देश के उच्चतम न्यायालय से लेकर राज्यों में सभी ओर इन दिनों मदरसा शिक्षा को लेकर मामला गर्माया हुआ है। सुप्रीम कोर्ट ने जो कहा है, वह बहुत गंभीर है। जैसा कि न्यायालय की टिप्पणी भी सामने आई है, राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग ‘‘एनसीपीसीआर को केवल मदरसों की ही चिंता क्यों है। क्या वह सभी समुदाय के साथ समान व्यवहार करता है।’’…“क्या एनसीपीसीआर ने मदरसा पाठ्यक्रम का अध्ययन किया है? क्या उस पाठ्यक्रम में धार्मिक शिक्षा के बारे में बात की गई है? धार्मिक शिक्षा क्या है? आपने क्या समझा है? ऐसा लगता है कि आप सभी ‘धार्मिक निर्देश’ शब्द से मंत्रमुग्ध हैं और इसीलिए आप इससे बाहर नहीं निकल पा रहे हैं।” कोर्ट में बात जब मदरसों की उठी तो मठ, मंदिर, आश्रमों की भी चर्चा भी उठना स्वभाविक है, मदरसा से तुलना करते हुए वह भी उठी ।
कोर्ट की कार्रवाई के दौरान पूछा गया, “क्या एनसीपीसीआर ने अन्य समुदायों में धार्मिक शिक्षाओं पर प्रतिबंध लगाया है?… एनसीपीसीआर इस तथ्य से अवगत है कि पूरे भारत में छोटे बच्चों को उनके समुदाय की संस्थाओं द्वारा धार्मिक शिक्षा दी जाती है। क्या एनसीपीसीआर ने उन सभी पर यही रुख अपनाया कि यह मौलिक संवैधानिक मूल्यों के विपरीत है?” अब इस प्रश्न के उत्तर में राष्ट्रीय बाल संरक्षण आयोग की ओर से जो जवाब देने थे वह दिए गए, किंतु मदरसा शिक्षा से जुड़े जो आंकड़े सामने आए हैं वह भारत जैसे पंथ निरपेक्ष देश के सामने कई प्रश्न खड़े कर रहे हैं। इन तमाम प्रश्नों में एक अहम प्रश्न जो दिखता है वह है यहां के बहुसंख्यक हिन्दू समाज के रुपयों का इस्तेमाल हिन्दुओं के ही कन्वर्जन में लीगल तरीके से किया जा रहा है। मदरसों में पढ़ाई के नाम पर इन्हें प्रवेश देकर उनकी ब्रेन मैपिंग हो रही है।
देश के आठ राज्यों में चल रहे मदरसा बोर्ड, अन्य में सरकार देती है सीधी मदद
काउंसिल ऑफ बोर्डस् ऑफ स्कूल एजुकेशन (सीओबीएसई) यानी कि भारत में स्कूल शिक्षा बोर्ड की परिषद के अनुसार देश के आठ राज्यों में अभी मदरसा बोर्ड संचालित हैं। एनसीपीसीआर की हाल ही में “आस्था के संरक्षक या अधिकारों के दमनकर्ता?: बच्चों के संवैधानिक अधिकार बनाम मदरसे” नाम से आई एक रिर्पोट में खुलासा हुआ है कि राज्यों से मांगी गई जानकारी में उत्तर प्रदेश और पश्चिम बंगाल को छोड़कर अन्य छह राज्यों ने बताया कि 14,819 गैर मुस्लिम बच्चे उनके यहां अनुदान प्राप्त मदरसों में पढ़ रहे हैं। जिसमें सामने आया कि सबसे अधिक पांच हिन्दी राज्यों में मध्य प्रदेश में 9446 कुल बच्चों मे 9417 हिन्दू बच्चे, राजस्थान में 3103, छत्तीसगढ़ 2159, बिहार में 69 और उत्तराखंड में 42 गैर मुसलिम बच्चे मदरसा में दीनी तालीम पढ़ रहे हैं। जबकि गैर हिन्दी राज्य ओडिशा में जहां मदरसा बोर्ड है, पर कोई गैर मुसलमान नहीं पढ़ रहा।
असम के मदरसे तब्दील कर दिए गए विद्यालयों में
