आज के वैश्विक सुरक्षा परिदृश्य पर नजर डालें तो सब अप्रत्याशित-सा घटता दिखाई देता है। उदाहरण के लिए, इस्राएल—हमास युद्ध और उसमें रोजाना बदलते घटनाक्रमों की बात हो या अफगानिस्तान बनाम पाकिस्तान, रूस-यूक्रेन संघर्ष, म्यांमार में सैन्य जुंटा और विद्रोही गुटों का आपसी टकराव, बांग्लादेश में तख्तापलट, पूर्वोत्तर में विद्रोह को बढ़ावा देना या फिर पीर पंजाल के दक्षिण में आतंकवादियों की संख्या अचानक बढ़ना। दक्षिण चीन सागर और हिन्द-प्रशांत क्षेत्र सहित विभिन्न क्षेत्रों में वैश्विक शक्तियों की बयानबाजी बढ़ना हो या ईरान तक से उठ रहीं युद्धक हुंकारें। सब जैसे अचानक घट रहा है। ऐसे परिदृश्य में, भारत जैसे देशों के लिए अपनी सुरक्षा रणनीति का पुनर्मूल्यांकन करने की आवश्यकता उभर कर आती है। इस वैश्विक उथल-पुथल के बीच, 2022 में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व वाली राजग सरकार द्वारा शुरू की गई ‘अग्निवीर योजना’ पर एक समग्र दृष्टिकोण डालते हुए गंभीर विचार करने की आवश्यकता प्रतीत होती है।
अग्निवीर योजना का सामरिक महत्व
एशिया-प्रशांत और हिंद महासागर क्षेत्र में एक प्रमुख पक्ष के नाते भारत की स्थिति सर्वविदित है। राजपूताना राइफल्स के एक अनुभवी पूर्व सैन्य अधिकारी लेफ्टिनेंट जनरल अभय कृष्ण का कहना है कि भौगोलिक दृष्टि से भारत हिंद महासागर क्षेत्र में एक तटस्थ भाव रखने वाला देश माना जाता है। वैश्विक व्यापार का 70 प्रतिशत से अधिक हिस्सा हिंद महासागर से ही होकर गुजरता है, इसलिए क्षेत्रीय स्थिरता सुनिश्चित करने में भारत की महत्वपूर्ण भूमिका है। इस दृष्टि से अग्निवीर योजना, जो तकनीकी रूप से उन्नत, युवा और चुस्त सैन्य बल बनाने पर केंद्रित है, को भारत की रणनीतिक स्वायत्तता को बनाए रखने और उभरते खतरों से निपटने में एक बहुत ही आवश्यक राष्ट्रीय संपदा कहा जा सकता है।
‘अग्निवीर’ के मुख्य संभावित योगदानों की बात करें तो वे हैं—
राष्ट्र निर्माण : एक अनुशासित और प्रशिक्षित युवा जनशक्ति होने से ये एक बहुत बड़ा योगदान दे सकते हंै, क्योंकि इनमें एक मजबूत लोकाचार और एकता की गहरी भावना है, जहां राष्ट्र पहले आता है। यह भाव उसके आगे भारतीय सशस्त्र बलों के साथ जुड़ने पर उनके व्यक्तित्व में समाहित हो जाता है।
युद्ध की तैयारी : यूक्रेन जैसे देशों का अनुभव, जिन्होंने अल्पकालिक भर्ती के माध्यम से युद्ध-अनुभवी कर्मियों की एक बड़ी खेप तैयार की है, त्वरित तैनाती के लिए तैयार प्रशिक्षित जवानों के महत्व को उजागर करता है। अग्निवीर योजना भारत को इसी तरह का लाभ प्रदान करती है। आज हमारे कुछ युवा दूसरे देशों की सेनाओं में भी शामिल हो रहे हैं। यूक्रेन और रूस दोनों इसके स्पष्ट उदाहरण हैं।
