नई दिल्ली । यह तारीख भारतीय इतिहास में एक मील का पत्थर साबित हुई जब तत्कालीन विदेश मंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने संयुक्त राष्ट्र महासभा के मंच से हिंदी में अपना पहला संबोधन दिया। यह वह समय था जब दुनिया शीत युद्ध की जटिलताओं में उलझी हुई थी, लेकिन भारत गुटनिरपेक्षता की नीति का प्रबल समर्थक बनकर उभर रहा था। संयुक्त राष्ट्र महासभा के 32वें सत्र में अटल जी ने न केवल भारत का पक्ष सशक्त रूप से रखा, बल्कि एक नया इतिहास भी रच दिया। यह पहली बार था जब किसी नेता ने यूएन के मंच पर हिंदी में भाषण दिया था।
अटल जी के इस ऐतिहासिक भाषण की शुरुआत में उन्होंने दुनिया को “वसुधैव कुटुम्बकम” की भारतीय अवधारणा से परिचित कराया, जो यह मान्यता देती है कि पूरा संसार एक परिवार है। उन्होंने परमाणु निरस्त्रीकरण जैसे गंभीर वैश्विक मुद्दे पर भारत का रुख स्पष्ट किया और कहा, “भारत में सदा से हमारा विश्वास रहा है कि सारा संसार एक परिवार है।” उनके इस वक्तव्य ने भारत की परंपरा और शांति की इच्छा को वैश्विक मंच पर मजबूती से स्थापित किया। उन्होंने यह भी दोहराया कि भारत सभी देशों से मैत्रीपूर्ण संबंध चाहता है और किसी भी देश पर प्रभुत्व स्थापित करने की इच्छा नहीं रखता।
अटल जी के करीब 43 मिनट के इस प्रभावशाली भाषण के बाद यूएन में उपस्थित सभी प्रतिनिधियों ने खड़े होकर ताली बजाकर उनका स्वागत किया। इस भाषण ने न केवल हिंदी को वैश्विक मंच पर स्थापित किया, बल्कि भारत की विदेश नीति और गुटनिरपेक्षता के सिद्धांत को भी मजबूती प्रदान की।
अटल जी के भाषण की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि
1977 का दौर वैश्विक राजनीति में उथल-पुथल का समय था। शीत युद्ध अपने चरम पर था, और दुनिया दो मुख्य गुटों में बंटी हुई थी—एक तरफ अमेरिका और दूसरी तरफ सोवियत संघ। भारत ने गुटनिरपेक्षता की नीति को अपनाते हुए किसी भी गुट में शामिल होने से इंकार किया और सभी देशों के साथ मैत्रीपूर्ण संबंध स्थापित करने का प्रयास किया। अटल जी के इस भाषण ने इस नीति को अंतरराष्ट्रीय मंच पर मजबूती से प्रस्तुत किया।
संयुक्त राष्ट्र में हिंदी का पहला कदम
अटल जी का यह भाषण इसलिए भी खास था क्योंकि यह पहली बार था जब संयुक्त राष्ट्र में हिंदी भाषा में कोई संबोधन हुआ। उस समय संयुक्त राष्ट्र की आधिकारिक भाषाएं अंग्रेजी, फ्रेंच, स्पेनिश, चीनी, रूसी और अरबी थीं। लेकिन अटल जी ने हिंदी में भाषण देकर न केवल अपनी भाषा के प्रति सम्मान दिखाया, बल्कि इसे वैश्विक मान्यता दिलाने की दिशा में एक बड़ा कदम उठाया।
अटल जी की विदेश नीति की दृष्टि
अटल जी का भाषण उस समय की भारत की विदेश नीति की एक झलक था, जिसमें गुटनिरपेक्षता, शांति, और सभी देशों के साथ समानता के सिद्धांत को महत्व दिया गया था। उनका यह भाषण संयुक्त राष्ट्र में भारत के बढ़ते प्रभाव और उसकी स्वतंत्र विदेश नीति को दर्शाता है।
भाषण के बाद की प्रतिक्रियाएं
अटल जी के इस भाषण के बाद, यूएन में उपस्थित विभिन्न देशों के प्रतिनिधियों ने इसे बेहद सराहा। भाषण के अंत में खड़े होकर तालियों से उनका स्वागत किया गया। यह न केवल भारत की एक महत्वपूर्ण कूटनीतिक जीत थी, बल्कि इससे यह भी स्पष्ट हुआ कि हिंदी भाषा अब वैश्विक मंच पर भी अपनी जगह बना रही है।
हिंदी का वैश्विक प्रभाव
अटल जी के इस भाषण के बाद से हिंदी को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर एक नई पहचान मिली। यह भाषण न केवल भारतीयों के लिए गर्व का विषय बना, बल्कि हिंदी भाषियों के लिए भी एक प्रेरणा बना, जिससे उन्हें गर्व महसूस हुआ कि उनकी भाषा अब वैश्विक मंच पर भी मान्यता प्राप्त कर रही है।
4 अक्टूबर 1977 को अटल जी द्वारा दिया गया यह ऐतिहासिक भाषण भारतीय इतिहास में एक स्वर्णिम अध्याय के रूप में अंकित है। यह न केवल भारत की कूटनीतिक स्थिति को सुदृढ़ करता है, बल्कि हिंदी भाषा को भी अंतरराष्ट्रीय पहचान दिलाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। संयुक्त राष्ट्र में वाजपेयी का हिंदी में भाषण आज भी एक प्रेरणास्रोत बना हुआ है।
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