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ठगी का नया धंधा : ‘डिजिटल अरेस्ट’

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नागार्जुन

योगेंद्र तिवारी 68 वर्ष के हैं। वे मुंबई में कांदीवली पश्चिम स्थित भूमि रेजिडेंसी सोसाइटी में रहते हैं। गत 14 सितंबर को खुशी शर्मा नाम की एक महिला ने उन्हें फोन किया। उसने खुद को भारतीय दूरसंचार नियामक प्राधिकरण (ट्राई) की अधिकारी बताया। महिला ने कहा कि कोई तीसरा व्यक्ति उनके फोन नंबर और आधार नंबर का गलत उपयोग कर रहा है। उनके आधार कार्ड पर एक और नंबर लिया गया है, जिसका उपयोग अवैध गतिविधियों के लिए किया जा रहा है। इसलिए उनके नंबर को साइबर क्राइम ब्रांच को उपलब्ध कराना होगा। उसने तुरंत कॉन्फ्रेंस कॉल पर किसी व्यक्ति को जोड़ा, जिसने खुद को साइबर अपराध विभाग का अधिकारी बताया।

 

साइबर अपराधियों से निपटेंगे कमांडो

देश में साइबर अपराध की बढ़ती घटनाओं को देखते हुए केंद्र सरकार ने कड़ा कदम उठाया है। साइबर अपराधियों से निपटने के लिए 1,000 ‘साइबर कमांडो’ को प्रशिक्षित किया जा रहा है। ये कमांडो देशभर में कानून लागू करने वाले अधिकारी हैं। इन्हें 6 महीने तक साइबर अपराध से जुड़ी हर तकनीकी और सूक्ष्म जानकारियों से लैस किया जाएगा। आईआईटी मद्रास प्रवर्तक टेक्नोलॉजीज फाउंडेशन ने यह प्रशिक्षण कार्यक्रम तैयार किया है। ‘साइबर कमांडो’ न केवल देश की साइबर रक्षा क्षमताओं को मजबूती प्रदान करेंगे, बल्कि साइबर हमलों से संवेदनशील डेटा की सुरक्षा करेंगे और डिजिटल संप्रभुता भी बनाए रखेंगे। इन्हें खासतौर से डिजिटल अपराध और डिजिटल अरेस्ट के तौर-तरीकों के बारे में बताया जा रहा है, ताकि वे साइबर अपराधियों तक पहुंच सकें।

क्या करें?

  1. पुलिस या किसी भी जांच एजेंसी के अधिकारी फोन पर न तो धमकी देते हैं और न ही किसी को ‘डिजिटल अरेस्ट’ करते हैं।
  2. आरबीआई या कोई भी जांच एजेंसी किसी के खाते का सत्यापन नहीं करती। ऐसे मामलों में पहले नोटिस भेजा जाता है।
  3. फोन के अधिक प्रयोग या गैर कानूनी प्रयोग को लेकर ट्राई की ओर से किसी को फोन नहीं किया जाता है।
  4. ऐसी कोई व्यवस्था नहीं है, जिसमें कोई सरकारी बैंक या रिजर्व बैंक किसी के बैंक खाते से पैसे हस्तांरित करा कर उसकी जांच करे।
  5. यदि कोई पुलिस, सीबीआई, साइबर या रिजर्व बैंक अधिकारी बन कर फोन करे या अन्य किसी भी माध्यम से धमकाए और पैसे मांगे तो नजदीकी थाने में उसकी शिकायत करें।
  6. संदिग्ध कॉल आने पर साइबर हेल्पलाइन नंबर 1930 पर कॉल करें या www.cybercrime.gov.in पर या सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर @cyberdost पर भी शिकायत दर्ज करा सकते हैं।