यह रिपोर्ट खुलासा करती है कि 2020 तक असम में मदरसा बोर्ड था जिसे भंग कर सभी मदरसों का स्कूल में नवीनीकरण किया गया। वहीं, अन्य राज्यों में मदरसा बोर्ड नहीं लेकिन हजारों की संख्या में कई राज्यों में मदरसों का संचालन हो रहा है, साथ ही बड़ी संख्या में गैर मुसलिम बच्चों को यहां पढ़ाई के नाम पर प्रवेश दिया गया है, जिसमें कि 99.99% बच्चे हिन्दू ही हैं। महाराष्ट्र में 7855, मप्र में गैर मान्यता प्राप्त मदरसों में 59, हरियाणा में 23, झाारखण्ड में 14, मणिपुर में 03, पंजाब में 02, त्रिपुरा में 05, चंडीगढ़ में 2 गैर मुसलिम बच्चे पढने की जानकारी राज्य सरकारों द्वारा एनसीपीसीआर को मुहैया कराई गई। जबकि लगभग सभी राज्य अपने यहां मान्यता प्राप्त के अलावा गैर मान्यता प्राप्त मदरसों की कोई सही संख्या नहीं बता पाए, अधिकांश को पता ही नहीं कि उनके राज्य में कितने मदरसे अवैध रूप से संचालित हो रहे हैं, जिनकी कोई जानकारी शासन के पास हो । क्योंकि जितने शासन से मान्यता प्राप्त मदरसों की संख्या है, उनसे कई गुना अधिक गैर मान्यता प्राप्त या कहें अवैध मदरसे देश भर में संचालित हो रहे हैं, जिसमें बच्चे कहां से आ रहे हैं और कहां जा रहे, किसी को कोई जानकारी नहीं है।
भारत में 80 हजार अवैध मदरसों का हो रहा संचालन
मदरसों की संख्या को लेकर अब तक अलग-अलग आंकड़े सामने आए हैं, जिसमें एक आंकड़ा भारत में करीब 28,107 मदरसे मान्यता प्राप्त और 10,039 गैर-मान्यता प्राप्त का है, जिनमें 20 लाख से ज़्यादा छात्र पढ़ते हैं। उत्तर प्रदेश में 16,513 मान्यता प्राप्त और 8,449 गैर-मान्यता प्राप्त मदरसे हैं, इनमें 558 मदरसों को यूपी सरकार पूरी तरह से धन मुहैया कराती है। इसके इतर एक दूसरा आंकड़ा एनसीपीसीआर ने जारी किया है। अपनी रिपोर्ट में राष्ट्रीय बाल संरक्षण आयोग ने बताया है कि देश में 19613 मान्यता प्राप्त मदरसे और 4037 गैर मान्यता प्राप्त मदरसे हैं। मान्यता प्राप्त मदरसों में 26 लाख 93 हजार से अधिक और गैर-मान्यता प्राप्त में 5 लाख 40 हजार 744 बच्चे पढ़ते हैं। दूसरी ओर 1.1 करोड़ मुस्लिम बच्चों के स्कूल न जाने और मदरसों में जाने के अनुमान के आधार पर, देश में 80,000 से अधिक गैर-मान्यता प्राप्त मदरसे हो सकते हैं, जिनमें बच्चे पढ़ते हैं लेकिन देश की शिक्षा तस्वीर से लगभग गायब हैं और इसलिए बिना किसी नियमन के बच्चों को उनके अधिकारों से वंचित किया जा रहा है।
एनसीपीसीआर ने मदरसों की जानकारी के संबंध में जो पत्र राज्यों को लिखा था, उसके उत्तर में जो जानकारी सामने आई, उससे पता चला है कि इन सभी वैध के साथ अवैध मदरसों में बड़ी संख्या में गैर मुस्लिम बच्चों को प्रवेश दिया गया है, जोकि अधिकांश हिन्दू) बच्चे हैं। इसी तरह से एक रिपोर्ट इसी साल वॉइस ऑफ अमेरिका पर शेख अज़ीज़ुर रहमान की प्रकाशित हुई है, जिसमें इस बात पर जोर दिया गया है कि अकेले यूपी बोर्ड ऑफ मदरसा एजुकेशन से मान्यता प्राप्त लगभग 16,500 मदरसों की संख्या है जिनके 1.95 मिलियन छात्र अध्ययनरत हैं, इनमें कई गैर-मुस्लिम (हिन्दू छात्र शामिल हैं । यूपी में 25,000 से अधिक मदरसे चल रहे हैं, जिसमें कुल छात्रों की संख्या 2.7 मिलियन से अधिक है। पश्चिम बंगाल के एक मदरसा का भी वे उदाहरण देकर बताते हैं कि मदरसा में 50% से अधिक छात्र गैर-मुस्लिम(हिन्दू) हैं । यानी एक अनुमान के मुताबिक जो संख्या गैर मुसलमान, विशेषकर(हिन्दू) बच्चों की मदरसों में पढ़ने की सामने आती है वह इस कालखण्ड में देश भर की लगभग 60 से 80 हजार के बीच है ।
