भारत विविधताओं वाला देश है। दुनिया का यही ऐसा देश है, जहां छह मौसम होते हैं और इन्हीं मौसमों की वजह से खान-पान में बदलाव होता रहता हैं। आयुर्वेद में इन छह मौसमों के लिए अलग-अलग तरह का खान-पान बताया गया है, ताकि व्यक्ति की सेहत तो ठीक रहे ही, उसमें ऊर्जा भी संतुलित रहे। आयुर्वेद में इसे ऋतुचर्या कहा जाता है।
आहार महीने के अनुसार
चैत्र – मार्च-अप्रैल के महीने में चने का सेवन करें। यह रक्त संचार और रक्त को शुद्ध करता है एवं कई बीमारियों से भी बचाता है। चैत्र में नित्य सुबह नीम की 4-5 कोमल पत्तियों का उपयोग सभी दोषों से बचाता है।
वैशाख – अप्रैल-मई से गर्मी की शुरुआत हो जाती है। इसलिए बेल का प्रयोग अवश्य करना चाहिए। वैशाख में तेल का उपयोग बिल्कुल न करें, क्योंकि यह अस्वस्थ कर सकता है।
ज्येष्ठ – मई-जून माह में दोपहर में सोना स्वास्थ्यवर्धक होता है। ठंडी छाछ, लस्सी, जूस और अधिक से अधिक पानी का सेवन करें। बासी, गरिष्ठ भोजन एवं गर्म चीजों के सेवन से बचें।
आषाढ़ – जून-जुलाई में आम, पुराने गेहूं, सत्तू, जौ, भात, खीर, ठंडे पदार्थ, ककड़ी, परवल, करेला, बथुआ आदि का सेवन करें। गर्म प्रकृति की चीजों का प्रयोग स्वास्थ्य के लिए हानिकारक हो सकता है।
श्रावण – जुलाई-अगस्त माह में हरड़ का प्रयोग करें। हरी साग-सब्जियों का त्याग करें और दूध का भी कम प्रयोग करें। अल्पाहार लें, खासतौर से पुराने चावल, पुराना गेहूं, खिचड़ी, दही एवं हल्के सुपाच्य भोजन करें।
भाद्रपद- अगस्त-सितंबर बरसात का मौसम होता है। इस मौसम में हल्का सुपाच्य भोजन करना अच्छा रहता है, क्योंकि इस समय जठराग्नि मंद होती है।
आश्विन – सितंबर-अक्तूबर में दूध, घी, गुड़, नारियल, मुनक्का, गोभी आदि का सेवन करें, क्योंकि इस महीने में जठराग्नि तेज होती है। पर करेले का सेवन हानिकारक होता है।
कार्तिक – अक्तूबर-नवंबर माह में गर्म दूध, गुड़, घी, शक्कर, मूली आदि का सेवन करें और ठंडे पेय पदार्थों जैसे- छाछ, लस्सी, ठंडा दही, ठंडा फ्रूट जूस आदि से बचें।
अगहन/मार्गशीर्ष – नवंबर-दिसंबर के महीने में व्यायाम करना लाभदायक होता है। इस महीने में अधिक ठंडी तथा गर्म चीजों का सेवन नहीं करना चाहिए।
पौष – दिसंबर-जनवरी में दूध, खोया एवं खोये से बने पदार्थ, गोंद के लड्डू, गुड़, तिल, घी, आलू व आंवला आदि का प्रयोग करें, ये शरीर के लिए स्वास्थ्यवर्धक होते हैं। धनिया, ठंडे पदार्थ, पुराना अन्न, मोठ, कटु और रुक्ष भोजन न करें।
माघ – जनवरी-फरवरी के महीने में घी का सेवन लाभदायक होता है। इस महीने में मिस्री का सेवन नहीं करना चाहिए। गर्म और गरिष्ठ भोजन के साथ घी, नए अन्न, गोंद के लड्डू आदि का प्रयोग कर सकते हैं।
फाल्गुन – फरवरी-मार्च के महीने में सुबह के समय स्नान करना लाभदायक होता है। इस माह में चने का सेवन हानिकारक होता है। गुड़ का उपयोग करें।
फिलहाल जो ऋतु चल रही है, उसे हेमंत ऋतु कहा जाता है। हेमंत ऋतु को सर्दियों की आहट वाला मौसम भी कहा जाता है। भारतीय कैलेंडर के हिसाब से यह कार्तिक और पूस के महीने में आती है, जबकि अंग्रेजी कैलेंडर के अनुसार यह मध्य अक्तूबर से मध्य दिसंबर तक रहती है। हेमंत ऋतु में तापमान में गिरावट शुरू हो जाती है और मौसम ठंडा रहता है। वहीं दिन छोटे और रातें लंबी हो जाती हैं।
