महाराष्ट्र

कांग्रेस का रवैया महाविकास अघाड़ी के लिए हार का निमंत्रण

Published by
अभय कुमार

महाराष्ट्र देश में विधानसभा में सीटों के मामले में तीसरा सबसे बड़ा वो लोकसभा के सीटों के मामले में देश में दूसरा सबसे बड़ा राज्य है। इस राज्य में लंबे समय तक कांग्रेस पार्टी की सत्ता रही है। मगर अब कांग्रेस पार्टी को अपनी ताकत से मुख्य विपक्षी दल की भूमिका में भी आने के लिए जद्दोजहद करना पड़ रहा है। कांग्रेस पार्टी ने 2014 के विधानसभा चुनाव में अपने बूते चुनाव लड़कर महज 42 सीट ही जीत सकी थी। महाराष्ट्र में कांग्रेस पार्टी पहली बार 1995 में विपक्ष में बैठी थी।

वर्तमान में महाराष्ट्र में दो गठबंधन, महाविकास अघाड़ी और महायुति, में संघर्ष है। महाविकास अघाड़ी में शरद पवार, कांग्रेस पार्टी और उद्धव ठाकरे हैं, वहीं महायुति में भाजपा, एकनाथ शिंदे और अजित पवार हैं। जहाँ महायुति में सीटों का बंटवारा आपसी सूझबूझ से सुलझ रहा है, वहीं महाविकास अघाड़ी में यह समस्या बढ़ती ही जा रही है। महाविकास अघाड़ी के सभी दल केवल भाजपा और इसके सहयोगी दलों के आगे अपनी राजनीतिक अस्तित्व बचाए रखने के लिए गठबंधन के सूत्र में बंधे हुए हैं। महाविकास अघाड़ी के दलों में वैचारिक कोई समानता नहीं है।

जहाँ भाजपा ने अपनी पहली 99 उम्मीदवारों की सूची को भी जारी करके अपने उम्मीदवारों को चुनावी मैदान में उतारने और प्रचार कर जनसमर्थन प्राप्त करने का रास्ता साफ कर दिया है, वहीं महाविकास अघाड़ी में सीटों का फैसला ही नहीं हो सका है। इससे महाविकास अघाड़ी के संभावित उम्मीदवारों और मतदाताओं में निराशा के साथ ही नाउम्मीदी का भी सूत्रपात हो रहा है।

महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव में महाविकास अघाड़ी में सीटों के बंटवारे में आपसी विवाद और मतभेद चरम पर हैं। सभी दल एक दूसरे से अधिक से अधिक सीट हड़पने की कोशिश कर रहे हैं। इसका भी एक खास कारण है। महाविकास अघाड़ी में शामिल तीनों दलों की अपनी कमजोरियाँ हैं, जिसका फायदा अन्य दल उठाना चाह रहे हैं। जहाँ कांग्रेस पार्टी हरियाणा और जम्मू कश्मीर विधानसभा चुनावों में मिली करारी शिकस्त से बुरी तरह कमजोर और हताशा के दौर से गुजर रही है और वह खुलकर अन्य दोनों दलों पर दबाव नहीं बना पा रही है, वहीं अन्य दो दल, शिव सेना (यूबीटी) और राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (शरदचंद्र पवार) अपने पुराने दलों में टूट के कारण कमजोर और क्षीण हो चुकी हैं। इन दोनों दलों की आंतरिक कमजोरी के कारण कांग्रेस पार्टी इन दलों को कमजोर आंकते हुए सीटों के बंटवारे के मामले में कमतर करके देख रही है।

कांग्रेस पार्टी का विगत हरियाणा और जम्मू कश्मीर विधानसभा चुनावों में सीटों के बंटवारे के मामले में सहयोगियों के साथ काफी दुर्भावनापूर्ण व्यवहार देखने को मिला है। जहाँ हरियाणा विधानसभा चुनाव में कांग्रेस पार्टी ने आम आदमी पार्टी को सीटों के बंटवारे में उलझाए रखा और अंत में बेरंग बिना गठबंधन के वापस कर दिया, वहीं जम्मू और कश्मीर में कांग्रेस पार्टी ने अपने सहयोगी नेशनल कॉन्फ्रेंस के साथ अत्यंत बुरा व्यवहार किया। कांग्रेस पार्टी ने अपनी वास्तविक ताकत से लगभग दुगुनी सीटें नेशनल कॉन्फ्रेंस से अपने लिए आवंटित करवाया और उसके बाद सात सीटों पर सहयोगी नेशनल कॉन्फ्रेंस के खिलाफ ही उम्मीदवार उतार दिया। इन सात सीटों का परिणाम कांग्रेस पार्टी की हकीकत की पोल खोल दिया और इन सात सीटों में किसी पर भी कांग्रेस पार्टी ना तो विजेता रही और ना उपविजेता। इन सात सीटों में चार सीटें नेशनल कॉन्फ्रेंस, दो सीटें भाजपा और एक सीट आम आदमी पार्टी ने जीता। इससे यह भी संदेश मिलता है कि कांग्रेस पार्टी से इसके सहयोगियों को बचकर रहने की जरूरत है।

महाविकास अघाड़ी में कांग्रेस पार्टी और शिवसेना (यूबीटी) के बीच सीटों के बंटवारे पर जंग छिड़ी है। कांग्रेस और शिवसेना उद्धव गुट के बीच में है मुंबई, नासिक और विदर्भ इलाके में 36 सीटें हैं, जहाँ दोनों ही दल अपनी-अपनी दावेदारी पेश कर रहे हैं। इनमें से मुंबई की बायकल, बांद्रा ईस्ट और वर्सोवा की तीन सीटें हैं। वहीं पिछले चुनाव में बायकल सीट पर शिवसेना, बांद्रा ईस्ट में कांग्रेस और वर्सोवा सीट पर भाजपा जीती थी। उद्धव ठाकरे विदर्भ में भी सीटों की मांग कर रहे हैं, जहाँ पूर्व में कांग्रेस और बीजेपी की टक्कर रहती थी। विदर्भ के संदर्भ में कांग्रेस का कहना है कि यह उसका पुराना गढ़ रहा है और वहीं उद्धव का यहाँ आधार नहीं है। उद्धव ठाकरे वाली शिवसेना का तर्क है कि विदर्भ की कुछ सीटों पर पिछले कुछ चुनावों में कांग्रेस भाजपा से लगातार हारती आ रही है, अतः उसे ये सीटें मिलनी चाहिए। विदर्भ की ये सीटें हैं रामटेक, नागपुर साउथ, गडचिरोली, गोंदिया, भंडारा, चिमुर, बल्लारपुर, चंद्रपुर, कामठी, नागपुर साउथ, अहेरी और वरोरा। इन सीटों के अलावा कुछ अन्य सीटों पर भी रार मची है।

अंतिम समय में जम्मू कश्मीर की तरह कांग्रेस पार्टी अपने सहयोगी दलों के साथ कुछ सीटों पर दोस्ताना संघर्ष करती नजर आ सकती है। शरद पवार के राजनीतिक कद और हैसियत को देखते हुए ये उद्धव ठाकरे और कांग्रेस उनसे विवाद करने की स्थिति में नहीं हैं, मगर नामांकन के शुरुआत के बावजूद भी अभी ये विवाद थमता नहीं लग रहा है।

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