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न्याय की देवी का इतिहास और नए प्रतीक: जानें, भारत में कब और कैसे आई?

Published by
Mahak Singh

न्याय का सिद्धांत सबके लिए समान है, और न्याय की देवी इसका प्रतीक मानी जाती हैं। सदियों से, न्याय की देवी को विश्वभर की अदालतों में तराजू, तलवार, और आंखों पर बंधी पट्टी के साथ दर्शाया जाता है। यह प्रतीक न्याय के निष्पक्ष और समान वितरण को दर्शाता है, जहां सभी बिना भेदभाव के बराबर होते हैं।

हाल ही में भारत में न्याय की देवी के प्रतीक में बदलाव की पहल की गई है। जहां पहले उनकी आंखों पर पट्टी बंधी होती थी, अब इसे हटा दिया गया है। इसके साथ ही उनके एक हाथ में तलवार की जगह संविधान ने ले ली है। यह बदलाव भारतीय न्यायपालिका की एक नई दिशा की ओर संकेत करता है, जो कहता है कि “कानून अब अंधा नहीं है” और निर्णय पारदर्शी तरीके से संविधान के आधार पर किए जाएंगे।

न्याय की देवी का इतिहास

न्याय की देवी का इतिहास हजारों साल पुराना है और इसकी उत्पत्ति प्राचीन ग्रीक और मिस्र की सभ्यताओं में हुई थी। मिस्र की देवी ‘मात’ को न्याय, सत्य और व्यवस्था की देवी माना जाता था। प्राचीन ग्रीक पौराणिक कथाओं में, न्याय की देवी ‘थेमिस’ और उनकी बेटी ‘डाइक’ न्याय और विधि का प्रतिनिधित्व करती थीं। डाइक को हमेशा तराजू लिए हुए दिखाया जाता था, जो न्याय के निष्पक्ष निर्णय का प्रतीक थी।

न्याय की देवी के प्रतीक

न्याय की देवी के तीन मुख्य प्रतीक होते हैं – तराजू, तलवार, और आंखों पर बंधी पट्टी।

तराजू

यह निष्पक्षता का प्रतीक है, जो दर्शाता है कि अदालतों में प्रस्तुत सभी साक्ष्यों को संतुलित रूप से परखा जाना चाहिए। इसे देखकर यह संदेश मिलता है कि कानून सभी पक्षों को निष्पक्ष तरीके से तौलता है।

तलवार

यह न्याय की ताकत और शक्ति का प्रतीक है। यह संदेश देती है कि न्याय निष्पक्ष है और उसका निर्णय दृढ़ होता है। तलवार बिना म्यान के होती है, जो बताती है कि न्याय पारदर्शी है और साक्ष्यों की बिना पक्षपात की जांच की जाती है।

आंखों पर पट्टी

यह न्याय की निष्पक्षता और वस्तुनिष्ठता का प्रतीक है। इसका मतलब यह है कि निर्णय किसी भी बाहरी प्रभाव जैसे राजनीति, धन, या प्रसिद्धि से प्रभावित नहीं होते। न्याय अंधा होता है और केवल साक्ष्यों और तथ्यों पर आधारित होता है।

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