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सुप्रीम कोर्ट की चौखट तक बार-बार पहुंचता ‘हिंदुत्व’ शब्द, क्या कहा सर्वोच्च न्यायालय ने

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सोनाली मिश्रा

भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने हिन्दुत्व शब्द को लेकर दायर की गई याचिका को खारिज कर दिया। इस याचिका में यह मांग की गई थी कि हिन्दुत्व शब्द को भारतीय संविधानत्व से बदल दिया जाए। दिल्ली में विकासपुरी में रहने वाले एस एन कुन्द्रा ने यह याचिका दायर की थी।

भारत के मुख्य न्यायाधीश चंद्रचूड़ ने कहा कि यह याचिका पूरी तरह से प्रक्रिया का दुरुपयोग है। इसे वह नहीं सुनेंगे। इस पीठ में जस्टिस जेबी पादरीवाला और मनोज मिश्रा भी थे। याचिकाकर्ता का यह कहना था कि हिन्दुत्व के स्थान पर भारतीय संविधानत्व शब्द का प्रयोग किया जाए क्योंकि यह शब्द संविधान में निहित धर्मनिरपेक्ष और लोकतान्त्रिक मूल्यों के साथ और भी निकटता से जुड़ा हुआ है। हिन्दुत्व की अवधारणा पर प्रहार आज की घटना नहीं है। राजनीतिक वर्गों में इस पर लगातार प्रहार होते रहते हैं।

हिन्दुत्व की बात यदि कोई करता है तो उसे भारतीय सेक्युलर संविधान पर प्रहार माना जाता है, और इसे हिन्दू राष्ट्रवाद से जोड़कर देखा जाता है और इसे एक धर्म तक सीमित किया जाता है। यही कारण है कि याचिकाकर्ता इस शब्द को भारतीय संविधानत्व से बदलना चाहते थे, जो धर्मनिरपेक्षता, समानता और लोकतंत्र के सिद्धांतों को भारतीय पहचान के लिए मौलिक मानता है।

पूर्व में हिन्दुत्व शब्द और न्यायालय

ऐसा नहीं है कि न्यायालय की चौखट तक हिन्दुत्व शब्द की बहस पहले नहीं आई। हिन्दुत्व शब्द न्यायालय की चौखट तक कई बार पहुंचा। सबसे पहले शिवसेना के संस्थापक बालासाहेब ठाकरे द्वारा दिए गए भाषणों को लेकर एक याचिका दायर की गई थी। वर्ष 1994 में सबसे पहले इस्माइल फारुकी ने आपत्ति जताई थी और उस समय माननीय सर्वोच्च न्यायालय ने हिन्दू धार्मिक ग्रंथों के तमाम सिद्धांतों का हवाला देकर हिन्दुत्व की व्याख्या की थी। न्यायालय ने कहा था, ‘हालांकि, भारत में हम धर्मनिरपेक्षता को ‘सर्व धर्म समभाव’ के रूप में समझते हैं, जो सहिष्णुता और सभी धर्मों की समानता को समझने का एक दृष्टिकोण है।’ कोर्ट ने यह कहा था, ‘इस प्रकार प्राचीन भारतीय विचार द्वारा सर्व धर्म समभाव या धर्मनिरपेक्ष विचार और दृष्टिकोण को विकसित करने के लिए एक दार्शनिक और नृवंशविज्ञान मिश्रण प्रदान किया गया है। यह ज्ञानोदय ही वह सच्चा केंद्र है जिसे अब हिंदू धर्म के रूप में जाना जाता है।’

इसके बाद वर्ष 1995 में हिन्दू धर्म पर एक महत्वपूर्ण निर्णय में सर्वोच्च न्यायालय ने यह कहा था कि हिन्दू धर्म एक जीवन जीने की पद्धति है। हिन्दू धर्म या हिन्दुत्व को संकीर्णता की दृष्टि से नहीं देखा जाना चाहिए। मगर वर्ष 2016 में एक बार फिर यह शब्द चर्चा में आया था जब कथित सामाजिक कार्यकर्ता तीस्ता सीतलवाड़ ने याचिका दायर की थी और सर्वोच्च न्यायालय ने वर्ष 1995 के अपने निर्णय पर पुनर्विचार करने की याचिका को पूरी तरह से खारिज कर दिया था। उस समय 7 जजों की पीठ ने ‘हिन्दुत्व’ को जीवन शैली के रूप में परिभाषित करने वाले 1995 के फैसले पर पुनर्विचार करने से इनकार कर दिया था और साथ ही चुनावों में हिन्दुत्‍व शब्‍द के उपयोग पर प्रतिबंध लगाने की मांग खारिज कर दी गई थी।

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