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नवरात्र विशेष : सैनिकों की रक्षा करती हैं तनोट माता

Published by
पूनम नेगी

यूं तो हमारी पुण्य भारत के जगन्नाथपुरी व द्वारिकाधीश जैसे अनेक सुप्रसिद्ध देवमंदिर अपने अनूठे चमत्कारों के लिए दुनियाभर में प्रसिद्ध हैं। लेकिन; क्या आप जानते हैं कि देश के इन चमत्कारी मंदिरों में माँ शक्ति एक ऐसा अनोखा मंदिर भी शामिल है जिसका चमत्कार भारतभूमि की सीमा की सुरक्षा से जुड़ा हुआ है। यह मंदिर है राजस्थान के जैसलमेर जिले में भारत-पाक सीमा के एक गाँव में स्थित तनोट माता का मंदिर। बताते चलें कि तनोट माता को देवी हिंगलाज भवानी का एक रूप माना जाता है, जो वर्तमान में पाकिस्तान के बलूचिस्तान प्रांत के लासवेला जिले में स्थित है। इस मंदिर के प्रति भारतीय सेना के जवानों की गहरी आस्था है। इस मंदिर में पूजन-अर्चन की जिम्मेदारी भी सीमा सुरक्षा बल के जवान ही सँभालते हैं। नवरात्र के दौरान इस मंदिर तीर्थ के प्रति सैनिकों व आम श्रद्धालुओं की आस्था देखते ही बनती है।

पाक सेना के दागे गये तीन हजार गोले फुस्स

जानना दिलचस्प हो कि तनोट माता, आवड़ माता व मातेश्वरी के नाम से प्रसिद्ध इस मंदिर के चमत्कार आज भी सुनने वालों को दांतों तले उंगलियाँ दबाने को मजबूर कर देते हैं। बात सितंबर 1965 की है। भारत और पाकिस्तान के बीच हुए युद्ध में जब एक समय पकिस्तान की गोलीबारी का जवाब देने के लिए पर्याप्त हथियार न होने के कारण भारतीय सेना भारी दबाव में आ गयी थी, तो पाकिस्तानी सेना ने इस परिस्थिति का फायदा उठाते हुए साडेवाला चौकी के पास किशनगढ़ सहित बड़े क्षेत्रों पर कब्जा कर लिया था। बावजूद इसके, साडेवाला चौकी पर भारतीय सेना के जवान मुस्तैदी से डटे रह कर अपनी लड़ाई लड़ते रहे। कहा जाता है कि अगर दुश्मन तनोट पर कब्जा कर लेता तो वह रामगढ़ से लेकर शाहगढ़ तक के इलाके पर अपना दावा कर सकता था। इसी रणनीति के तहत पाकिस्तानी सेना ने 17 से 19 नवंबर 1965 को तीन अलग-अलग दिशाओं से तनोट पर भारी आक्रमण कर दिया। तनोट पर आक्रमण से पहले शत्रु सेना का पूर्व में किशनगढ़ से 74 किमी दूर बुइली तक पश्चिम में साडेवाला से शाहगढ़ और उत्तर में अछरी टीबा से छह किलोमीटर दूर तक कब्जा हो चुका था और तनोट तीन दिशाओं से घिर चुका था। दुश्मन ने तनोट माता के मंदिर के आसपास के क्षेत्र में करीब तीन हजार गोले बरसाए पंरतु अधिकांश गोले अपना लक्ष्य चूक गये। मीडिया सूत्रों के अनुसार अकेले माता के मंदिर को निशाना बनाकर करीब 450 गोले दागे गये परंतु चमत्कारी रूप से एक भी गोला अपने निशाने पर नहीं लगा और मंदिर परिसर में गिरे गोलों में से एक भी नहीं फटा। मंदिर को खरोंच तक नहीं आयी। कहा जाता है कि मातारानी ने जवानों को सपने में आकर उनकी सुरक्षा करने का वादा किया था।

वर्ष 1971 में बीएसएफ ने कराया मंदिर व संग्राहलय का निर्माण

बताते चलें कि इस मुठभेड़ के बाद वर्ष 1971 के युद्ध में भारत द्वारा पाकिस्तान को हराने के बाद तनोट माता और उनके मंदिर के चमत्कारों की गूंज दूर-दूर तक पहुंच गयी। पाक पर इस विजय के बाद बीएसएफ (सीमा सुरक्षा बल) ने वर्ष 1971 में गाँव में माता के मंदिर का सुन्दरीकरण और मंदिर परिसर में एक संग्रहालय का निर्माण कराया। साथ ही मंदिर परिसर के अंदर एक चौकी की स्थापना की और तनोट माता मंदिर की पूजा अर्चना की जिम्मेदारी अपने ऊपर ले ली। तब से लेकर आज तक मंदिर का प्रबंधन और संचालन सीमा सुरक्षा बल के एक ट्रस्ट द्वारा किया जा रहा है। काबिलेगौर हो कि तनोट माता का दर्शन करने आने वाले श्रद्धालु मंदिर परिसर में स्थापित संग्रहालय में आज भी उन बमों का अवलोकन कर सकते हैं जो माता की कृपा से बेअसर हो गये थे। यही नहीं, भारतीय सेना ने मंदिर परिसर के अंदर लोंगेवाला की जीत को चिह्नित करने के लिए एक विजय स्तम्भ का भी निर्माण कराया है जहां हर साल 16 दिसंबर को 1971 में पाकिस्तान पर मिली एक बड़ी जीत के रूप में उत्सव मनाया जाता है।

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