झारखण्ड की राजनीती विगत कुछ समय में दो बड़े राजनितिक घटनाक्रम की गवाह बनी हैं जिसका सिद्ध असर हाल में होने वाले विधानसभा चुनाव में बड़े पैमाने पर पड़ता दिख रहा हैं। पहला झारखण्ड राज्य के पहले मुख्यमंत्री बाबूलाल मरांडी का फिर से पुराने पार्टी भाजपा में वापसी और दूसरा झामुमो पार्टी में शिबू सोरेन के बाद दूसरे सबसे बड़े नेता वो पूर्व मुख्यमंत्री चम्पई सोरेन का भाजपा में शामिल होना। पूर्व में भाजपा के अनेको वरिष्ठ नेता भाजपा से अलग हुए थे मगर समय काल में घर वापसी भी किये।इन नेताओं में उमा भारती, बी एस येदुरप्पा, कल्याण सिंह, केशुभाई पटेल सहित कई ऐसे नेता हैं जिन्होंने पार्टी को छोड़ा ंगे फिर वापसी की। बाबूलाल मरांडी इस कड़ी में अंतिम नाम हैं। मरांडी लंबे समय तक पार्टी से अलग रहे और अब झारखण्ड में पार्टी को मजबूती प्रदान कर रहे हैं।
मरांडी के वापसी से पार्टी को जहाँ पुराना जनसमर्थन प्राप्त हुया हैं वही चम्पई सोरेन के भाजपा में शामिल होने के कारण भाजपा को झामुमो के जनसमर्थन में सेंधमारी करने का मौका मिल रहा है। चंपई सोरेन झारखंड की राजनीति के दिग्गजों में से एक हैं। वह वस्तुतः झारखंड मुक्ति मोर्चा के संरक्षक और संस्थापक शिबू सोरेन के बाद दूसरे सबसे वरिष्ठ नेता हैं। उन्हें बहुत पहले ही झारखंड के मुख्यमंत्री के रूप में नामित किया गया था, लेकिन झामुमो की पारिवारिक राजनीति के कारण उन्हें दरकिनार कर दिया गया और चंपई सोरेन की कीमत पर हेमंत सोरेन को मुख्यमंत्री पद पर बैठाया गया।
भौगोलिक दृष्टि से झारखंड को पांच प्रमंडलों में बांटा गया है। कोल्हान क्षेत्र में दो लोकसभा और 14 विधानसभा की सीटें हैं। चंपई सोरेन कोल्हान क्षेत्र में झामुमो का चेहरा थे। उनकी लोकप्रियता और जनता से जुड़ाव के कारण उन्हें ‘कोल्हान टाइगर’ भी कहा जाता है। उन्होंने कोल्हान के औद्योगिक क्षेत्र में हजारो लोगों को नौकरी दिलाने में मदद की। सोरेन परिवार और उनकी पार्टी झामुमो का कोल्हान क्षेत्र में सीमित आधार है। चम्पई सोरेन के पार्टी छोड़ने के अब झामुमो का कोल्हान क्षेत्र में लगभग समाप्त ही हो गया हैं।
शिबू सोरेन परिवार की लोकप्रियता हमेशा संदिग्ध रही है क्योंकि 2008 में निवर्तमान मुख्यमंत्री शिबू सोरेन झारखंड पार्टी के राजनीतिक नौसिखिया राजा पीटर से रांची जिले की तमाड़ सीट से विधानसभा उपचुनाव हार गए थे। यह दूसरी बार है जब मौजूदा मुख्यमंत्री विधायक बनने वास्ते चुनाव लड़ा और वो उपचुनाव हार गया। शिबू सोरेन विधायक बनने में असफल रहे और उन्हें पद से इस्तीफा देना पड़ा। पहला मामला उत्तर प्रदेश की मणिराम विधानसभा सीट का था जब तात्कालिक मुख्यमंत्री त्रिभुवन नारायण सिंह उपचुनाव हार गए और उन्हें इस्तीफा देने के लिए मजबूर होना पड़ा।
चंपई सोरेन सरायकेला विधानसभा सीट से छह बार विधायक हैं। कोल्हान क्षेत्र में झामुमो की मजबूती के पीछे चंपई सोरेन ही मुख्य सूत्रधार थे । उनके पास झारखंड के राजनीतिक परिदृश्य और खासकर कोल्हान क्षेत्र में चार दशक लंबा राजनीतिक अनुभव है।
ये भी पढ़े- झारखंड में हिंदुओं और वनवासियों की घट रही जनसंख्या : प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी
पिछले विधानसभा चुनाव में कोल्हान क्षेत्र में अपने प्रदर्शन के दम पर ही झामुमो ने झारखंड में सरकार बनायी थी। झामुमो ने 11 सीटें जीतीं, जबकि उसकी सहयोगी कांग्रेस पार्टी ने दो सीटें जीतीं, एक सीट भाजपा के बागी उम्मीदवार और वर्तमान जदयू नेता सरयू राय ने जीती।
चंपई सोरेन का पार्टी छोड़ना झामुमो के लिए अब तक का सबसे बड़ा झटका कहा जा सकता हैं जिसकी भरपाई पार्टी के लिए राज्य के अन्य हिस्सों में करना बेहद मुश्किल है। इस विधानसभा में झामुमो के 30 विधायक हैं और आधे से कुछ कम विधायक कोल्हान क्षेत्र से चुने गये हैं। झामुमो और तत्कालीन संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (यूपीए) ने कोल्हान क्षेत्र से 13 सीटें जीतीं। कोल्हान क्षेत्र वस्तुतः वह क्षेत्र है जिसके कारण 2019 में कांग्रेस-झामुमो ने झारखंड में सरकार बनाई।
ये भी पढ़े- रतन टाटा को राजकीय सम्मान के साथ दी जाएगी अंतिम विदाई, महाराष्ट्र और झारखंड में एक दिन का राजकीय शोक
कोल्हान क्षेत्र की जनता न केवल झामुमो से बल्कि कांग्रेस पार्टी से भी बेहद नाराज है क्योंकि उन्होंने बिना किसी कारण के उनके स्थानीय नेता वो इस मिट्टी के लाल चंपई सोरेन को मुख्यमंत्री की कुर्सी से हटाकर हेमंत सोरेन को मुख्यमंत्री बनाया। कोल्हान की जनता को उम्मीद थी कि कांग्रेस पार्टी उनके स्थानीय नेता का समर्थन करेगी और झामुमो पर चंपई सोरेन को सीएम बनाए रखने के लिए दबाव बनाएगी, लेकिन कांग्रेस पार्टी उनकी उम्मीदों पर खरी नहीं उतरी।
2014 के विधानसभा चुनाव में कोल्हान क्षेत्र में एनडीए को 6 सीटों पर जीत मिली थी। बीजेपी ने अपने दम पर 5 सीटें जीतीं जबकि उसकी सहयोगी आजसू ने एक सीट जीती। झामुमो में इस तरह के विकास पर्याप्त हैं कि भाजपा न केवल 2014 की अपनी सीटों को 2024 में बरकरार रखेगी बल्कि आगामी विधानसभा चुनाव में अपनी सीटों को दोगुना करने की संभावना है।
Leave a Comment