नक्सली खासतौर से चुने हुए जन प्रतिनिधियों को निशाना बनाते हैं। उनकी सूची में सरपंच, उपसरपंच सबसे ऊपर होते हैं। नक्सली नहीं चाहते कि उनके इलाके में किसी तरह की जागरुकता आए या कोई विकास कार्य हो।
उन्हें लगता है कि ग्रामीण जागरुक हो गए तो वे अपने अधिकारों के प्रति सजग हो जाएंगे। यही कारण है कि वे लोकतांत्रिक तरीके से चुने हुए जन प्रतिनिधियों को ही मार डालते हैं।
12 जून, 2006 की आधी रात को इसी तरह नक्सलियों ने नारायणपुर जिले के एड़का गांव के सरपंच की हत्या कर दी थी। हत्या के बाद नक्सली शव के पास एक बैनर और एक पर्चा छोड़ गए थे। साथ ही, वहां आईईडी लगा दिया।
अगले दिन सुबह ग्रामीणों को सरपंच का शव पड़ा मिला। शव के पास पर्चा देख कर गांव के ही लछिंदर, प्रवीण तावरिया और डोंगाराम उसे उठाने के लिए आगे बढ़े। जैसे ही वे बैनर के पास पहुंचे, प्रवीण तावरिया का पैर आईईडी पर पड़ा और तेज धमाके के साथ विस्फोट हो गया।
प्रवीण तावरिया के पैरों और आंखें जख्मी हो गईं। हालांकि इलाज के बाद प्रवीण ठीक तो हो गए, लेकिन अब उन्हें आखों से कम दिखाई देता है। इसके अलावा, पैरों में ताकत नहीं होने के कारण वे ठीक से खड़े भी नहीं हो पाते हैं।
वहीं, लछिंदर की दोनों आंखें और कान बेकार हो गए। उन्हें न दिखता है और न सुनाई देता है। चलने-फिरने में भी परेशानी होती है।
टिप्पणियाँ