गुजरात

इंटरनेशनल गैंग ने देशभर के 1000 से अधिक लोगों को किया डिजिटल अरेस्ट, साइबर क्राइम ने किया गिरफ्तार

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सोनल अनडकट

कर्णावती: देशभर में 1000 से ज्यादा लोगों को डिजिटल अरेस्ट करके पैसे ऐठने वाली गैंग को अहमदाबाद पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया है। पुलिस ने इस रैकेट में अहमदाबाद, बड़ौदा समेत के शहरों के 18 लोगों को गिरफ्तार किया है, जिसमें ताइवान के चार नागरिक भी शामिल है। इस गैंग ने 5000 करोड़ से ज्यादा पैसे चीन और ताइवान ट्रांसफर किये थे।

डिजिटल अरेस्ट करके पैसे ऐठने वाला गैंग अब अहमदाबाद पुलिस के कब्जे में है। पुलिस ने आरोपियों को गिरफ्तार कर उनके पास से 761 सिमकार्ड, 120 मोबाईल फोन, 96 चेकबुक और 92 डेबिट कार्ड जब्त किए हैं। साथ मे 12.75 लाख का कैश और 42 पासबुक भी जब्त की है।

कैसे गैंग का पर्दाफाश हुआ

यह गैंग ज्यादातर बुज़ुर्ग लोगों को निशाना बनाते थे। अहमदाबाद के एक बुजुर्ग पति-पत्नी को ऐसे ही डिजिटल अरेस्ट करके ₹79.34 लाख ऐठ लिए थे। जिनमें से ₹6 लाख बड़ौदा के भव्य इन्फोटेक के एसबीआई के अकाउंट में जमा हुए थे। यह अकाउंट धारक भावेश सुथार को गिरफ्तार कर उसकी पूछताछ करने पर सामने आया कि उसने अपना अकाउंट कमीशन बेज पर बड़ौदा के लीलेश प्रजापति और जयेश सुथार को उपयोग करने के लिए दिया था। जिसके आधार पर पुलिस ने उन दोनों को गिरफ्तार कर पूछताछ करने पर प्रवीण पंचाल उर्फ पीके का नाम सामने आया। पुलिस ने उसको भी धरदबोचा। इस दौरान लीलेश और जयेश के बड़ौदा में नवा बसस्टैंड विस्तार में रखी ऑफिस पर पुलिस ने छापा मारा तो वहां से एक डार्करूम मिला। जिसमे 20 रूटेड मोबाईल फोन, राउटर, मिनी लैपटॉप समेत का सिस्टम मिला।

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कैसे काम करता था सिस्टम

गैंग एक एप्लिकेशन तैयार करता था, जिसे लैपटॉप में ओपन किया जाता। इसके साथ कम से कम 20 रूटेड मोबाइल फोन जो कि दो सिमकार्ड वाले होते थे, उसे कनेक्ट किया जाता। हर एक मोबाइल का एक सिमकार्ड अकाउंट धारक के अकाउंट के साथ लिंक किये गए नम्बरवाला होता था। जिसकी वजह से पैसे का ट्रांजेक्शन करने के लिए उसी नंबर पर ओटीपी आता था। जिसके चलते लैपटॉप में एप्लीकेशन के साथ स्क्रीन के ऊपर बैंक अकाउंट नंबर और ओटीपी दिखने पर उसमें जमा होने वाले पैसे तुरंत ही आगे के बैंक अकाउंट में ट्रांसफर कर दिए जाते थे। जहां से वह पैसा अलग-अलग बैंक अकाउंट में और वहां से क्रिप्टो समेत की करेंसी में ट्रांसफर करके चीन और ताइवान भेज दिए जाते थे। बाद में चीन और ताइवान में वॉलेट में से वह पैसा उठा लिया जाता था।

रैकेट के लिए बनाए अलग अलग यूनिट

पूरे रैकेट को अंजाम देने के लिए अलग-अलग यूनिट बनाए गए थे। जिसमें एक यूनिट सिम कार्ड प्री एक्टिव सिम कार्ड खरीदने का काम करता था। दूसरा यूनिट बैंक अकाउंट खोलने का, तीसरा यूनिट डार्क वेब और पब्लिक डोमेन पर से लोगों की जानकारी एकत्रित करने का काम करता था। चौथा यूनिट एक्सपर्ट की टीम का था। पांचवा यूनिट टेक्निकल टीम का जबकि छठा यूनिट कॉल सेंटर में नौकरी करने के लिए लोगों को भारती करता था। इस प्रकार अलग-अलग यूनिट बनाकर काम किया जाता था।

ताईवान और चीन के माफिया की निगाहें डार्क रूम पर लगी रहती

ताइवान और चीन में बैठे हुए माफिया डार्क रूम पर लगातार नजर बनाए हुए थे। अगर कोई डार्क रूम में लगाए हुए सिस्टम का एक भी मोबाइल 4 घंटे से ज्यादा समय तक बंध दिखे तो वह समझ जाते थे कि पुलिस ने छापा मारा है। जिसके चलते वह अन्य शहरों में चल रहे डार्क रूम भी बंद करवा देते थे। जिसकी वजह से पुलिस माफिया तक पहुंच नहीं पा रही थी। लेकिन जब साइबर क्राइम की टीम ने बड़ौदा के डार्क रूम पर छापा मारा इस वक्त बेंगलुरु, दिल्ली और मुंबई के डार्क रूम पर भी एक साथ छापे मारे गए।

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माफिया टूरिस्ट वीजा पर भारत आते थे

पुलिस की जांच में सामने आया है कि ताइवान के गिरफ्तार हुए चार नागरिक टूरिस्ट वीजा पर भारत आये थे, लेकिन एक भी टूरिस्ट स्पॉट पर नही गए थे। ताइवान नागरिक और मुख्य सूत्रधार मार्क इससे पहले दो बार भारत आ चुका है। वांग चुन वेइ और शेन वेइ तीन से चार बार जबकि चांग हाव यून पहली बार ही भारत आया था। वांग चुन और शेन वेइ बेंगलुरु के डार्क रूम चलाते थे।

तीन एप के जरिये ऐठते थे पैसे

गैंग ने पैसे ऐठने के लिये तीन अलग अलग एप बनाये थे। गेमिंग एप पर लोग ज्यादा दिन तक जुआ खेलते हैं इसलिए इस ऐप के जरिए डार्क रूम से विदेश में पैसा भेजने की सिस्टम ज्यादा दिनों तक यानी कि एक महीने तक चालू रखी जाती थी। अगर भांडा फूटना शुरू हुआ है ऐसा शक होने पर ऐप को डिलीट कर दिया जाता था। इन्वेस्टमेंट एप के जरिए लोगों को शेयर मार्केट में पैसे रोकना का बहाना देकर यह गैंग पैसे ऐठती थी। जिसमें टारगेट को एप्लीकेशन में पैसे रोकने से प्रॉफिट मिलेगा या फिर पैसा डबल होगा ऐसी लालच दी जाती थी। यह रैकेट 10 से 15 दिन तक चलता था। पुलिस में शिकायत दर्ज होने के बाद काम बंद कर दिया जाता।

तीसरा एप डिजिटल अरेस्ट एप था। जिसमें ट्राई, सीबीआई और आरबीआई के अधिकारी के तौर पर अपनी पहचान देकर पुलिस स्टेशन जैसा माहौल बनाकर टारगेट को वीडियो कॉल किया जाता था। जिसमें सिंगल ट्रांजैक्शन के जरिए जितना भी पैसा मिले वह लेकर ऐप को डिलीट कर दिया जाता था।

 

 

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