हेमंत ऋतु को त्योहारों की ऋतु भी कहा जाता है। इसमें दीवाली और बाकी त्योहार आते हैं। चूंकि इस मौसम में बदलाव शुरू हो जाता है और लोगों को सर्दी-जुकाम, श्वास रोग, जोड़ों का रोग जैसी बीमारियां होने लगती हैं। आयुर्वेद के अनुसार इस मौसम में स्निग्ध, उष्ण और हल्के पदार्थों का सेवन करना चाहिए।
इस ऋतु के तुरंत बाद शिशिर ऋतु यानी सर्दी आ जाती है और शरीर में जठराग्नि मंद पड़ जाती है। ऐसे में आंवला, अमरूद, संतरा, मौसमी, नींबू, अंजीर जैसे एंटी-आक्सीडेंट और विटामिन सी से भरपूर फल खाने चाहिए। इस मौसम में सोंठ, उड़द से बने पदार्थ, गुड़, गेहूं, नारियल, तिल का सेवन सेहत के लिए ठीक रहता है। दूध का सेवन विशेष रूप से करना चाहिए। भारतीय घरों में सर्दियों में अलग-अलग तरह के पकवान एवं लड्डू, अदरक, लहसुन की चटनी, जिमीकन्द, पोषक आहार आदि बनते हैं। इनका सेवन करना चाहिए। हालांकि आयुर्वेद में तीखे, कड़वे और कसैले खाद्य पदार्थों से बचने की सलाह दी जाती है। चूंकि यह मौसम ठंडा होता है, इसलिए ठंडे और वात बढ़ाने वाले पेय पदार्थों से भी बचना चाहिए। सर्दियों में ठंडे पदार्थों जैसे आइसक्रीम, ठंडे रसगुल्ले आदि से भी बचना चाहिए। भिंडी, पालक और दालें खाने से भी बचें।
उपवास न करें तो अच्छा रहेगा। तेल मालिश, धूप का सेवन, गर्म पानी का उपयोग करना चाहिए। ऊनी एवं गहरे रंग के कपड़े, जूते-मौजे आदि से शरीर को ढककर रखना चाहिए, ताकि ठंड से बचा जा सके। आयुर्वेद के अनुसार वसंत ऋतु में खान-पान का विशेष ध्यान रखना चाहिए।
सर्दियों के बीतने के बाद वसंत ऋतु आती है। इसमें हल्का और आसानी से पचने वाला भोजन ही करना चाहिए। मीठा, खट्टा, बहुत ज्यादा नमकीन या तैलीय भोजन नहीं करना चाहिए। जरूरत से ज्यादा भोजन करने से बचें। दही का सेवन नहीं करना चाहिए। खास बात यह है कि इस मौसम में दिन में सोना नहीं चाहिए। मधुरा और आंवला स्वाद की प्रधानता वाले ऐसे भोजन से बचना चाहिए जो ठोस/चिकना/भारी हो।
इस मौसम में कफ बनने की आशंका बनी रहती है। इसे कम करने के लिए मुंह में अंगुली डालकर उल्टी करनी चाहिए। हल्दी का प्रयोग उत्तम होता है। मध्वारिष्ट, द्राक्षारिष्ट, गन्ने का रस, सिरका आदि पीना स्वास्थ्य के लिहाज से लाभदायक होता है। इस मौसम में नीम की 15-20 कोंपलें, 2-3 काली मिर्च के साथ चबा-चबाकर खानी चाहिए। इससे रक्त शुद्ध होता है। कड़वे नीम के फूलों का रस 7 से 15 दिन तक पीने से त्वचा के रोग एवं मलेरिया जैसे ज्वर से भी बचाव होता है। (लेखिका खानपान विशेषज्ञ हैं)
मसाले ही नहीं, औषधि भी
हल्दी- चोट लगने से लेकर सर्दी-खांसी तक में हल्दी वाला दूध राहत देता है और रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाता है।
मेथी- इसमें एंटीआक्सीडेंट गुण पाए जाते हैं। यह हृदयरोग के लिए बहुत लाभकारी होता है, क्योंकि कोलेस्ट्रॉल को नियंत्रित करती है और पाचन संबंधी परेशानियां भी दूर करती है।
लौंग- इसमें मौजूद सुगंधित युजेनॉल हर मौसम में हर उम्र के व्यक्ति के लिए लाभदायक होता है, खासकर सर्दियों में इसका उपयोग अधिक होता है। लौंग का तेल भी औषधि के रूप में प्रयुक्त होता है।
धनिया- इसमें फाइबर होता है। इसका पानी वजन, ब्लड शुगर का स्तर कम करने, थायराइड, एलर्जी, शरीर से टॉक्सिन निकालने, किडनी स्वस्थ रखने एवं पेशाब का संक्रमण रोकने में सहायक होता है।
