छत्तीसगढ़

उम्र भर सालेगी यह टीस

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WEB DESK

20 मई, 2008 की बात है। 46 वर्षीया रामादई ओरछा गई थीं। वहां बाजार लगा था। उनके साथ उनकी ननद रामबती, रामेश्वर, बिसंभर और गांव की अन्य महिलाएं भी गई थीं। लौटते समय पता चला कि नक्सलियों ने सड़क काट दी है, तो सभी वहीं रुक गईं। अगले दिन सभी गाड़ी से रवाना हुईं, लेकिन रास्ता अब भी बंद था।

लिहाजा, सभी ने पैदल ही घर लौटने का फैसला किया। सभी सड़क के किनारे-किनारे चल रही थीं। रामादई और रामबती सबसे पीछे थीं। सब एक के पीछे एक कतार में चल रही थीं। अचानक रामादई के पीछे जोरदार धमाका हुआ और वे उछल कर कुछ फीट दूर जा गिरीं।

दरअसल, रामबती का पैर एक आईईडी पर पड़ गया था। कुछ दूरी पर रामबती लहूलुहान पड़ी हुई थी। रामादई कुछ देर तो दर्द से कराहती रहीं, फिर बेसुध हो गईं। स्थानीय लोगों ने तत्काल दोनों को अस्पताल पहुचाया, जहां रामबती को मृत घोषित कर दिया गया। हालांकि रामबती की मृत्यु घटनास्थल पर ही हो गई थी।

रामादई इलाज के बाद ठीक तो हो गईं, लेकिन उन्हें सांस से जुड़ी समस्याओं ने घेर लिया है। विस्फोट में चोट के कारण पैरों और कमर में आज भी दर्द रहता है। लेकिन उन्हें इसका दुख नहीं है। उन्हें तो बस यही दर्द साल रहा है कि अपनी आंखों के सामने उन्होंने ननद को तड़प-तड़प कर मरते देखा, लेकिन कुछ कर नहीं पार्इं। यह पीड़ा उन्हें उम्रभर रहेगी।

दोस्त के चीथड़े उड़ गए

नारायणपुर जिले के फरसगांव में रहने वाले विजयलाल गावड़े 52 वर्ष के हैं। वे खेती और पशुपालन करते हैं। मुसूर उनके पड़ोसी थे और वे भी विजयलाल गावड़े की तरह खेती और पशुपालन करते थे। लेकिन नक्सलियों ने विजयलाल से उनका दोस्त और रिश्तेदार जैसा पड़ोसी हमेशा के लिए छीन लिया।

7 दिसंबर, 2008 की बात है। दोनों सुबह-सुबह अपने मवेशियों को चराने के लिए गांव मैदान की ओर गए थे। दोपहर को वे गांव लौट रहे थे। मुसूर गायों के पीछे-पीछे पगडंडी पर चल रहे थे। वहां नक्सलियों ने पगडंडी पर बारूदी सुरंग बिछा रखी थी। मुसूर को पता नहीं चला और चलते-चलते उनका पैर बारूदी सुरंग पर पड़ गया। फिर एक जोरदार धमाका हुआ और मुसूर के चीथड़े उड़ गए।

विजयलाल उनसे थोड़ी ही दूर खड़े थे। वे भी इसकी चपेट में आ गए। उनकी कमर पर जोरदार धक्का लगा। दोपहर लगभग एक बजे जब यह हादसा हुआ, उस समय विजयलाल गांव से बमुश्किल आधा किलोमीटर दूर थे। आज स्थिति यह है कि वे भारी काम नहीं कर सकते हैं।

इस घटना ने उन्हें मानसिक रूप से झकझोर कर रख दिया। अपने सामने अपने मित्र और पड़ोसी के शरीर के चीथड़े उड़ते देखकर वे बदहवास हो गए थे। स्वयं और मुसूर के साथ हुई हिंसा के लिए विजयलाल न्याय मांगने दिल्ली पहुंचे।

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