प्रयागराज, (हि.स.)। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने रांची (झारखंड) के एक अस्पताल में भर्ती मां के इलाज के लिए 25 प्रतिशत खर्च के भुगतान का बेटी को निर्देश दिया है। बेटी ने हाईकोर्ट में अर्जी दाखिल कर अपनी मां के साथ रख-रखाव विवाद को निपटाने की इच्छा व्यक्त की। कोर्ट ने कहा वह अपनी मां के लिए वर्तमान बकाया चिकित्सा खर्च का कम से कम 25 प्रतिशत भुगतान करे। रहीम के दोहा और तैत्तिरीय उपनिषद की शिक्षाओं का उल्लेख करते हुए, जस्टिस सौरभ श्याम शमशेरी की पीठ ने कहा, ‘मातृ देवो भव’ (माता देव यानि भगवान के समान है) और ‘क्षमा बड़न को चाहिये, छोटन को उत्पात।’
अदालत ने धारा 482 के तहत एक बेटी द्वारा दायर याचिका पर सुनवाई करते हुए ये टिप्पणियां की। बेटी ने परिवार अदालत के एक आदेश को चुनौती दी है, जिसमें उसे अपनी मां को रख-रखाव के लिए प्रति माह 8,000 रुपये का भुगतान करने का निर्देश दिया गया है। मां ने इससे पहले अपनी बेटी से गुजारा भत्ता की मांग करते हुए परिवार अदालत के समक्ष दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 125 के तहत आवेदन दायर किया था, जिसे एकपक्षीय अनुमति दे दी गई थी।
आवेदक बेटी ने एकपक्षीय रखरखाव आदेश के सम्बंध में एक रिकॉल आवेदन दायर किया, जिसमें तर्क दिया गया कि उसकी मां की चार अन्य बेटियां हैं। उन्हें भी उसकी सम्पत्तियों में शेयर आवंटित किए गए हैं। आवेदक ने तर्क दिया कि उसकी उपेक्षा की गई थी और जब रख-रखाव की मांग की बात आई, तो उसकी मां ने केवल उससे समर्थन मांगा है न कि अपनी अन्य बेटियों से, जो अनुचित था।
कोर्ट ने रिकॉल एप्लिकेशन को भी खारिज कर दिया था। हाईकोर्ट में भरण पोषण तथा रिकाल अर्जी खारिज किए जाने सम्बंधी दोनों आदेश को चुनौती दी गई है। हाईकोर्ट में बेटी संगीता कुमारी की तरफ से गुण-दोष के आधार पर बहस नहीं की बल्कि अदालत को बताया कि पक्ष आपस में मामले को सुलझाने के लिए तैयार हैं। अदालत को यह भी सूचित किया गया कि आवेदक अस्पताल में अपनी मां से मिलने जाएगी जहां वह वर्तमान में भर्ती है और वह उससे एक मां के रूप में मिलने की कोशिश करेगी, न कि एक प्रतिद्वंद्वी के रूप में।
कोर्ट ने याची के अधिवक्ता के इस कथन पर इस मामले को सौहार्दपूर्ण ढंग से सुलझाने की उम्मीद व्यक्त करते हुए बेटी को निर्देश दिया कि वह अपनी मां के प्रति अपनी जिम्मेदारी का निर्वहन करे और अस्पताल में भर्ती मां पर किए गए चिकित्सा खर्च की बकाया राशि का कम से कम 25 प्रतिशत भुगतान करे। कोर्ट याचिका की पुनः सुनवाई करेगी।
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