खुद को खो-कर कला का होकर — मोहन खोकर
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खुद को खो-कर कला का होकर — मोहन खोकर

भारतीय शास्त्रीय नृत्यकला को जीवन समर्पित करने वाले संस्कृतिविद् मोहन खोकर का यह शताब्दी वर्ष है। उन्होंने भारतीय शास्त्रीय नृत्यों और लोकनृत्य के बारे में पांच किताबें भी लिखीं हैं जो कर्ई विश्वविद्यालयों के पाठ्यक्रम का हिस्सा रही हैं

by शशिप्रभा तिवारी
Oct 9, 2024, 03:29 pm IST
in भारत, संस्कृति
‘दि मोहन खोकर डांस कलेक्शन-एमके डीसी’ के संस्थापक व ट्रस्टी, डॉ. आशीष मोहन खोकर

‘दि मोहन खोकर डांस कलेक्शन-एमके डीसी’ के संस्थापक व ट्रस्टी, डॉ. आशीष मोहन खोकर

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प्रख्यात संस्कृतिविद् मोहन खोकर ने जीवन भर कला जगत के लिए कला से संबंधित संग्रह का अद्भुत कार्य किया। उनके संग्रह में उनके द्वारा खींची गईं लगभग एक लाख तस्वीरें हैं। गत दिनों नई दिल्ली के इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र में ‘दि मोहन खोकर डांस कलेक्शन’ के रूप में इनकी प्रदर्शनी लगी है।

मोहन खोकर नृत्य दस्तावेज तैयार करने वाले देश के प्रमुख विद्वान रहे हैं। उन्होंने कथक नृत्य सीखा। लाहौर में उदयशंकर नृत्य शैली सीखी और उन्होंने मद्रास (अब चेन्नै) जाकर भरतनाट्यम की शिक्षा ली। उन्होंने भारतीय शास्त्रीय नृत्य शैली, इस शैली से जुड़े कलाकारों व समारोहों के संदर्भ में सबसे पहले पत्रिकाओं, जर्नल्स और समाचार पत्रों में लिखना शुरू किया। वे फोटोग्राफी भी करते थे, तो उस समय वे अपने आलेखों से संबंधित फोटो भी खुद ही खींचते थे। उन्होंने स्वतंत्र, फ्री प्रेस जर्नल, पुष्पांजलि, दी इलस्ट्रेटिड वीकली, मार्ग आदि पत्रिकाओं में लंबे समय तक कला पर लेखन कार्य किया।

‘दि मोहन खोकर डांस कलेक्शन-एमके डीसी’ के संस्थापक व ट्रस्टी, डॉ. आशीष मोहन खोकर के अनुसार ‘‘उनके पिता मोहन खोकर का जन्म 30 दिसंबर 1924 को अविभाजित भारत के क्वेटा में हुआ था। 31 मई 1935 को उनका परिवार लाहौर में आकर बस गया। उन दिनों कथक को ‘नाच’ के नाम से जाना जाता था, यहीं पर उन्होंने कथक नृत्य सीखना शुरू किया था। उनके पहले गुरु थे पंडित प्यारेलाल। उन दिनों उदयशंकर यदा-कदा लाहौर आते थे। उनका झुकाव पंडित उदयशंकर की नृत्य शैली सीखने के प्रति हुआ। इस क्रम में वे पंडित रामगोपाल और पंडित उदयशंकर से नृत्य सीखने लगे।

शास्त्रीय नृत्यों से था प्रेम

भारतीय शास्त्रीय नृत्यों के प्रति उनका प्रेम अद्वितीय था। इसलिए जब उनका भरतनाट्यम नृत्य सीखने का मन हुआ तो वे लाहौर से मद्रास पहुंच गए। यह सन् 1945 की बात है। उनके इस जुनून से कलाक्षेत्र की संस्थापिका रुक्मिणी देवी अरूंडेल बहुत खुश हुईं। वे इस बात से भी खुश थीं कि एक सिख नौजवान भरतनाट्यम नृत्य सीखने के लिए मद्रास आया है। वहां उन्होंने रुक्मिणी देवी अरुंडेल के सान्निध्य में भरतनाट्यम सीखा।