गैर मुसलमान बच्चों को भी बार-बार दिलाया जा रहा अल्लाह में यकीन
दरअसल, जब इन्हें दीनी तालीम के नाम पर काफिर होना एवं तालीम-उल-इस्लाम, ‘हिदायतुल कुरआन’ जैसी पुस्तकों के माध्यम से बार-बार यह समझाया जा रहा हो कि ‘जो अल्लाह में यकीन नहीं करते हैं उन्हें काफिर कहा जाता है। जो लोग अल्लाह के अलावा अन्य वस्तुओं की पूजा करते हैं या दो या तीन देवताओं में विश्वास करते हैं। ऐसे लोगों को काफ़िर (अविश्वासी) या मुशरिक (बहुदेववादी) कहा जाता है। बहुदेववादियों को मुक्ति नहीं मिलेगी, इसके बजाय, उन्हें अनंत दंड और पीड़ा का सामना करना पड़ेगा।’ अथवा भगवान राम एवं श्रीकृष्ण के बारे में यह बताया जा रहा हो कि वे खुदा के पैगम्बर नहीं हैं। क्योंकि ख़ास तौर पर उन्हीं बुजुर्गों को पैग़म्बर कह सकते हैं जिनका पैगम्बर होना शरीअत से साबित हो, और कुरआन मजीद या हदीस शरीफ़ में उनको पैग़म्बर बताया गया हो, जिसमें कि ये दोनों नहीं आते। वहीं, जो आदमी हज़रत मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम को खुदा का रसूल न माने वह भी काफिर है।
फिर बार-बार यही बताया जा रहा हो कि सिर्फ कुरान ही सच्ची किताब है। उसी में सही ‘तौहीद की तालीम’ यानी एकेश्वरवाद की सच्ची शिक्षा व ज्ञान दिया गया है इसके अलावा अन्य जो भी किताबे हैं वे सभी असत्य, भ्रामक एवं जूठी हैं। फिर बताया जाता है कि बहुत से काम ऐसे हैं कि उनमें शिर्क की मिलावट है। उन तमाम कामों से पंडित को हाथ दिखाना और किसी पीर के नाम की सर पर चोटी रखने को शामिल किया गया है, जिसमें कि हम सभी जानते हैं कि सिर पर चोटी कौन रखता है । तब स्वभाविक है कि बहुत चालाकी से गैर मुसलमान बच्चों, मदरसों में हिन्दू बच्चों की ब्रेन मैपिंग की जा रही है।
मदरसों में बच्चे खुद को कर रहे ‘आखिरत’ के लिए तैयार
राष्ट्रीय बाल संरक्षण आयोग (एनसीपीसीआर) तत्कालीन अध्यक्ष प्रियंक कानूनगो की जब कुछ मदरसों में पढ़ रहे बच्चों से उनके प्रवास के दौरान बातचीत हुई तो उसका जिक्र भी इस रिपोर्ट में है, जिसमे एक बच्चे के हवाले से बताया गया है कि आखिर यहां पढ़ रहे बच्चों में अधिकांश की सोच क्या है! मदरसा से लौट रहे एक बच्चे से बातचीत करते समय, कहा कि हम सिर्फ मजहबी अध्ययन कर रहे हैं, शिक्षक, चिकित्सक या वकील जैसे कोई पेशेवर नहीं बनना चाहते, लेकिन खुद को ‘ आखिरत’ के लिए तैयार कर रहे हैं जिसका अर्थ है मृत्यु के बाद का जीवन, वे खुद को फैसले के दिन के लिए तैयार कर रहे हैं।
उल्लेखनीय है कि खुद को आखिरत के लिए तैयार करने के लिए, ये काम किए जा सकते हैं- अल्लाह के हुक्मों का पालन करना , रसूले खुदा की सुन्नतों पर अमल करना, अल्लाह और अल्लाह के रसूल के बताए रास्तों पर चलना, कलिमा की बुनियाद पर अपना इमान मज़बूत करना । ज़्यादातर मुसलमानों का विश्वास है कि क़यामत के दिन अल्लाह तय करेगा कि लोग अपना अगला जीवन कैसे बिताएंगे, उनका मानना है कि उन्हें अपनी पसंद चुनने की आज़ादी है। अल्लाह उन विकल्पों के लिए उनका न्याय करेगा, निर्णय कर्मों की मात्रा पर नहीं, बल्कि उसके पीछे की इच्छा पर निर्भर करता है।
क्या कहता है संविधान
