मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने प्रयागराज में महाकुंभ की तैयारियों की समीक्षा करने के बाद सभी अखाड़ों के संतों से भेंट की. इस मुलाक़ात में महाकुम्भ में शाही स्नान और पेशवाई शब्द हटाने पर भी चर्चा हुई. मुख्यमंत्री आदित्यनाथ ने कहा है कि अखाड़े जो प्रस्ताव देंगे, सरकार उस पर सार्थक कदम उठाएगी.
महाकुम्भ में पेशवाई और शाही स्नान का नाम बदलने का प्रस्ताव कुछ समय पहले अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष श्रीमहंत रवींद्र पुरी ने दिया था. अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष रवीन्द्र पुरी का कहना है कि ‘शाही’, उर्दू भाषा का शब्द है, यह नाम मुगलों के समय दिया गया था. अब अखाड़ों की सहमति के बाद इस नाम को बदला जाएगा. इस नाम की जगह नया नाम चयनित किया जाएगा. इसके लिए सभी अखाड़ों की सहमति ली जाएगी. ‘शाही’ शब्द हम लोगों के लिए गुलामी का प्रतीक है. उन्होंने कहा कि जिस दौर में जिसका शासन रहता है. उस दौर में उसकी भाषा का भी प्रभाव आ जाता है. मध्यकाल में आक्रांताओं का प्रभाव बहुत अधिक बढ़ गया था. इस कारण से उन लोगों की भाषा भी दैनिक जीवन में प्रयोग होने लगी. अब समय बदल चुका है. अब आवश्यकता है कि हम लोग अपने मूल स्वरूप की तरफ लौटें इसलिए यह सुझाव है कि ‘शाही’ स्नान की जगह देव स्नान या फिर दिव्य स्नान जैसे किसी शब्द का चयन किया जाय।
रवींद्र पुरी कहते हैं कि यह भाषा जिन लोगों की है, वो लोग हम लोगों को अपना शत्रु मानते हैं. वो लोग वंदे मातरम नहीं बोलते हैं. उन लोगों को भारत माता की जय बोलने में भी परेशानी होती है. ऐसे लोगों की भाषा हम लोग क्यों ढो रहे हैं ? प्रयागराज जनपद में अखाड़ा परिषद की बैठक बुलाई जाएगी. उस बैठक में शाही स्नान , पेशवाई और चेहरा – मोहरा, इन तीनों शब्दों को परिवर्तित करने पर विचार किया जाएगा. कुम्भ मेला क्षेत्र में हम लोग जहां पर छावनी बनाते हैं. वहां पर बैठक आदि होती है. उसी को चेहरा – मोहरा कहा जाता है. अखाड़ा परिषद की बैठक में कुछ और शब्द भी सामने आ सकते हैं. मुगलों के समय में अकबर की शाही सवारी निकलती थी. हमारे स्नान में ‘शाही’ शब्द का कोई औचित्य नहीं है. शाही के स्थान पर राजसी करने पर भी विचार किया जा सकता है. सनातन धर्म की भाषा हिंदी और संस्कृत है. ऐसे में उर्दू और फारसी के शब्दों का कोई स्थान नहीं है.
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