कौशल और अनुभव : वित्तीय स्थिरता से परे, अग्निवीर के पास कौशल और अनुभव, दोनों होते हैं, जो विभिन्न क्षेत्रों में महत्व रखते हैं, चाहे वे बड़े व्यापारिक समूह हों या अन्य कोई क्षेत्र। हर स्थान पर कुशल और जांबाज कर्मियों की कमी को अग्निवीरों द्वारा आसानी से पूरा किया जा सकता है। इस प्रकार, निजी सैन्य कंपनियां (पीएमसी) भारत की सीमाओं के बाहर हमारी संपत्तियों की सुरक्षा के संदर्भ में तेजी से महत्व पा रही हैं। उनका प्रशिक्षण, अनुशासन, प्रेरणा, शारीरिक सौष्ठव और अनुकूलनशीलता उन्हें भारत और दुनियाभर में प्रमुख सुरक्षा भूमिकाओं में उतरने के योग्य बनाती है।
वित्तीय स्थिरता : एक अग्निवीर सेवानिवृत्त होने तक लगभग 28,45,000 रुपए कमा चुका होता है, जिसमें उसका संचयी वेतन और सेवा निधि पैकेज शामिल होता है। इतनी कम उम्र में यह वित्तीय सुरक्षा उन्हें अचानक आ सकने वालीं वित्तीय बाधाओं के बीच शिक्षा, उद्यमशीलता या अन्य कैरियर के अवसरों को अपनाने के लायक बनाती है।
यह योजना एक तैयार और उत्तरदायी सैन्य बल को बनाए रखने की दिशा में एक लागत प्रभावी दृष्टिकोण भी प्रदान करती है। एक निश्चित अवधि के लिए युवा सैनिकों को नियुक्त करके, सरकार संसाधनों का अनुकूलन कर सकती है, यह सुनिश्चित करते हुए कि सशस्त्र बल युवा और ऊर्जावान बने रहें।
अफगानिस्तान, बांग्लादेश से सबक
अफगानिस्तान से अमेरिकी सैनिकों के निकलने के बाद उस देश की स्थिति ने यही दिखाया है कि दुनियाभर के देशों के लिए अपनी संपत्ति को सुरक्षित रखना और रणनीतिक रूप से महत्वपूर्ण क्षेत्रों में प्रभाव बनाए रखना कितना महत्वपूर्ण है। आने वाले दिनों में बांग्लादेश में भी ऐसी ही स्थिति बन सकती है। निजी सैन्य कंपनियों (पीएमसी) ने इस संबंध में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है, जो अक्सर पारंपरिक सैन्य बलों द्वारा पैदा की गई खामी को पूरा करती हैं। अमेरिका, रूस और अन्य देश वैश्विक स्तर पर अपने हितों की रक्षा के लिए लंबे समय से पीएमसी पर निर्भर हैं।
भारत के लिए, अग्निवीर योजना अपनी खुद की पीएमसी क्षमताओं को विकसित करने की दिशा में एक कदम जैसी हो सकती है। सुप्रशिक्षित, अनुशासित पूर्व अग्निवीरों का उपयोग करके, भारत उन क्षेत्रों में शक्ति प्रदर्शित कर सकता है और अपनी संपत्ति की रक्षा कर सकता है जहां प्रत्यक्ष सैन्य उपस्थिति कूटनीतिक रूप से संवेदनशील या प्रशासनिक रूप से संभव नहीं हो सकती। लेफ्टिनेंट जनरल अभय के अनुसार, इस दृष्टिकोण से भारत को कुछ क्षेत्रों में किसी स्थायी सैन्य उपस्थिति के बिना अपने हितों की रक्षा करने में मदद मिलेगी, जैसे कि पूर्वी अफ्रीका में ऊर्जा संसाधन या अंतरराष्ट्रीय उत्तर-दक्षिण परिवहन गलियारे (आईएनएसटीसी) और अरब-भूमध्यसागरीय गलियारे के तहत व्यापार मार्ग को सुरक्षित रखना।
चुनौतियां और आगे की राह
ले. जनरल अभय कहते हैं कि अग्निवीर योजना एक दूरदर्शी पहल है जो भारत के सामने आने वाली वर्तमान और भविष्य की सुरक्षा चुनौतियों का समाधान करती है। कोई भी नया उत्पाद, प्रणाली या योजना, जो भले ही बहुत सोच-विचार कर योजनाबद्ध तरीके से तैयार की गई हो, उसमें भी समय के साथ प्राप्त अनुभव के माध्यम से मामूली सुधार की जरूरत पड़ सकती है। इसलिए, अग्निवीर योजना में भी आगे चलकर कुछ सुधार होने से इंकार नहीं किया जा सकता।
