रूस ने अफगानिस्तान के मौजूदा हुक्मरान, बंदूकधारी तालिबान का नाम आतंकवादी संगठनों की अपनी सूची में जोड़ा था। इस तालिबान ने ही तीन साल पहले, अगस्त 2021 में काबुल की चुनी हुई सरकार को कुर्सी से हटाकर सत्ता कब्जाई थी, उसके बाद से दुनिया के अधिकांश देश अफगानिस्तान से एक प्रकार से राजनयिक संबंध काटे हुए थे। चीन एक अपवाद था, जिसका दूतावास अगस्त 2021 में अस्थायी रूप से बंद होने के बाद जल्दी ही दोबारा कार्यरत हो गया था।
इस साल मई में जर्मनी के एक प्रमुख मीडिया संस्थान डीडब्ल्यू ने खुलासा किया था कि आने वाले दिनों में शायद रूस तालिबान को अपनी ‘आतंकवादी सूची’ से बाहर कर देगा। अब रूस उसी ओर कदम बढ़ाता दिख रहा है। इस संबंध में एक अहम बैठक रूस की राजधानी मास्को में सम्पन्न हुई है, इसमें इस बात पर सहमति बनी है कि अफगानिस्तान के साथ शायद जल्दी ही रूस राजनयिक संबंध स्थापित कर लेगा।
उल्लेखनीय है कि इसी रूस ने अफगानिस्तान के मौजूदा हुक्मरान, बंदूकधारी तालिबान का नाम आतंकवादी संगठनों की अपनी सूची में जोड़ा था। इस तालिबान ने ही तीन साल पहले, अगस्त 2021 में काबुल की चुनी हुई सरकार को कुर्सी से हटाकर सत्ता कब्जाई थी, उसके बाद से दुनिया के अधिकांश देश अफगानिस्तान से एक प्रकार से राजनयिक संबंध काटे हुए थे। चीन एक अपवाद था, जिसका दूतावास अगस्त 2021 में अस्थायी रूप से बंद होने के बाद जल्दी ही दोबारा कार्यरत हो गया था।
लेकिन अब रूस अपने ‘मित्र देश’ के नक्शेकदम पर बढ़ता दिख रहा है। उधर तालिबान का काबुल पर ‘कब्जा’ लंबा खिंचता दिख रहा है। शुरू में लगा था कि शाायद दूसरी बार हिंसा के रास्ते अफगानिस्तान की ‘सरकार’ बन बैठे बंदूकधारी तालिबान ज्यादा दिन अपना शरियाई राज कायम नहीं रख पाएंगें। लेकिन अनेक प्रकार के सिरफिरे फतवे जारी करते रहने के बाद भी, अब तक तालिबान ने अपने कुछ ‘हमदर्द’ देश तैयार कर लिए हैं।
मास्को में कल हुई एक महत्वपूर्ण बैठक के बाद, रूस के विदेश मंत्री सरगेई लावारोव के बयान से यही संकेत जा रहा है कि न सिर्फ रूस तालिबान को और आगे ‘आतंकी संगठन’ नहीं मानते हुए उसका नाम उस सूची से हटा देगा जो उसने खूंखार वैश्विक आतंकवादी संगठनों की बनाई हुई है।
अफगानिस्तान के परिप्रेक्ष्य में मास्को में इस अहम बैठक के बाद रूस की सरकारी समाचार एजेंसी ‘तास’ ने विदेश विभाग को उद्धृत करते हुए कहा है कि तालिबान के संंबंध में यह निर्णय उच्चतम स्तर पर लिया गया। राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन के अफगानिस्तान के विशेष प्रतिनिधि ने एजेंसी को बताया है कि इस फैसले को अब तमाम कानूनी प्रक्रियाओं से गुजरने के बाद अमल में लाया जाएगा।
हालांकि रूस ने यह निर्णय अचानक नहीं लिया है। जैसा पहले बताया, काबुल में कुर्सी पर तालिबान के चढ़ बैठने के बाद से ही पुतिन इस प्रयास में थे कि हवा का रुख देखते हुए तालिबान के साथ नजदीकी बढ़ाई जाए। भूराजनीति भी इसमें कहीं न कहीं अपना प्रभाव दिखा रही थी। अत: रूस ने तालिबान की ओर धीमे लेकिन मजबूत कदम बढ़ाने शुरू कर दिए थे। राष्ट्रपति पुतिन ने अभी तीन महीने पहले ही यह कहा था कि अफगानिस्तान में बैठे तालिबान आतंकवाद के विरुद्ध रूस के युद्ध में एक सहयोगी की तरह हैं। उसके बाद भी तालिबान का नाम रूस सरकार की आतंकवादी संगठनों की सूची में बना रहा था।
लेकिन अब संभवत: जल्दी ही स्थितियां बदलने वाली हैं। यहां यह बात भी ध्यान रखने वाली है अभी भी दुनिया का कोई देश अफगानिस्तान में तालिबान की सरकार को वैध नहीं मानता है। यह अलग बात है कि तालिबान सरकार के राजदूतों को चीन तथा संयुक्त अरब अमीरात ने अपने यहां मान्य किया हुआ है।
रूस सरकार की आतंकवादी संगठनों की सूची में तालिबान 2003 से ही दर्ज है। लेकिन कल की बैठक के बाद, मास्को का रवैया इस ओर तेजी से नरम होते जाने के संकेत हैं। अफगानिस्तान के साथ रिश्तों को सामान्य स्तर पर लाने की इस कवायद को रूस के कूटनीतिक एक बड़ा कदम मान रहे हैं।
रूस की राजधानी में कल जो बैठक हुई उसका विषय सिर्फ और सिर्फ अफगानिस्तान ही रहा था। बैठक में रूस के विदेश मंत्री सरगेई लावारोव के साथ ही भारत की तरफ से संयुक्त सचिव जे.पी. सिंह भी मौजूद थे। यहां बता दें संयुक्त सचिव सिंह खुद अफगानिस्तान जाकर तालिबान प्रतिनिधियों से भारत के प्रयास से वहां चल रहीं परियोजनाओं के भविष्य पर चर्चा कर आए हैं। शायद उनकी उस यात्रा का ही असर है कि अफगानिस्तान में गैस के लिए पाइपलाइन बिछाने की परियोजना पर काम आगे बढ़ गया है।
कल की बैठक में ही रूस के विदेश मंत्री ने पश्चिम के देशों से भी अपील की है कि अफगानिस्तान के विरुद्ध जो प्रतिबंध लगाए हुए हैं उन्हें हटा लें और उस देश के विकास का रास्ता साफ करें। विदेश मंत्री लावारोव ने खासतौर पर अमेरिका से अपील की है कि उसने जो अफगान संपत्तियों को जब्त किया हुआ है वे वापस दे दें।
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