पुस्तक लेखन

मोहन खोकर ने भारतीय शास्त्रीय नृत्यों और लोकनृत्यों के बारे में पांच किताबें लिखीं। उनकी कुछ पुस्तकों के नाम है-डांसिंग भरतनाट्यम-अडवु, ट्रेडिशंस आफ इंडियन डांस, बॉयोग्राफी आफ उदयशंकर, स्पलेंडर्स आफ इंडियन डांस और फोक डांस। उन दिनों उनकी इन किताबों को कई विश्वविद्यालयों ने अपने पाठ्यक्रमों में शामिल किया था। दरअसल, वह अपने इन महती प्रयासों के माध्यम से भारतीय शास्त्रीय नृत्य के भविष्य को सुरक्षित रखना चाहते थे। उन्होंने इस बाबत कई नृत्यांगनाओं, शोधकर्ताओं और विद्वानों का मार्गदर्शन किया। उन्होंने निस्संदेह भारतीय शास्त्रीय नृत्यों को संपूर्णता और समग्रता से समझा और उसे नया आयाम देने में अपना महत्वपूर्ण योगदान दिया।

इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र की कला दीर्घा में लगी मोहन खोकर के चित्रों की प्रदर्शनी

बेहद अनूठा है संग्रह

‘दि मोहन खोकर डांस कलेक्शन-एम के डी सी’ एक अनूठा संग्रह है। इस संग्रह को न्यूयार्क के लिंकन सेंटर, स्टाकहोम के दि डांस म्यूजियम और यूनेस्को ने डांस काऊंसिल में भी प्रदर्शित किया गया है। देश की आजादी से पहले सन् 1930 से ही मोहन खोकर ने नृत्य से संबंधित सामग्रियों का संग्रह और संकलन शुरू कर दिया था। इस संग्रह में मूर्तियां, वस्त्र, पटाखे के पैकट, दीये, माचिस की डिबिया आदि शामिल हैं। इस सामग्री का स्थाई संग्रह इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र में व्यवस्थित रूप से उपलब्ध है।

इस संग्रह में प्रख्यात नृत्यांगनाओं बाला सरस्वती, एम के सरोजा, इंद्राणी रहमान, यामिनी कृष्णमूर्ति, डॉ. सोनल मानसिंह आदि नृत्य प्रदर्शन की तस्वीरें, पोस्टर, निमंत्रण पत्र आदि को बहुत सुघड़ता से सुरक्षित और प्रदर्शित किया गया है। भरतनाट्यम नृत्यांगना मृणालिनी साराभाई के सौ साल पुराने पोस्टर को सुरक्षित रखा गया है। इसके अलावा, कलाकारों के वस्त्रादि, ज्वेलरी और उपहारों को भी सहेजा गया है।

देश के जाने-माने कलाकारों के संबंध में प्रकाशित सामग्री-पत्रिकाएं, अखबारों को करीने से प्रदर्शित किया गया है। इसमें कला से संबंधित विश्व की प्रतिष्ठित पत्रिकाएं और जर्नल्स की एक विशेष दीर्घा है। इस संग्रह को आने वाली पीढ़ी के लिए शास्त्रीय नृत्य परंपरा और उससे जुड़ी गतिविधियों और सामग्री के बारे में जानने समझने के लिए समुचित व्यवस्था माना जा सकता है। यदि किसी भी जिज्ञासु को किसी भी कलाकार के बारे में कुछ जानने की इच्छा है, तो यह संग्रह उसके लिए किसी स्वर्ग की तरह है। जहां उसे सब कुछ एक साथ मिल सकता है।

इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र की कला दीर्घा में लगी मोहन खोकर के चित्रों की प्रदर्शनी

इस संग्रह के संरक्षक व न्यासी आशीष मोहन कहते हैं, ‘‘इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र के मुख्य सचिव डॉ. सच्चिदानंद जोशी, नृत्य संबंधि न्यासी डॉ. सोनल मानसिंह, भरतनाट्यम नृत्यांगना डॉ. पद्मा सुब्रह्मण्यम, प्रो. भरत गुप्त, सरयू दोषी और प्रसून जोशी सभी ने इसकी प्रशंसा की है। कई कर्मचारियों को इस संग्रह की देखभाल के लिए नियुक्त किया गया है, ताकि इस धरोहर की देखरेख और संरक्षण बेहतर हो सके। मैं जब भी इस धरोहर के बारे में सोचता हूं तो मन पिता जी की दूरदृष्टि के प्रति नतमस्तक हो जाता है। इस धरोहर को संजोने में दो पीढ़ियों की मेहनत साफ-साफ दिखती है।’’

कला की गहराइयों ने इस कदर महान संस्कृतिविद् और कला संग्राहक मोहन खोकर को भीतर तक छुआ होगा और वह कला के अनादि-अनंत सफर पर निकल पड़े होंगे। उन्होंने इस शताब्दी के लिए ही दी मोहन खोकर डांस कलेक्शन तैयार कर दिया। उनके संग्रह को राष्ट्रीय नृत्य संग्रहालय का रूप दिया जा सकता है। उनके सुपुत्र आशीष मोहन खोकर अपने व्यक्तिगत प्रयासों से इस संग्रह को संरक्षित कर एक स्तुत्य कार्य किया है।

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