निस्संदेह इस योजना को लागू हुए अब दो साल हो चुके हैं। अगर आगे इसमें छोटे-मोटे सुधार करने की आवश्यकता होती है तो वे किए जा सकते हैं, जिससे कि यह अधिक मजबूत, दोषरहित योजना बने। साथ ही कुछ राजनीतिक दलों और सोशल मीडिया द्वारा फैलाए जा रहे दुष्प्रचार का भी सबल प्रतिकार संभव हो सकेगा। उनका यह दुष्प्रचार केवल अग्निवीरों के मन पर ही नहीं बल्कि हमारे बेरोजगार युवाओं और उनके परिवारों पर भी नकारात्मक प्रभाव डाल सकता है।
स्पष्ट नीति, साफ तस्वीर
अग्निवीरों का पहला बैच वर्ष 2027 से सेवानिवृत्त होना शुरू होगा। सुनने में आता रहा है कि भारतीय सेना में अफसरों व अन्य कर्मियों की भर्ती में गिरावट आई है। इसमें भी 45 प्रतिशत भर्तियां केवल केंद्रीय सशस्त्र पुलिस बल जैसे विकल्पों में उम्मीदवारों के नाकाम होने के बाद ही हो पाती हैं। भारत सरकार इस तथ्य की जांच करके आवश्यक सुधार/संशोधन पर विचार कर सकती है।
जैसे- छुट्टी और वेतन में समानता : एक सोच यह भी चल रही है कि अग्निवीरों को नियमित सैनिकों जैसी ही छुट्टियां और वेतन लाभ दिए जाने की आवश्यकता है। वे एक जैसे खतरे का सामना करने के लिए प्रशिक्षित हैं। दोनों श्रेणियों के लिए जीवन समान और महत्वपूर्ण है। यह संशोधन मनोबल बढ़ा सकता है और रैंकों के भीतर निष्पक्षता भी सुनिश्चित कर सकता है।
भविष्य की गारंटी : यह सुनिश्चित किया जाना चाहिए कि सशस्त्र बल छोड़ने के बाद अग्निवीरों को पुलिस सेवाओं और सीएपीएफ में शामिल किया जाना ही चाहिए। इस संबंध में कुछ घोषणाएं तो की गई हैं, लेकिन इस संबंध में अखिल भारतीय स्तर पर एक दृढ़ और स्पष्ट नीति बनाने के बारे में सोचा जा सकता है, यह सुनिश्चित करते हुए कि जो अग्निवीर पुलिस और सीएपीएफ में शामिल नहीं होते, उन्हें कॉर्पोरेट सेवाओं के क्षेत्र में आने में मदद दी जाएगी, इस संबंध में आवश्यक प्रशिक्षण दिया जाएगा।
‘रिटेंशन’ प्रतिशत : चूंकि अग्निवीर योजना अभी शुरुआती चरण में है, इसलिए ‘रिटेंशन’ प्रतिशत को 25 के बजाय शुरू में न्यूनतम 50 प्रतिशत माना जा सकता है। वर्तमान में हमें अभी भी नियंत्रण रेखा, वास्तविक नियंत्रण रेखा, सियाचिन, पाकिस्तान के भेजे भाड़े के आतंकवादियों और पूर्वोत्तर में विद्रोहियों से लड़ने के लिए सैनिकों की आवश्यकता है। रक्षा के लिए बहुत लंबी सीमा होने और इसके अधिकांश हिस्से का चीन और पाकिस्तान के साथ विवादित होने को देखते हुए, ‘एक सीमा एक बल’ की अवधारणा न होने से मौजूदा स्थिति में जमीन पर अपनी वृहत उपस्थिति बनाए रखना बेहद जरूरी है।
दिव्यांगता पेंशन : अग्निवीर योजना यह सुनिश्चित करती है कि हमारे संभावित युद्ध क्षेत्रों, जैसे सियाचिन, लद्दाख, एलएसी, एलसी या आतंकवाद/उग्रवाद विरोधी अभियान आदि में तैनात सैनिकों की औसत आयु 18 से 21 वर्ष के बीच हो। द्वितीय विश्व युद्ध में तैनात अमेरिकी सैनिकों की औसत आयु 22 वर्ष थी जबकि विएतनाम में यह बढ़कर 27 हो गई थी। हम जानते हैं कि इसका अमेरिकी सेना पर क्या प्रभाव पड़ा था। अग्निवीरों को 17 से 21 वर्ष की आयु में भर्ती किया जाना निश्चित रूप से फायदेमंद रहेगा, बशर्ते दिव्यांगता पेंशन बढ़ाई जाए।