फिर फर्जी अधिकारी ने यह कहते हुए कि वह शिकायत को सीबीआई को भेज रहा है, तीसरे व्यक्ति केशव को कॉल पर लिया। उसने खुद को सीबीआई अधिकारी बताया। उसने योगेंद्र तिवारी से आनलाइन साइबर अपराध विभाग में शिकायत करने को कहा। जब उन्होंने कहा कि वे आनलाइन शिकायत करना नहीं जानते तो ठगों ने वीडियो कॉल कर उन्हें अपना आधार कार्ड दिखाने को कहा। फिर नाम और आधार नंबर नोट करने के बाद कहा कि उनके बैंक खाते से कुछ बड़े लेन-देन हुए हैं, जो अवैध हैं। इस तरह, साइबर अपराधियों ने डरा-धमका कर उक्त बुजुर्ग को कई घंटे तक ‘डिजिटल अरेस्ट’ करके रखा और उनसे 50 लाख रुपये ऐंठ लिए। वे इतने डरे हुए थे कि उन्होंने इस बारे में अपने परिजनों को भी नहीं बताया। बाद में उन्होंने डरते-डरते अपने रिश्तेदारों को बताया और फिर कांदीवली (पूर्व) स्थित साइबर अपराध विभाग में शिकायत की।

इसी तरह, उत्तर प्रदेश में ग्रेटर नोएडा (पश्चिम) स्थित सुपरटेक इको विलेज-2 में लक्ष्मी मिश्र को एक व्हाट्सएप कॉल आया। कॉलर की प्रोफाइल पर किसी पुलिस अधिकारी की फोटो लगी हुई थी। उसने लक्ष्मी को यह कहकर डराने की कोशिश की कि वे अपने फोन पर कुछ गलत वेबसाइट को देखती हैं। उनके खिलाफ लखनऊ में शिकायत दर्ज की गई है। लक्ष्मी ने तुरंत अपने पति अनुपम मिश्र को इसकी जानकारी दी। अनुपम ने उस फर्जी पुलिस अधिकारी को धमकाया तो उसने फोन काट दिया। उसके बाद उन्होंने कई बार फोन लगाया, लेकिन उसने फोन नहीं उठाया। जिस नंबर से फोन आया था, वह पाकिस्तान का था।

क्या है डिजिटल अरेस्ट?

इसमें कोई अतिश्योक्ति नहीं कि नई तकनीक ने काम को आसान बना दिया है। लेकिन इसने साइबर अपराध को भी जन्म दिया है। साइबर अपराधी इन्हीं तकनीकों के जरिये नए-नए हथकंडे अपनाकर लोगों को शिकार बना रहे हैं और उनके जीवन भर की कमाई लूट रहे हैं। ‘डिजिटल अरेस्ट’ आनलाइन ठगी का ऐसा ही एक तरीका है।
साइबर अपराधी वीडियो कॉल और दूसरे आनलाइन माध्यमों से लोगों से संपर्क करते हैं और उन्हें डरा-धमका कर या लालच देकर घंटों या कई दिन तक कैमरे के सामने बैठे रहने के लिए मजबूर करते हैं। वे पीड़ित को कैमरे के सामने से हटने ही नहीं देते। पीड़ित से कहा जाता है कि जब तक अधिकारी उससे जरूरी पूछताछ पूरी नहीं कर लेते, तब तक वह अपनी जगह बैठा रहे। इस बीच, वे धमकाते रहते हैं कि अगर फोन काटा तो, इसे कानून का उल्लंघन माना जाएगा और इसके लिए उसे गिरफ्तार भी किया जा सकता है। पीड़ित व्यक्ति यह सोचकर बैठा रहता है या उनके सवालों के जवाब देता रहता है कि उसने जब कुछ किया ही नहीं है, तो ‘जांच’ में सहयोग करने में क्या दिक्कत है। सामने वाला कैमरे के सामने रहने के लिए ही तो कह रहा है। अधिकांश लोग पुलिस के नाम से ही डर जाते हैं, इसलिए अपराधी जैसा कहते हैं, वैसा करते रहते हैं।

