देश में बीते कुछ दिनों से अर्न्स्ट एंड यंग (ईवाई) इंडिया की कर्मचारी एना सेबेस्टियन पेरायिल की मृत्यु पर बहस चल रही है। कार्य स्थल पर काम का बढ़ता बोझ और उसके कारण होने वाली मौतें एक गंभीर समस्या है। इस संवेदनशील और गंभीर विषय पर विमर्श को राजनीतिक रंग देने की कोशिश नहीं होनी चाहिए। अभी स्पष्ट नहीं है कि एना पर काम का बोझ क्या असाधारण रूप से बहुत ज्यादा था? क्या वे ‘कार्यस्थल के विषाक्त माहौल’ या अनुभवहीनता की शिकार हुईं या उनकी मृत्यु सहज थी? इसकी जांच चल रही है। केरल की 26 वर्षीया एना ने 2023 में चार्टर्ड अकाउंटेंट (सीए) की परीक्षा पास की थी। वे चार महीने से ईवाई के पुणे कार्यालय में काम कर रही थीं। उनके पिता शिबी जोसफ का कहना है, ‘‘एना को देर रात 12.30 बजे तक काम करना पड़ता था। हमने उसे नौकरी छोड़ने की सलाह दी, लेकिन उसने जोर देकर कहा कि इस काम से उसका अनुभव बढ़ेगा।’’
यह मामला कर्मचारियों की कार्य स्थिति, काम के बोझ, इससे जुड़े कानूनों के अलावा जीवन तथा समाज की भावनाओं, मनोदशाओं और स्वास्थ्य में अचानक आए बदलाव जैसे सैकड़ों सवालों को एक साथ सामने लाता है। इन प्रश्नों पर गहराई से विचार करने और समाधान खोजने के बजाय कुछ लोग राजनीतिक रोटियां सेंकने और पूरे विमर्श को दूसरी ओर मोड़ने की कोशिश करते हैं, तो अफसोस और ग्लानि, दोनों होते हैं।
राजनीतिक रंग देने का प्रयास
जैसे ही एना की मौत की खबरें आईं, कांग्रेस के नेता राहुल गांधी ने उनके माता-पिता से बात की और आश्वासन दिया कि लोकसभा में विपक्ष के नेता के रूप में वे व्यक्तिगत तौर पर इस मुद्दे के लिए लड़ेंगे। विपक्ष के नेता होने के नाते राहुल गांधी को बात को समझने और समाधान खोजने में सहयोग करने का पूरा अधिकार है, पर उनकी पार्टी के वक्तव्यों से लगता है कि वे इसे राजनीतिक मोड़ देने का प्रयास कर रहे हैं। राहुल गांधी ने अखिल भारतीय प्रोफेशनल्स कांग्रेस (एआईपीसी) के अध्यक्ष प्रवीण चक्रवर्ती द्वारा आयोजित एक वीडियो कॉल के माध्यम से एना के माता-पिता से बात की। उन्होंने कठिन क्षण में इस मुद्दे पर बोलने के लिए परिवार के साहस की सराहना की। साथ ही, एआईपीसी अध्यक्ष को भारत में सभी कामकाजी पेशेवरों के लिए एना की स्मृति में जागरूकता आंदोलन चलाने का निर्देश भी दिया।
कांग्रेस सांसद शशि थरूर ने भी एना के पिता से बात की और कहा कि संसद के आगामी सत्र में इस मामले को उठाया जाएगा। थरूर का कहना है कि चाहे निजी-क्षेत्र हो या सार्वजनिक, काम के घंटे सप्ताह में पांच दिन और प्रतिदिन आठ घंटे से अधिक नहीं होने चाहिए। राहुल गांधी या शशि थरूर का दृष्टिकोण जो भी हो, पर पिछले दिनों कांग्रेस-प्रशासित राज्य कर्नाटक में कर्नाटक शॉप्स एंड कॉमर्शियल एस्टेब्लिशमेंट एक्ट में संशोधन का प्रस्ताव किया गया है, जिसके तहत कार्य-दिवस की अधिकतम अवधि 10 घंटे से बढ़ाकर 14 घंटे करने का प्रस्ताव है।
वहीं, एना की मौत से जुड़ी खबर पर केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण के बयान का मर्म समझने की बजाय शिवसेना सांसद प्रियंका चतुर्वेदी और कांग्रेस महासचिव केसी वेणुगोपाल हमलावर हो गए। उन्होंने वित्त मंत्री को पूरी बात रखने का मौका भी नहीं दिया और इसे दूसरी ओर घुमा दिया। बहरहाल, केंद्रीय श्रम एवं रोजगार मंत्रालय अन्ना सेबेस्टियन की मौत की जांच कर रहा है।
मीडिया की भूमिका
ये घटनाएं ऐसे समय में हुई हैं, जब अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन (आईएलओ) ने एक अध्ययन शुरू किया है, जो देश में प्रचलित कार्य-अवधि पर प्रकाश डालेगा। इसमें ओवरटाइम के लिए दिए जाने वाले वेतन का आकलन भी शामिल होगा। भारत इस अनौपचारिक रैंकिंग में शामिल होता रहा है, जिसमें आईएलओ के स्रोतों और राष्ट्रीय सांख्यिकीय एजेंसियों से प्राप्त आंकड़ों को संकलित करके दुनिया में सर्वाधिक काम के बोझ वाले देशों की सूची बनाई जाती है।
काम का बोझ
क्या हमारे देश में काम का बोझ बहुत ज्यादा है? पिछले दिनों इन्फोसिस के सह-संस्थापक नारायण मूर्ति ने एक पॉडकास्ट में कहा था कि भारत में कार्य-उत्पादकता दुनिया में सबसे कम है। चीन जैसे देशों से मुकाबला करने के लिए भारतीय युवाओं को हफ्ते में 70 घंटे काम करना चाहिए। जापान और जर्मनी ने ऐसा किया था। जापान के लोगों ने द्वितीय विश्व युद्ध के बाद राष्ट्र-निर्माण के लिए कड़ी मेहनत की और लंबे समय तक काम किया, जिससे वह देश इतनी तेजी से आगे बढ़ पाया। उनकी पत्नी सुधा मूर्ति का कहना है कि नारायण मूर्ति खुद हफ्ते में 80 से 90 घंटे काम करते हैं। ‘वर्कलोड’ के लिहाज से भारत के मुकाबले मैक्सिको, इस्राएल, दक्षिण कोरिया और कनाडा जैसे देशों के कर्मचारी ज्यादा घंटे तक काम करते हैं। दूसरी तरफ, ब्रिटेन और जर्मनी जैसे देश चार दिन के कार्य-सप्ताह पर जा रहे हैं। अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन (आईएलओ) के अनुसार, भारतीय प्रति सप्ताह औसतन 48-50 घंटे काम करते हैं, जबकि वैश्विक औसत 34-36 घंटे है। भारत में महिला कर्मचारी इसके अलावा घर में ‘अवैतनिक’ श्रम करती हैं।
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