हाल ही में एलन मस्क ने विकीपीडिया को लेकर एक बयान दिया है, जिसने सोशल मीडिया पर हलचल मचा दी है। मस्क ने विकीपीडिया पर “वामपंथी कार्यकर्ताओं” के नियंत्रण का आरोप लगाया है। उनका कहना है कि यह मंच अब स्वतंत्र और निष्पक्ष जानकारी के बजाय एक तरह का प्रोपेगेंडा प्लेटफार्म बन गया है। मस्क के इस बयान से विकीपीडिया की विश्वसनीयता पर सवाल खड़े हो गए हैं और इसके संपादन प्रक्रिया पर गंभीर चर्चाएं हो रही हैं।
एलन मस्क का ट्वीट
एलन मस्क ने ट्वीट करते हुए कहा कि विकीपीडिया पर वामपंथी विचारधारा के लोगों का प्रभाव है और यह मंच निष्पक्ष जानकारी प्रदान करने में विफल हो रहा है। उनके अनुसार, विकीपीडिया की सामग्री का राजनीतिकरण हो रहा है, जिससे इसकी विश्वसनीयता प्रभावित हो रही है। मस्क ने यह भी कहा कि विकिपीडिया अब किसी एक विचारधारा का पक्ष लेता नजर आ रहा है, जो कि एक खुली जानकारी के मंच के लिए उचित नहीं है।
Wikipedia is controlled by far-left activists.
People should stop donating to them. https://t.co/Cjq2diadFY
— Elon Musk (@elonmusk) October 25, 2024
मस्क के इस ट्वीट के बाद, सोशल मीडिया पर उनकी टिप्पणी को लेकर काफी चर्चा शुरू हो गई। कई लोगों ने मस्क का समर्थन किया और कहा कि विकीपीडिया पर ध्रुवीकृत विचारधाराओं का प्रभाव वास्तव में बढ़ रहा है। वहीं, कुछ लोगों ने इस बयान की आलोचना करते हुए कहा कि विकिपीडिया एक स्वतंत्र मंच है, जिसे दुनिया भर के उपयोगकर्ता संपादित करते हैं, और इसे किसी एक विचारधारा के प्रभाव में नहीं देखा जाना चाहिए।
विकीपीडिया एक ओपन-सोर्स एन्साइक्लोपीडिया है, जिसे कोई भी व्यक्ति संपादित कर सकता है। इसकी यह संरचना इसे सबसे बड़ा और लोकप्रिय जानकारी का स्रोत बनाती है, लेकिन साथ ही यह आलोचना का भी शिकार होता है। ओपन-सोर्स प्लेटफार्म होने के नाते, इसमें गलत जानकारी का जोखिम बना रहता है, क्योंकि कोई भी व्यक्ति इसमें बदलाव कर सकता है। मस्क का आरोप भी इसी ओर इंगित करता है कि विकिपीडिया के संपादकों का एक खास विचारधारा की ओर झुकाव है, जो जानकारी की निष्पक्षता को प्रभावित करता है।
दिल्ली उच्च न्यायालय
हाल ही में दिल्ली उच्च न्यायालय ने भी विकीपीडिया को लेकर एक सख्त रुख अपनाया है। हाल ही में एक मामले में, अदालत ने विकीपीडिया को चेतावनी देते हुए कहा कि वह किसी भी प्रकार की जानकारी का गलत उपयोग न करें। न्यायालय ने यह भी कहा कि विकिपीडिया जैसी बड़ी संस्थाओं को भारत में कानून के शासन का पालन करना होगा, चाहे वे कितनी भी शक्तिशाली क्यों न हों।
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