अमूमन वे लोग ‘डिजिटल अरेस्ट’ होते हैं, जो बदलती प्रौद्योगिकी के प्रति जागरूक नहीं होते। प्राय: ऐसे लोग अपराधियों के झांसे में आकर ‘डिजिटल अरेस्ट’ हो जाते हैं। एक बार जब व्यक्ति साइबर अपराधियों की गिरफ्त में आ जाता है, तो वे उससे जरूरी व्यक्तिगत सूचनाएं हासिल कर अपने खाते से पैसे हस्तांतरित कर लेते हैं। कई बार तो अपराधी पीड़ित को इतना डराते हैं कि वे दबाव में आकर पैसे उनके बताए खाते में हस्तांतरित कर देते हैं।
व्हाट्सएप करने वाले अपराधी अक्सर अपने प्रोफाइल में किसी पुलिस अधिकारी की फोटो लगाते हैं। वीडियो कॉल पर सामने वाले व्यक्ति को भरोसा दिलाने के लिए साइबर अपराधी बाकायदा पुलिस थाने का सेटअप भी तैयार रखते हैं, जिसे देखकर व्यक्ति डर जाता है। उसे विश्वास हो जाता है कि उससे पुलिस या किसी जांच एजेंसी का अधिकारी ही पूछताछ कर रहा है। इसलिए भोले-भाले लोग डर कर उनकी बातों में आ जाते हैं। अपराधी यह कह कर लोगों को अपने झांसे में लेते हैं कि उनके आधार कार्ड, सिम कार्ड, बैंक खाते का उपयोग अवैध गतिविधियों में हो रहा है। इससे वह व्यक्ति इतना डर जाता है कि फोन भी नहीं काट पाता।

पढ़े-लिखे लोग भी शिकार

आजकल लगभग हर व्यक्ति को ऐसे अवांछित फोन किए जा रहे हैं। जो सजग हैं, वे बच जाते हैं। लेकिन सभी लोग लक्ष्मी और अनुपम की तरह जागरूक नहीं हैं। इसलिए वे आसानी से साइबर अपराधियों के झांसे में आ जाते हैं और जीवन भर की कमाई गंवा देते हैं। आगरा (उत्तर प्रदेश) के सुभाष नगर में रहने वाली मालती वर्मा, जो राजकीय कन्या जूनियर हाईस्कूल में शिक्षिका थीं, को किसी ने 30 सितंबर को दोपहर 12 बजे फोन किया। उस समय वह स्कूल में थीं। फोन करने वाले ने अपना नाम इंस्पेक्टर विजय कुमार बताया और कहा कि उनकी बेटी एक अपराध में पकड़ी गई है।

लड़की को छोड़ने के एवज में उसने एक लाख रुपये मांगे। मालती वर्मा को भरोसा दिलाने के लिए उसने लड़की की आवाज भी सुनाई। इससे उन्हें सदमा लगा और उनकी तबीयत बिगड़ने लगी। हालांकि बेटे ने कहा भी कि फर्जी कॉल थी, लेकिन वे सदमे से बाहर नहीं आईं। घर पहुंचने के बाद वे बेहोश होकर गिर गईं। परिजन उन्हें अस्पताल ले गए, जहां उन्हें मृत घोषित कर दिया गया। उनके पति शिवचरन लाल वर्मा की शिकायत पर जगदीशपुरा थाने में साइबर अपराध और आईटी एक्ट की धारा के तहत मामला दर्ज किया गया है।

साइबर विशेषज्ञों के अनुसार, ‘डिजिटल अरेस्ट’ ठगी का एक नया तरीका है। साइबर अपराधी सोशल मीडिया या अन्य माध्यमों से लोगों की व्यक्तिगत जानकारी जुटाते हैं, फिर उन्हें डरा-धमकाकर पैसे ऐंठते हैं। इसी तरह, अपराधी व्हाट्सएप पर वीडियो कॉल करते हैं। जब कोई फोन उठाता है तो उन्हें निर्वस्त्र लड़की या महिला दिखती है। इसी दौरान अपराधी व्यक्ति की तस्वीरें ले लेते हैं और उसमें छेड़छाड़ कर उसकी अश्लील वीडियो या तस्वीर बना कर ब्लैकमेल कर पैसे ऐंठते हैं।