प्रियंक कानूनगो तत्कालीन अध्यक्ष एनसीपीसीआर का कहना है कि ”माननीय सर्वोच्च न्यायालय में मुस्लिम संगठनों ने मेरे द्वारा बाल आयोग अध्यक्ष की हैसियत से 7 जून 2024 को उत्तर प्रदेश सरकार को लिखे गए इस पत्र पर स्थगन आदेश हेतु याचिका दायर की थी जिस पर उनके पक्ष में आदेश दिया गया है।इसमें साफ़ साफ़ लिखा है कि मदरसों में हिंदू बच्चों को तालीम दी जा रही है इसलिए ग़ैर मुस्लिम बच्चों का दाख़िला मदरसे की जगह स्कूल में करवाएँ। मैं बाबा साहब अम्बेडकर के द्वारा लिखे हुए संविधान में प्राण पण से आस्था रखता हूँ,संविधान का अनुच्छेद 28(3) बच्चों को बग़ैर माता पिता की सहमति के किसी और धर्म की शिक्षा देने से रोकता है मैंने इसी प्रावधान के अनुपालन की बात कही है। आज भी वही कह रहा हूँ कि सरकारी खर्च पर करदाता के पैसे से हिंदू बच्चों को इस्लामिक मज़हबी तालीम देना ग़लत है। मदरसा मज़हबी तालीम के केंद्र हैं,मदरसों में हिंदू बच्चों का कोई काम नहीं है। उन्होंने कहा, ”मुस्लिम संगठन अपने मज़हबी अजेंडे और आर्थिक हितों के लिए बेहद सजग हैं इसलिए सर्वोच्च न्यायालय पहुँच गए और अपनी तरफ़ की बात रख दी बाक़ी किसी को इस बात से फ़र्क़ नहीं पड़ता कि किस गरीब के बच्चे मज़हबी तालीम में फँसे हैं इसलिए अन्य किसी ने भी माननीय न्यायालय में अपना पक्ष रखने निवेदन नहीं किया ।”
बार-बार सामने आ रही मदरसों से जिहादी मानसिकता
इस संबंध में विश्व हिन्दू परिषद (विहिप) के राष्ट्रीय प्रवक्ता विनोद बंसल का कहना है, ‘‘दुर्भाग्य है कि राज्य सरकारें मदरसों को पोषित कर रही हैं, इन मदरसों में एक ओर जिहादी मानसिकता बार-बार उजागर हो रही है, वहीं देश के बहुसंख्यक हिन्दू जोकि 80 प्रतिशत हैं उन कर दाताओं की खून-पसीने की कमाई से राज्य सरकारों द्वारा इन्हें सुविधाएं मुहैया कराई जा रही हैं, सेक्युलर संविधान की दुहाई देनेवाले योग कब तक इन मदरसों के माध्यम से अपने देशविरोधी आगे बढ़ाते रहेंगे ?’’ उन्होंने कहा कि ‘‘अब समय आ गया है, इन मदरसों पर विराम लगाकर इन्हें शिक्षा की मुख्यधारा में लाने का, क्योंकि इनमें अधिकांश बाल मन में विषवमन करने का काम कर रहे हैं। जो बच्चे यहां गैर मुस्लिम पढ़ रहे हैं, उन्हें बिना देरी के अन्यत्र विद्यालयों में स्थानान्तरित किए जाने की आवश्यकता है। ताकि इन सभी को आधुनिक शिक्षा के माध्यम से देश का श्रेष्ठ नागरिक बनाया जा सके।’’
विनोद बंसल ने यह भी कहा, ‘यदि कोई मदरसों की तुलना मठ, मंदिर, आश्रम, गुरुकुल, गुरुद्वारे से करता है तो जान लें वह इनके बारे में कुछ नहीं जानता । पिछले एक दशक में अकेले बिहार राज्य में ही देढ़ सौ से ज्यादा बम विस्फोट हुए हैं, अधिकांश में मदरसों की संलिप्तता उजागर हुई है। हिन्दू त्योहारों की चल समारोह पर जहां भी पत्थर बरसाए गए उनमें अधिकांश बार इन्हीं मदरसों की घटना में लिप्तता पाई गई है। किसी से छिपा नहीं है, कई आतंकवादियों का भी मदरसा शिक्षा से जुड़ाव सामने आता रहा है। मठ, मंदिर, आश्रम, गुरुकुल की शिक्षा क्या है और वह कैसे परंपरा के साथ आधुनिक विद्यालय संचालित कर रहे हैं, यह जिन्हें आपत्ति है और जो मदरसा के साथ इसकी तुलना कर रहे हैं उन सभी से विनम्र आग्रह है कि वे पहले एक बार जरूर यहां जाकर देखें, मिथ्या तुलना ठीक नहीं, सच सामने आ जाएगा ।’
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