विश्लेषण

हिंदू पर्व और मुस्लिम इलाके : सेक्युलर भारत में मुस्लिम इलाके कैसे हुए ?

Published by
सोनाली मिश्रा

हिंदू पर्वों पर निकाली जाने वाली शोभायात्राएं या फिर विसर्जन हिंदुओं पर हुई हिंसा के बिना नहीं मन सकता है, ऐसा प्रतीत हो रहा है। यह भी हैरानी की बात है कि हिन्दू पर्वों पर जब शोभायात्रा आदि निकालनी हों तो मुस्लिम बाहुल्य क्षेत्र मुस्लिम इलाका हो जाता है, मगर यदि हिन्दू अपने पर्वों में खानपान में शुचिता की बात करते हुए खाने-पीने की दुकानों पर दुकानदार का नाम लिखवाने की बात करे, तो वह सांप्रदायिक हो जाता है।

उत्तर प्रदेश मे बहराइच में जिस प्रकार से राम गोपाल मिश्रा की हत्या हुई है, उससे यह पता चलता है कि घृणा किस सीमा तक थी। गोपाल की पोस्टमार्टम रिपोर्ट बहुत कुछ कहती है। उसके शरीर पर लगी गोलियां जैसे यह धमकी देती हैं कि यह इलाका खतरनाक है। इस इलाके में गोलियां मिलेंगी। कहा जा रहा है कि वह मुस्लिम इलाके में मुस्लिमों का झंडा उतार रहा था, इसलिए मार डाला गया। मगर एक प्रश्न सबसे महत्वपूर्ण उभरकर आता है कि क्या कथित मुस्लिम इलाके में झंडे को उतारना इतना बड़ा अपराध हो सकता है कि इतनी गोलियां मार दी जाएं?

ये कौन लोग हैं जो मुस्लिम इलाका, या उनका इलाका कह रहे हैं और झंडे को उतारने पर गोपाल मिश्रा की मौत को हल्का कर रहे हैं। प्रश्न यह भी है कि जब भारत का विभाजन मजहबी और इस्लामिक इलाके की जिद पर हो चुका है और पहले ही मुस्लिम पहचान के नाम पर पाकिस्तान बन चुका है तो शेष बचे भारत में फिर से इस्लामी पहचान की बात करना क्या फिर से विभाजन की बात करना नहीं है? दुख की बात तो यह है कि खुद को धर्मनिरपेक्ष कहने वाले राजनीतिक दल भी यही राग अलापते हैं कि कोई इलाका मुस्लिम इलाका था ? समाजवादी पार्टी की मीडिया सेल ने भी एक्स पर पोस्ट किया था कि

“बहराइच की पुलिस कप्तान खुद कह रही हैं कि हिन्दू जुलूस मुस्लिम एरिया से गुजर रहा था
सवाल ये है कि हिन्दू जुलूस जबरन मुस्लिम एरिया से क्यों गुजर रहा था ?
सवाल ये है कि जुलूस में आपत्तिजनक गाने ,नारे क्यों लगाए जा रहे थे ? पुलिस कहां थी ?
सवाल ये है कि जब गोपाल मिश्रा दूसरे घर में घुसकर झंडा बदल रहा था तब पुलिस कहां थी ?”

यदि किसी अधिकारी के मुंह से कुछ ऐसा निकल गया है, जो नहीं निकलना चाहिए था, तो क्या उसे आधार बनाकर राजनीतिक दल हिन्दू इलाका-मुस्लिम इलाका करेंगे? और यह नहीं भूलना चाहिए कि ये वही राजनीतिक दल है जिसने जब वह सत्ता में थी तो हिंदुओं के पावन पर्व संगम को लेकर बनी कुम्भ मेला समिति का अध्यक्ष आजम खान को बनाया था। यह भी कोई नहीं भूल सकता है कि कैसे अव्यवस्था के कारण मौनी अमावस्या पर प्रयागराज रेलवे स्टेशन पर मची भगदड़ में 37 हिन्दू श्रद्धालु मारे गए थे। उस समय भी मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने आजम खान से इस्तीफा नहीं लिया था।
हिंदुओं के पर्व तक हिंदुओं के नहीं रहने दिए जाते हैं। मगर किसी क्षेत्र में जैसे ही कुछ मुस्लिम बढ़ते हैं, वह इलाका उनका हो जाता है? और उसे राजनीतिक दलों द्वारा प्रमाणित भी किया जाने लगता है, यह सबसे बड़ा दुर्भाग्य है। भारत जैसे देश में मुस्लिम इलाके जैसी अवधारणा कैसे पनप सकती है? मगर यह पनप रही है और इसमें साथ दे रहे हैं तुष्टिकरण की राजनीति कर रहे राजनीतिक दल, कम्युनिस्ट पाठ्यक्रम पढ़कर बड़े हुए पत्रकार, लेखक आदि। या कहें भाजपा से घृणा करते हुए हिंदुओं से घृणा करने वाला एक बहुत बड़ा सेक्युलर वर्ग।

पिछले कई वर्षों में हिंदुओं के पर्वों पर हिंसा हुई है। दिल्ली में वर्ष 2022 में जहाँगीरपुरी में हनुमान जयंती पर निकाली गई शोभायात्रा पर किया गया पथराव और हिंसा कैसे कोई भूल सकता है और उस समय भी कथित लिबरल की ओर से यही कहा गया था कि “मुस्लिम इलाके में यात्रा गई थी!”

मगर यह वही लिबरल वर्ग है जो हिंदुओं के पर्वों को भी हिंदुओं का नहीं रहने देता है। उन्हें गरबे में यह नियम बनाना बुरा लगता है कि हिन्दू ही केवल गरबे में आए। वे यह तक हिंदुओं को अधिकार नहीं देते कि माँ की पूजा में किया जाने वाला धार्मिक नृत्य केवल हिंदुओं के लिए ही हो, मगर वे पूरे के पूरे इलाके को तब मुस्लिम इलाका घोषित ही नहीं करते, बल्कि एक प्रकार से उस इलाके को मुस्लिमों को सौंप देते हैं, जहां पर उनकी संख्या अधिक होती है।

और लिबरल दोगलापन तब और साफ दिखता है जब हिन्दू अपने पर्व के लिए खानपान की शुचिता का रखरखाव करने के लिए यह निर्णय लेना चाहता है कि वह विक्रेता का नाम देखकर वस्तु खरीदेगा तो वह धार्मिक आधार पर भेदभाव है, संविधान की मूल भावना के विपरीत है और यहाँ पर मुस्लिम इलाका बोलकर खुद ही संविधान की हत्या करते हैं, वह कुछ नहीं!

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