सोमली कड़ती 50 वर्ष की हैं। वह बीजापुर जिले के पाटलीगुड़ा गांव की रहने वाली हैं। बस्तर से दिल्ली आने वाले अधिकांश नक्सल पीड़ितों की तरह सोमली भी हिंदी समझ तो लेती हैं, लेकिन बोल नहीं पातीं।
उनके साथ एक बच्ची भी आई थी। वह भी टूटी-फूटी हिंदी ही बोल पाती थी। सोमली कड़ती ने बताया कि दो वर्ष पहले एक आईईडी विस्फोट में उनका एक पैर हमेशा के लिए शरीर से अलग हो गया।
उन्होंने बताया कि उनके यहां उनकी देवरानी की एक रिश्तेदार लच्छी आई थी। उसे 19 जुलाई, 2022 को वापस अपने घर जाना था।
सोमली उसे बस स्टॉप तक छोड़ने के लिए गई थीं। बस को आने में अभी देर थी, इसलिए दोनों वहीं सड़क के किनारे सागौन की छांह में खड़ी हो गर्इं। वहां नक्सलियों ने प्रेशर बम दबा रखा था।
बातचीत के दौरान सोमली का पैर प्रेशर बम पर चला गया। अचानक तेज धमाका हुआ। सामने वह खून से लथपथ पड़ी हुई थीं। लच्छी बाल-बाल बच गई। उसे खरोंच तक नहीं आई।
लच्छी बहदहवास सी सोमली को कुछ देर तक देखती रही। विस्फोट में सोमली का बायां पैर उड़ गया था। कुछ देर बाद जब लच्छी सामान्य हुई तो उसने सोमली के घर वालों को सूचना दी।
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