काली मिर्च – यह सर्दी-जुकाम, खांसी, जोड़ों के दर्द, कोलेस्ट्रॉल और हिचकी को नियंत्रित करने में कारगर होती है।
जीरा – इसमें मौजूद फ्लेवोनॉयड्स एंटीआक्सीडेंट का अच्छा स्रोत होता है। यह शरीर में फ्री-रेडिकल्स और हानिकारक कणों से लड़ने में मददगार होता है, जो कई गंभीर रोगों का कारण बनते हैं। यह एंटी-इन्फ्मेटरी और एंटीबैक्टीरियल गुणों से भरपूर है, इसलिए सूजन से जुड़ी स्थितियों से लड़ने में बहुत लाभकारी है।
सरसों – इसमें मौजूद सिनिग्रिन कैंसर विरोधी, जीवाणुरोधी, एंटीफंगल और एंटी-इन्फ्लेमेटरी गुण सूजन को रोकने में सहायक होते हैं। एंटीआॅक्सीडेंट गुण कोशिकाओं की रक्षा करते हैं, जबकि राइबोफ्लेविन नामक विटामिन माइग्रेन दूर करता है तथा सेलेनियम हड्डियों, दांतों, मसूड़ों, बालों और नाखूनों को मजबूत बनाता है।
सौंफ- यह मुंह के दुर्गंध को खत्म करती है। इसमें कॉपर, पोटैशियम, कैल्शियम, जिंक, मैंगनीज, विटामिन सी, आयरन, सेलेनियम और मैग्नीशियम जैसे खनिजों के अलावा, भरपूर मात्रा में फाइबर होता है। इसका एंटी-स्पास्मोडिक पेट की मांसपेशियों को आराम देते हैं और गैस, ब्लोटिंग और अपच जैसी समस्याओं से राहत दिलाते हैं। यह मधुमेह, पित्त को शांत करने के साथ भोजन पचाने, भूख बढ़ाने, वीर्य वृद्धि, वजन घटाने, रक्तचाप को नियंत्रित रखने में सहायक होती है।
इलायची – इसमें मौजूद पोटैशियम व मैग्नीशियम रक्तचाप को नियंत्रित रखते हैं, जबकि एंटीआक्सीडेंट गुण हृदय की कार्यक्षमता बढ़ाता है। इसमें पाया जाने वाला सिनेओल तेल सांस की दुर्गंध दूर करता है और दांतों को सड़ने से बचाता है। इसका फाइबर, एंटी-इन्फ्लेमेटरी व पित्तनाशक गुण पाचन समस्या, शरीर में जलन व सूजन कम करता है व मुंह के छाले जल्दी ठीक करता है। इलायची की सुगंध तनाव को कम करता है, जिससे अच्छी नींद आती है।
दालचीनी- यह एंटीआक्सीडेंट, एंटी-बैक्टीरियल, एंटी-फंगल व एंटी-वायरल गुणों से भरपूर होती है। यह टाइप-2 मधुमेह के खतरे को कम करती है, रक्तचाप नियंत्रित करने के साथ कैंसर से बचाव, पाचन संबंधी समस्या और सिरदर्द रोकने में भी सहायक होती है।
तेजपात- इसमें मौजूद विटामिन ए, बी-6 और सी रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाते हंै। यह बैड कोलेस्ट्रॉल को कम करता है, पाचन व पेट संबंधी समस्या दूर करता है तथा उच्च रक्तचाप, मधुमेह, सूजन, जोड़ों व मांसपेशियों में दर्द से राहत देता है।
जायफल- इसमें एंटी-आक्सीडेंट्स, एंटी-बैक्टीरियल, एलाल्जेसिक, एंटी-इन्फ्लेमेटरी, वातहर व एंटी-ट्यूमर गुण होते हैं। यह रोग प्रतिरोधक क्षमता मजबूत करता है, सांस की दुर्गंध व दांतों की कैविटी, त्वचा संबंधी समस्या, गठिया व जोड़ों के दर्द, सूजन तथा कैंसर के खतरे को कम करने में सहायक होता है। पाचन, गैस व बदहजमी के अलावा इसमें मौजूद मैरिस्टिसिन नामक यौगिक याददाश्त में सुधार करता है।
हींग – इसकी तासीर गर्म होती है। इसमें एंटी-इन्फ्लेमेटरी, एंटी-वायरस और एंटी-बैक्टीरियल गुण होते हैं। यह पाचन शक्ति बढ़ाता है व अपच, गैस और पेट में मरोड़, रक्तचाप, सूखी खांसी, और सांस संबंधी समस्याओं से भी राहत दिलाता है।
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