स्वामी विवेकानंद ने कहा था कि ‘जीवन में सफल होना है, तो सबसे पहले एक विचार को अपना जीवन बना लो। उस विचार के बारे में सोचो, उसके सपने देखो, उस विचार को जिओ। अपने दिमाग, मांसपेशियों, नसों, शरीर के हर हिस्से को उस विचार में डूब जाने दो और बाकी सभी विचारों को किनारे रख दो। सफल होने का यही मूल मंत्र है।’ जिस व्यक्ति ने इस मंत्र को हरियाणा में हकीकत की जमीन पर उतारा, उनका नाम है- मनोहर लाल।
मनोहर लाल को उस वक्त हरियाणा का मुख्यमंत्री बनाया गया, जब हरियाणा की जनता को कांग्रेस के कुशासन से मुक्ति मिली थी। भूपेन्द्र हुड्डा करीब साढ़े नौ साल तक मुख्यमंत्री रहे और उनके बेटे दीपेन्द्र हुड्डा उस वक्त रोहतक से सांसद थे।
पर्ची और खर्ची का खेल खत्म
हरियाणा के इस चुनाव में जिस पर्ची और खर्ची की गूंज सुनाई दी वह खेल सूबे के मुख्यमंत्री रहे मनोहरलाल के कार्यकाल में खत्म हुआ। उन्हीं के कार्यकाल में मेरिट के आधार पर नौकरियों में भर्ती शुरू हुई और हरियाणा के युवाओं में एक नई उम्मीद जागी। उन्होंने ने युवक-युवतियों के मन से निराशा को भगाकर एक नया विश्वास पैदा किया है-तैयारी करो, हरियाणा में मेरिट के आधार पर नौकरियां मिलेंगी। उनके कार्यकाल में करीब डेढ़ लाख युवाओं को मेरिट के आधार पर सरकारी नौकरी मिली।
साल 2014 से पहले हरियाणा में ज्यादातर ऐसे ही नेता मुख्यमंत्री की कुर्सी पर काबिज हुए, जिन्हें सिर्फ अपने जिले और अपने इलाके से बाहर कुछ भी नजर नहीं आता था। उनकी राजनीति सिर्फ अपने बच्चों को जमाने तक सीमित थी। हाल यह था कि उनके जिले और उनके इलाके से बाहर निकलते ही विकास ठप हो जाता था। विकास में भेदभाव उनकी संकीर्ण सोच और संकुचित राजनीति की कहानी बयां करता था। उस वक्त जातिवाद और क्षेत्रवाद के आधार पर विकास और नौकरियों में भेदभाव चरम पर था। साल 2014 में हरियाणा प्रदेश की कमान बतौर मुख्यमंत्री मनोहर लाल के हाथों में आई और यहां से हरियाणा की राजनीति बदली।
महत्वपूर्ण फैसलों से बनाई छवि
तीन लालों के लिए मशहूर हरियाणा की राजनीति में चौथे लाल मनोहर लाल का पदार्पण हुआ। उन्हें संघर्षशीलता और गरीबी विरासत में मिली थी। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रचारक के नाते उन्होंने बसों से घूम-घूमकर देश और प्रदेश को समझा। आम आदमी के दु:ख दर्द को जाना और उस दर्द को महसूस भी किया। कदम-कदम पर संघर्ष और अभावों ने उनके जीवन और व्यक्तित्व को निखारा।
वे अपने गुजरे हुए वक्त-अपने संघर्षों को कभी नहीं भूले, जिसकी झलक उनकी नीतियों और मुख्यमंत्री रहते उनके क्रांतिकारी फैसलों में साफ नजर आती रही। उन्होंने प्रदेश की बहन-बेटियों की सुरक्षा को सर्वोच्च प्राथमिकता दी और हर जिले में महिला थाने खोले। सबसे उपेक्षित विमुक्त – घुमंतू समाज की पीड़ा जब उनके सामने रखी गई तो संवेदनशीलता दिखाते हुए वे उनके बीच में गए और उनके उत्थान के लिए अनेक कार्य किए। जिसके परिणामस्वरूप सचिवालय से लेकर राजनैतिक गलियारे तक विमुक्त घुमंतू समाज को एक पहचान मिली। इसी कड़ी में पंचायती राज में सबसे बड़े सुधारों का जिक्र करना बेहद जरूरी है।
