वे खामोश हो जाते हैं।
देवभूमि उत्तराखंड के सनातन क्षेत्र में वक्फ बोर्ड की 5 हजार से अधिक संपत्तियों का ब्यौरा सामने आया है। जानकारी के अनुसार उत्तराखंड वक्फ बोर्ड ने 5183 संपत्तियों पर अपना दावा किया है, इसके अलावा 205 संपत्तियों के मामले कोर्ट में विचाराधीन होने की भी बात कही जा रही है। जानकारी के अनुसार, जब 2003 में उत्तराखंड वक्फ बोर्ड का गठन हुआ था तब 2078 संपत्तियों की जानकारी आई थी, इनमें से भी 450 फाइलें यूपी से उत्तराखंड नहीं पहुंची थी। ताजा जानकारी में दिलचस्प बात ये है कि वक्फ बोर्ड की सूची में मस्जिद से अधिक कब्रिस्तान की संख्या है।
पहाड़ी जिलों में चमोली में 1, रुद्रप्रयाग में 1 टिहरी में 4, पौड़ी में 10, उत्तरकाशी में 1 बागेश्वर में 3, चंपावत में 6,अल्मोड़ा में 6 पिथौरागढ़ में 3 मस्जिदें और इनसे ज्यादा कब्रस्तान होने की जानकारी सामने आई है। नैनीताल जिले में 48 मस्जिदें, उधम सिंह नगर में 144, हरिद्वार जिले में 322, देहरादून जिले में 155 मस्जिदें हैं जो कि वक्फ बोर्ड में पंजीकृत बताई जा रही है। सुदूर पहाड़ी जिलों में भी वक्फ बोर्ड की औकाफ (दान में दी गई) संपत्तियों की जानकारी सामने आ रही है।
जानकारी के अनुसार, उत्तराखंड में 2105 औकाफ़ संपत्तियां हैं, जिनमें अल्मोड़ा जिले में 46 पिथौरागढ़ जिले में 11 पौड़ी में 26 सबसे अधिक हरिद्वार में 865 उधम सिंह नगर में 499 देहरादून में 435 संपत्तियों पर वक्फ बोर्ड का अपना दावा है। पूरे देवभूमि उत्तराखंड में 773 स्थानों पर कब्रस्तान बना दिए गए हैं, जबकि 704 मस्जिदों को वक्फ बोर्ड के अधीन बताया गया है। उत्तराखंड में वक्फ बोर्ड की सूची से बाहर अभी इतनी ही और मस्जिदों के और होने की सूचनाएं है।
वक्फ बोर्ड में 100 मदरसे होने की सूचना सामने लाई जा रही है, जबकि मदरसा बोर्ड में सूची में चार सौ से ज्यादा मदरसे दर्ज है। राज्य के भीतर 201 से अधिक मजारे वक्फ बोर्ड में सूची बद्ध होने की जानकारी सामने लाई गई है। बताया जाता है कि यहां अब नमाज भी पढ़ाई जा रही है। वक्फ बोर्ड की संपत्तियों में पूरे राज्य में 12स्कूल और इतने ही मुसाफिरखाने हैं, सूची में 1024 मकान और 1711 दुकानें भी है। 70 ईद गाह, 32 इम्मामबाड़े, 112 कृषि भूमि प्लाट और अन्य 253 संपत्तियां हैं। ऐसा भी माना जा रहा है कि वक्फ बोर्ड की कई संपत्तियों पर प्रभावशाली और भू माफिया तत्वों के कब्जे हैं।
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ऐसी खबरे भी हैं कि उत्तराखंड वक्फ बोर्ड की स्थापना 2003 में हुई थी, तब वक्फ बोर्ड की संपत्तियों की संख्या 2078 के आसपास बताई गई थी, इनमें से 450 संपत्तियों की फाइलें यूपी से अभी तक उत्तराखंड वक्फ बोर्ड को नहीं दी गई है और ये विषय, एक विवाद के रूप में केंद्रीय सरकार तक पहुंचा हुआ है। ऐसा माना जा रहा है कि देवभूमि उत्तराखंड में पिछले 20 सालो में वक्फ बोर्ड की संपत्तियों की संख्या दो गुना से अधिक हो गई है।
पिछले दिनों उत्तराखंड वक्फ बोर्ड के अध्यक्ष शादाब शम्स, संपत्तियों की नई सूची लेकर केंद्र सरकार के पास गए थे, इसी सूची पर केंद्रीय अल्पसंख्यक मामलों के मंत्री किरेन रिजिजु के साथ उनकी चर्चा हुई थी। बहरहाल देवभूमि उत्तराखंड में वक्फ संपत्तियों का तेजी से बढ़ना भी चिंता का विषय है, राज्य में डेमोग्राफी चेंज को लेकर बहस छिड़ी हुई है और वक्फ संपत्तियों के बढ़ रहे आंकड़े भी इसी और संकेत देते हैं।
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