लखनऊ से एक विवादास्पद मामला सामने आया है जिसमें वक्फ बोर्ड ने 250 साल पुराने शिवालय मंदिर को अपनी संपत्ति के रूप में दावा किया है। यह मामला सआदतगंज के शिव मंदिर से जुड़ा है, जिसे वक्फ बोर्ड ने अपने दस्तावेजों में दर्ज कर लिया है। यह जानने के लिए कि यह कैसे हुआ, हमें इतिहास और स्थानीय परिस्थितियों को समझना होगा।
सआदतगंज का यह शिवालय लगभग 250 वर्ष पुराना है और स्थानीय लोगों के लिए यह एक श्रद्धा का केंद्र है। हालांकि, वक्फ बोर्ड ने पिछले आठ वर्षों में इस मंदिर को अपने कब्जे में लेने का दावा किया है। स्थानीय निवासी, लक्ष्मण, ने कहा कि “हम नहीं समझ पा रहे हैं कि वक्फ का दावा कैसे संभव है। यह मंदिर सनातन धर्म का केंद्र है और यहां वर्षों से पूजा अर्चना होती आई है।”
वक्फ बोर्ड का दावा है कि मंदिर की भूमि वक्फ की संपत्ति है। इसके पीछे का कारण एक कागज है जो यह दर्शाता है कि खसरा नंबर 1944 शिवालय के नाम पर दर्ज है। 2016 में वक्फ बोर्ड ने इसे अपनी संपत्ति घोषित किया। इस प्रक्रिया में कुछ हलफनामे भी शामिल हैं, जिसमें कहा गया है कि यह भूमि वक्फ में दर्ज की जानी चाहिए।
सैयद अब्बास आमिर का एक हलफनामा भी इस मामले में सामने आया है, जिसमें उन्होंने कहा था कि “शिवालय की जमीन को वक्फ में शामिल किया जाना आवश्यक है।” यह दावे इस बात की ओर इशारा करते हैं कि शायद कोई प्रशासनिक लापरवाही या राजनीतिक दबाव काम कर रहा है।
एक मंदिर की जमीन वक्फ की संपत्ति कैसे हो सकती है?” वक्फ संपत्ति केवल उन जमीनों पर लागू होती है जो मुसलमानों द्वारा दान की गई हों लेकिन कोई भी मुस्लिम व्यक्ति मंदिर लिए दान नहीं कर सकता, इसलिए वक्फ बोर्ड के दावे पर निश्चित रूप से सवाल उठेगा।
इस पूरे मामले को और भी गंभीर बनाता है वक्फ बोर्ड की गतिविधियाँ, जिसमें उन्होंने न केवल मंदिर की जमीन पर अवैध कब्जा किया। इसके बाद वक्फ बोर्ड ने यह जमीन माफिया मुख्तार अंसारी की पत्नी अफशां अंसारी को पट्टे पर दे दी। आरोप है कि अफशां अंसारी ने वक्फ बोर्ड से लीज पर ली गई जमीन को प्लॉटों में बांटकर बेच दिया। यह सब तब हुआ जब उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी की सरकार थी।
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