तमाम विरोधों के बावजूद हरियाणा में पढ़ी-लिखी पंचायतों के बारे में फैसला लिया और उस फैसले को सिरे भी चढ़ाया। इतना ही नहीं, पंचायतों में महिलाओं के लिए 50 फीसदी आरक्षण की व्यवस्था भी की गई ताकि हरियाणा की महिलाएं राजनीतिक रूप से सक्षम एवं सशक्त हो सकें। 2014 के बाद हरियाणा में बदलाव की बुनियाद रखी गई। उनके कार्यकाल में बिजली की सप्लाई 24 घंटे प्रत्येक गांव में मिले, इसके लिए नीति बनी। मुख्यमंत्री खिड़की खुली, हर जिला मुख्यालय पर समस्या निवारण केंद्र खुले, नई खेल नीति बनी जिसका परिणाम रहा कि तीसरी बार हरियाणा में कमल खिला और पूर्ण बहुमत की सरकार ने आकार लिया।
आंदोलन को संभाला
हरियाणा हमेशा से आंदोलनों की वजह से चर्चा में रहा है। मनोहरलाल के मुख्यमंत्री बनने के बाद भी यहां आंदोलन की आग धधक रही थी। आंदोलनकारी जान की परवाह किये बगैर सड़कों पर थे। राज्य की स्थिति बेपटरी होने लगी तभी नियंत्रण के लिए मुख्यमंत्री से गोली चलाने का आदेश मांगा गया लेकिन उन्होंने अपनी सूझबूझ और अनुभव के चलते राज्य में शांति स्थापित करने का काम किया। उन्होंने अराजकता के बीच कड़े शब्दों में कहा कि स्थिति को समझदारी के साथ संभाला जाना चाहिए।
महापुरुषों से कराया परिचय
वरिष्ठ नेता महापुरुष किसी जाति या वर्ग के नहीं होते, उनकी शिक्षाएं सभी को मिलनी चाहिए, उनके त्याग और तपस्या की गाथाएं युवाओं को जानना जरूरी है। इस परंपरा को मनोहर लाल कार्यकाल में ही आगे बढ़ाया गया। राजकीय स्तर पर महापुरुषों की जन्म जयंती मानने का कार्य किया गया।
केंद्र और राज्य में लगातार तीसरी बार खिला कमल
केन्द्र में लगातार तीसरी बार सरकार बनने के बाद एक सवाल बलवती हो रहा था कि क्या हरियाणा में तीसरी बार भाजपा की सरकार बन सकेगी, क्योंकि लोकसभा चुनाव से पहले हरियाणा में मुख्यमंत्री को बदला गया था। लोकसभा चुनाव में 10 में से 5 सीटें भाजपा के खाते में आर्इं जो कहीं न कहीं राज्य की जनता के रुख को बदलता दिखा रही थी। इस बात पर भी भ्रम फैलाया गया कि मुख्यमंत्री को ऐन मौके पर हटाया जाना आलाकमान की नाराजगी का नतीजा है। जबकि सच यह था कि उनके अनुभव का लाभ सीधे तौर पर केंद्र के माध्यम से लिया जाना था।
वे मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा देकर केंद्रीय मंत्रिमंडल का हिस्सा बने। इस चुनाव में विजय हासिल कैसे होगी, इस पर केन्द्र और राज्य की निगाहें टिकी थीं। लेकिन अथक प्रयास और जनकल्याणकारी योजनाओं का परिणाम रहा कि जनता ने एक बार फिर परोक्ष रूप से मनोहरलाल की नीतियों को सराहा और नायब सिंह को अपना आशीर्वाद देकर सरकार बनाने में महती भूमिका निभाई।
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