हाल ही में गोरखपुर में इंजीनियरिंग की पढ़ाई कर रही नागालैंड की एक छात्रा को ‘डिजिटल अरेस्ट’ कर साइबर अपराधियों ने उसका अश्लील वीडियो बनाया और उसे ब्लैकमेल किया। ‘डिजिटल अरेस्ट’ के लगातार बढ़ते मामलों को देखते हुए सरकार और साइबर एजेंसियां लगातार लोगों को जागरूक कर रही हैं। पुलिस भी लगातार ऐसे गिरोहों की धर-पकड़ कर रही है। इसके बावजूद, नित्य ठगी के मामले सामने आ रहे हैं। पढ़े-लिखे लोग भी इसके शिकार हो रहे हैं। साइबर ठग हर बार नए तरीके से ठगी को अंजाम दे रहे हैं और पुलिस के सामने चुनौती पेश कर रहे हैं। ऐसे में पुलिस बेबस नजर जाती है।

ऐसे फंसाते हैं ठग

साइबर अपराधी सामान्य कॉल, व्हाट्सएप और टेलीग्राम के जरिए कॉल या मैसेज से लोगों से संपर्क करते हैं और खुद को आईबी, सीबीआई, पुलिस या ट्राई का अधिकार या कोरियर कंपनी का अधिकारी-कर्मचारी बता कर झांसे में लेते हैं। कई बार ठग सोशल मीडिया पर नामी कंपनियों से मिलते-जुलते नाम के लिंक या फर्जी ईमेल आईडी बना लेते हैं और कम समय में अधिक मुनाफा या शेयर के दाम बढ़ने या केवाईसी कराने और सस्ती दर पर किराये पर कमरा देने का झांसा देते हैं। लिंक पर क्लिक करते ही लोग साइबर अपराधियों के जाल में फंस जाते हैं। फिर शुरू होता है साइबर अपराधियों की ओर से उन्हें आनलाइन माध्यम से डराने का सिलसिला।

ठग फर्जी अधिकारी बनकर लोगों पर झूठे आरोप लगाते हैं और कहते हैं कि उन्हें डिजिटल अरेस्ट किया गया है, वे न तो किसी को फोन करें और न ही घर से बाहर निकलें। फिर वे दबाव डालकर लोगों से पैसे मांगते हैं। कई मामलों में तो वे कोर्ट रूम, पुलिस और फर्जी गिरफ्तारी वारंट दिखाकर लोगों को भरोसा दिला देते हैं कि आरोप सही हैं। इस तरह की ठगी और फर्जीवाड़े को देखते हुए ही बैंक, बीमा कंपनियां, दूरसंचार सेवा प्रदाता कंपनियां आदि लगातार मैसेज भेजकर अपने ग्राहकों को जागरूक करती रहती हैं कि उनकी ओर से ओटीपी सहित कोई भी संवेदनशील जानकारी नहीं मांगी जाती है, इसलिए ग्राहक ऐसी सूचनाएं किसी से साझा न करें।

कई बार साइबर अपराधी तीर्थ यात्रा करने के इच्छुक लोगों को धार्मिक स्थलों पर होटल और धर्मशाला में कमरा दिलाने के नाम पर ठग लेते है। हाल के दिनों में मथुरा, वृंदावन जैसे धार्मिक स्थलों पर कमरा दिलाने के नाम पर ठगी के मामले सामने आए हैं। यही नहीं, आनलाइन ठगी का एक माध्यम एप भी है। गत 3 अक्तूबर को साइबर अपराधियों ने डाकघर के एक अधिकारी से फोन में एप डाउनलोड कराया और 10 लाख रुपये ठग लिए।

साइबर अपराध को अंजाम देने वाले लुटेरे सिर्फ भारत के ही नहीं हैं। इनमें चीन, ताइवान, थाईलैंड और अफ्रीका आदि देशों के भी हैं। ये नई प्रौद्योगिकी से लैस हैं, इसलिए अक्सर पुलिस इन तक पहुंच नहीं पाती। अभी हाल ही में पुलिस ने दिल्ली, गुजरात, राजस्थान, ओडिशा, कर्नाटक और महाराष्ट्र में छापेमारी कर साइबर ठगों के एक बड़े गिरोह का भंडाफोड़ कर 17 लोगों को गिरफ्तार किया था। इनमें चार ताइवान के थे, शेष 13 अपराधी गुजरात, महाराष्ट्र, झारखंड, ओडिशा और राजस्थान के थे।

