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जयशंकर के पाकिस्तान दौरे का अर्थ सिर्फ SCO तक सीमित! जिन्ना के देश को आतंकवाद पर माफ नहीं किया है भारत ने

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भारत सरकार के इस दौरे के लिए जयशंकर को भेजने पर कई विशेषज्ञ मानते हैं कि रूस जैसे दोस्त देशों से एससीओ को लेकर संबंधों में कोई खटास न आए, संभवत: इस दृष्टि से जयशंकर का जाना तय हुआ है। दूसरा नजरिया यह भी है कि अगर भारत के उसके पड़ोसी देश से राजनयिक संबंधों में तनाव है तो वह अपनी जगह है, एससीओ के कामकाज में इससे कोई बाधा नहीं आनी चाहिए। भारत की विदेश नीति एससीओ जैसे मंचों को पूरा महत्व भी देती है।


भारत और पाकिस्तान, दोनों देशों का मीडिया पिछले कई दिनों से कयास लगाता आ रहा था कि क्या इस्लामाबाद में होने जा रही एससीओ की बैठक में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी जाएंगे? ऐसी तमाम अटकलों को विराम देते हुए भारत के विदेश विभाग ने स्पष्ट कर दिया है कि मोदी नहीं, विदेश मंत्री एस. जयशंकर इस बैठक में भाग लेंगे। इस जानकारी के साथ ही विदेश विभाग के प्रवक्ता ने यह भी साफ कर दिया कि जयशंकर के इस दौरे को पाकिस्तान से रिश्ते सुधारने की कोशिश न माना जाए क्योंकि आतंकवाद को लेकर भारत का उस देश के प्रति जो रुख है उसमें कोई परिवर्तन नहीं आने वाला है।

जयशंकर के जिन्ना के देश जाने की खबर मिलते ही यहां और वहां के विशेषज्ञों में मंथन शुरू हो गया है कि आखिरकार 9 साल के बाद भारत के किसी विदेश मंत्री की पड़ोसी देश में होने वाली यह यात्रा किस तरह देखी जाए और क्या पाकिस्तान को लेकर भारत के रवैए में कोई नरमाई आई है!

2022 की समरकंद में सम्पन्न एससीओ बैठक में सदसरू देशों के शीर्ष नेताओं के साथ भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी

शंघाई सहयोग संगठन (एससीओ) की बैठक इस बार 15 और 16 अक्तूबर को इस्लामाबाद में होनी तय हुई है। भारत के विदेश मंत्री इस बैठक में भारत के प्रतिनिधिमंडल के नेता होंगे। पिछली बार, 9 साल पहले, 2015 में भारत की तत्कालीन विदेश मंत्री श्रीमती सुषमा स्वराज इस्लामाबाद में संपन्न ‘हार्ट ऑफ एशिया’ सम्मेलन में भाग लेने गई थीं। उसके बाद प्रधानमंत्री एक यात्रा से लौटते हुए अचानक 19 अप्रैल 2021 को कुछ घंटों के लिए लाहौर पहुंचे थे।

क्या कूटनी​ति के गहन जानकार जयशंकर का इस्लामाबाद का यह दौरा ‘भारत और पाकिस्तान के बीच जमी बर्फ को पिघालने’ में प्रभावी होगा, इस सवाल पर भारत के तो कम से कम अधिकांश विदेश विशेषज्ञ मानते हैं कि जयशंकर के इस दौरे को उस परिप्रेक्ष्य में देखना भूल होगी। लेकिन हां, एससीओ में होने वाली व्यापारिक सहयोग पर चर्चा की दृष्टि से यह दौरा खास मायने रखता है।

यहां बता दें कि शंघाई सहयोग संगठन या एससीओ औपचारिक रूप से 2001 में अस्तित्व में आया था। इसमें रूस, चीन सहित पूर्ववर्ती सोवियत संघ के भाग रहे चार एशियाई देश— कज़ाकिस्तान, किर्गिस्तान, ताजिकिस्तान तथा उज़्बेकिस्तान भी शामिल थे। लेकिन 2017 में भारत तथा पाकिस्तान भी इस संगठन के सदस्य बने थे और फिर 2023 में ईरान भी इससे जुड़ गया। इस प्रकार वर्तमान में एससीओ के कुल सदस्यों की संख्या 9 है। भारत ने 2017 के बाद से ही इस मंच में अपनी महत्वपूर्ण सहभागिता दर्शाई है और विभिन्न मुद्दों पर संगठन को मजबूत बनाया है।

2015 में भारत की तत्कालीन विदेश मंत्री श्रीमती सुषमा स्वराज इस्लामाबाद में तत्कालीन प्रधानमंत्री नवाज शरीफ के साथ

विशेषज्ञ मानते हैं कि जिन्ना के देश के अंदरूनी हालात आज भी डावांडोल हैं। वह लड़खड़ा रहा है। ऐसे देश से संबंध बढ़ाने की कोई वजह भी नजर नहीं आ रही है। दूसरे, आतंकवाद पर उसका रवैया जस का तस है। इन दिनों दुनिया भर में कुख्यात इस्लामी उन्माद का प्रसारक जाकिर नाइक जिस देश का सरकारी मेहमान बना बैठा है, उस देश में कट्टरपंथियों पर लगाम लगने का सोचा भी नहीं जा सकता।

भारत सरकार के इस दौरे के लिए जयशंकर को भेजने पर कई विशेषज्ञ मानते हैं कि रूस जैसे दोस्त देशों से एससीओ को लेकर संबंधों में कोई खटास न आए, संभवत: इस दृष्टि से जयशंकर का जाना तय हुआ है। दूसरा नजरिया यह भी है कि अगर भारत के उसके पड़ोसी देश से राजनयिक संबंधों में तनाव है तो वह अपनी जगह है, एससीओ के कामकाज में इससे कोई बाधा नहीं आनी चाहिए। भारत की विदेश नीति एससीओ जैसे मंचों को पूरा महत्व भी देती है।

दूसरे, भारत के विदेश मंत्री के पड़ोसी देश मे जाने का एक अर्थ यह भी है कि वर्तमान में भारत सरकार प्रधानमंत्री के स्तर पर उस देश से किसी प्रकार का संवाद नहीं करना चाहती है और यह स्वाभाविक भी है। भारत की ओर से सभी मंचों से अनेक बार कहा गया है कि जब तक पाकिस्तान आतंकवाद का समर्थन करता रहेगा, उससे कोई सार्थक वार्ता संभव नहीं है।

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