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संघ के प्रमुखों के बारे में क्या आप जानते हैं? कैसे होता है आरएसएस के सरसंघचालक का चुनाव?

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Masummba Chaurasia

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की स्थापना 1925 में डॉ. केशव बलिराम हेडगेवार जी द्वारा की गई थी और वे इसके पहले सरसंघचालक थे। उनके बाद परम पूज्य एम.एस. गोलवलकर जी जिन्हें श्री गुरुजी कहते हैं, उन्होंने 1940 में यह पद संभाला, श्रीगुरु जी ने संघ को राष्ट्रव्यापी पहचान दिलाई। उनके नेतृत्व में संघ का विस्तार तेजी से हुआ। 1973 में श्री बाला साहेब देवरस जी तीसरे सरसंघचालक बने। 1994 में प्रो. राजेंद्र सिंह जिन्हें रज्जू भैया भी कहते हैं, वे चौथे सरसंघचालक थे। वर्ष 2000 में श्री के.एस. सुदर्शन जी ने संघ की कमान संभाली। वर्तमान सरसंघचालक परमपूज्य डॉ. मोहन भागवत जी हैं, जिन्होंने 2009 में यह पद संभाला था। उनके नेतृत्व में संघ का सामाजिक प्रभाव लगातार बढ़ रहा है। संघ के इतिहास में हर सरसंघचालक ने अपनी विचारधारा और कार्यशैली से संगठन को दिशा दी है। RSS की नेतृत्व परंपरा संगठनात्मक मजबूती और अनुशासन पर आधारित है।

क्या आप जानते हैं, संघ प्रमुख का चुनाव कैसे होता है?

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक का चुनाव एक विशिष्ट प्रक्रिया के तहत होता है। संघ में यह पद उत्तराधिकार के रूप में नहीं आता, बल्कि इसे तय करने की प्रक्रिया में संघ के वरिष्ठ पदाधिकारी और अखिल भारतीय प्रतिनिधि मंडल की महत्वपूर्ण भूमिका होती है। सरसंघचालक का चुनाव सीधे वोटिंग से नहीं होता, बल्कि एक आम सहमति के आधार पर होता है। संघ की उच्च समिति और पदाधिकारी यह निर्णय करते हैं कि अगला सरसंघचालक कौन होगा। आमतौर पर मौजूदा सरसंघचालक अपने उत्तराधिकारी का संकेत देते हैं या सिफारिश करते हैं, जिसे बाकी वरिष्ठ पदाधिकारियों द्वारा सहमति दी जाती है। इस प्रक्रिया में पारदर्शिता और आपसी सहमति पर जोर दिया जाता है। एक बार चुने जाने के बाद, सरसंघचालक का कार्यकाल आजीवन होता है, यानी जब तक वे स्वेच्छा से पद नहीं छोड़ते या किसी अन्य कारण से पद पर नहीं रहते। यह प्रक्रिया संघ की अनुशासन और विचारधारा के प्रति प्रतिबद्धता को दर्शाती है।

क्या आप जानते हैं, संघ में महिलाओं की भागीदारी कितनी है?

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) की संरचना में महिलाओं की भागीदारी को लेकर अक्सर सवाल उठते हैं, क्योंकि संघ की मुख्य शाखाओं में पुरुषों की भागीदारी ही होती है। हालांकि, महिलाओं के लिए अलग से “राष्ट्र सेविका समिति” नामक संगठन की स्थापना की गई थी। 1936 में लक्ष्मीबाई केलकर द्वारा स्थापित इस संगठन का उद्देश्य महिलाओं में राष्ट्रभक्ति, सामाजिक जागरूकता और सांस्कृतिक मूल्यों को प्रोत्साहित करना है। राष्ट्र सेविका समिति संघ के समान विचारधारा पर आधारित है, लेकिन यह स्वतंत्र रूप से कार्य करता है। समिति की शाखाएं देशभर में सक्रिय हैं, जहां महिलाएं विभिन्न शारीरिक, मानसिक और वैचारिक प्रशिक्षण प्राप्त करती हैं। संघ की गतिविधियों में प्रत्यक्ष रूप से महिलाएं शामिल नहीं होतीं, लेकिन राष्ट्र सेविका समिति के माध्यम से वे संगठन के विचारों का समर्थन करती हैं। संघ के उच्च पदाधिकारी महिलाओं की भूमिका को महत्व देते हैं और मानते हैं कि महिलाओं का योगदान राष्ट्र निर्माण में समान रूप से महत्वपूर्ण है।

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