ताइवानी नागरिक बीते एक वर्ष से भारत आवाजाही कर रहे थे। इन्होंने गिरोह के सदस्यों को पैसों के लेन-देन के लिए मोबाइल एप और दूसरी तकनीकी सहायता उपलब्ध कराई थी। गिरोह के सदस्य खुद को ट्राई, सीबीआई और साइबर अपराध शाखा का अधिकारी बताकर लोगों को ‘डिजिटल अरेस्ट’ कर पैसे लूटते थे। एक बुजुर्ग की शिकायत पर पुलिस ने यह कार्रवाई की थी। यह गिरोह देश के अलग-अलग ठिकानों से कॉल सेंटर चला रहा था। गिरोह के लोग जिस मोबाइल एप का प्रयोग करते थे, उसे गिरफ्तार ताइवानी ठगों ने ही बनाया था। इसी से उन्होंने आनलाइन वॉलेट भी जोड़ रखे थे, जिसमें ठगी के पैसे आते थे। इसके बाद वे एप के माध्यम से पैसे बैंक खातों और दुबई के क्रिप्टो खातों में भेजते थे। इस गिरोह के विरुद्ध देशभर में 450 मामले दर्ज हैं। ये अब तक 5,000 करोड़ रुपये ताइवान और चीन भेज चुके थे।

साइबर अपराधी आधुनिक तकनीक से लैस हैं, इसलिए सतर्कता ही एकमात्र उपाय है, जिससे लोग आॅनलाइन ठगी से बच सकते हैं।

ऐसे बचें ठगी से

  • अनजान नंबर से आने वाले कॉल, वीडियो कॉल न उठाएं।
  • 92 कोड वाले नंबर से आने वाले कॉल को नजरंदाज करें।
  • यदि अनजान नंबर से फोन कर कोई डराए या डराने की कोशिश करे तो तुरंत इसकी सूचना पुलिस को दें।
  • यदि कोई फोन कर आपके बेटे-बेटी को गिरफ्तार करने या उसे छोड़ने के बदले पैसे मांगे, तब उस पर भरोसा न करें। अपने स्तर पर अधिकृत स्थान से इसकी पुष्टि करें।
  • पैसों का लेन-देन अधिकृत और सत्यापित माध्यम से ही करें।
  • लालच में आकर कोई एप डाउनलोड न करें। गूगल प्ले स्टोर से ही एप डाउनलोड करें।
  • क्रेडिट कार्ड, डेबिट कार्ड, बैंक खाता या बीमा से जुड़ी कोई भी जानकारी साझा न करें। इससे संबंधित कोई विवाद चल रहा हो तो बैंक या बीमा कंपनी से संपर्क करें।
  • गूगल से किसी सेवा प्रदाता का कस्टमर केयर नम्बर बिल्कुल न लें। अन्यथा आनलाइन ठगी के शिकार हो सकते हैं।
  • पार्सल, कूरियर के नाम पर आने वाले कॉल को भी नजरअंदाज करें या उसकी पुष्टि करें।
  • आपके बैंक खाते से कोई लेन-देन हुआ है, जिसकी आपको जानकारी नहीं है, तो बैंक को इसकी सूचना दें।
  • केवाईसी के लिए यदि कोई लिंक भेजे, चाहे बैंक कर्मचारी ही क्यों न हो, उसे क्लिक न करें।
  • आयकर रिटर्न के लिए कोई आपके बैंक का विवरण मांगे तो न दें।
  • घर बैठे आसानी से कमाई करने या शेयर से पैसा कमाने वाले किसी भी लालच मे न पड़ें।
  • किसी से ओटीपी साझा न करें या ऐसा कोई मैसेज या व्हाट्सएप पर आने वाले लिंक को क्लिक न करें।
    ल्ल लॉटरी वाले किसी भी ईमेल पर ध्यान न दें।

 

 

 

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