‘अग्निवीरों को पेंशन वाली नौकरी देंगे’
कांग्रेस और राहुल गांधी लगातार अग्निवीर को लेकर अफवाह फैला रहे हैं। हाल ही में हरियाणा के गुरुग्राम में एक जनसभा को संबोधित करते हुए केन्द्रीय गृह मंत्री अमित शाह जमकर राहुल गांधी पर बरसे। उन्होंने कहा कि कांग्रेस के ‘राहुल बाबा’ झूठ की मशीन हैं। वे कह रहे हैं कि अग्निवीर योजना इसलिए लाई गई, क्योंकि सरकार उन्हें पेंशन वाली नौकरी नहीं देना चाहती। अग्निवीर योजना सिर्फ सेना को जवान बनाए रखने के लिए बनाई गई है। अपने बच्चों को सेना में भेजते वक्त मत झिझकिएगा। हरियाणा के एक-एक अग्निवीर को हरियाणा सरकार और भारत सरकार पेंशन वाली नौकरी देगी। पांच साल बाद ऐसा कोई अग्निवीर नहीं होगा, जिसके पास पेंशन वाली नौकरी न हो। इसलिए किसी को डरने की जरूरत नहीं है।
यही वक्त है
हाल के दिनों में बांग्लादेश, अफगानिस्तान, म्यांमार और यूक्रेन जैसे देशों के अनुभवों से सीखकर, भारत अग्निवीर योजना का लाभ उठाकर तकनीकी रूप से उन्नत, चुस्त और आर्थिक रूप से व्यवहार्य सैन्य बल का निर्माण कर सकता है। जैसे-जैसे ये युवा अग्निवीर सेवानिवृत्त होंगे, वे खुद को वित्तीय और पेशेवर रूप से अच्छी स्थिति में पाएंगे, आनलाइन सामग्री बनाने और उसका उपभोग करने में व्यस्त अपने साथियों से कहीं आगे, नए तरीकों से भारत की सुरक्षा और समृद्धि में योगदान देने के लिए तैयार होंगे।
एक और मुद्दा जो काफी चर्चा में रहा है, वह है नेपाल सरकार द्वारा अग्निवीर योजना के तहत नेपाली गोरखाओं को भारतीय सेना में शामिल होने की अनुमति न देना। कुछ विशेषज्ञों की राय है कि नेपाल सरकार द्वारा अपनाए गए इस रुख की वजह से नेपाल में न केवल बेरोजगारी बढ़ेगी, बल्कि उसे आर्थिक रूप से भी नुकसान होगा। लेकिन इस एक तथ्य को भी हमें नजरअंदाज नहीं करना चाहिए कि नेपाल सरकार का ऐसा रुख भारत को सैनिकों के रूप में एक बहुत ही उच्च गुणवत्ता वाली संपदा से वंचित कर देगा। दो शताब्दियों से अधिक समय से ब्रिटिश भारतीय सेना के रूप में या स्वतंत्रता के बाद भारतीय सेना के रूप में दुनियाभर में हमारा सैन्य इतिहास गोरखा सैनिकों के असाधारण शौर्य और बलिदानों से भरा पड़ा है। विशेषज्ञों का मानना है कि भारतीय सेना के वरिष्ठ अधिकारी, विशेष रूप से गोरखा रेजिमेंट के अधिकारी भी इस तथ्य को मान्य करेंगे।
अग्निवीर योजना को केवल एक रोजगार देने वाली योजना के रूप में न देखकर इसे चरित्र और राष्ट्र निर्माण की पहल के रूप में देखना चाहिए। सरकार अपनी ओर से एक स्पष्ट संदेश जारी करे तो अच्छा रहेगा, जिसमें योजना के दीर्घकालिक लाभों को रेखांकित किया जाए। इससे यह योजना भविष्य में एक बड़ी गतिशील राष्ट्रीय संपदा के रूप में आगे बढ़ती जाएगी। (लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं)
टिप्पणियाँ