बिहार के बोधगया स्थित बागेश्वर धाम के आचार्य पंडित धीरेंद्र कृष्ण शास्त्री ने अपने भक्तों को संबोधित करते हुए हिंदू समाज की वर्तमान स्थिति पर तीखी टिप्पणी की और लोगों से एकजुट होने का आह्वान किया। बाबा बागेश्वर अपने 200 अनुयायियों के लिए पिंडदान करने गया गए थे। उन्होंने समाज में व्याप्त दोहरे मापदंड और धर्म के प्रति उदासीनता पर गंभीर सवाल खड़े किए।
धर्म और संस्कृति के प्रति उदासीनता पर सवाल
बाबा बागेश्वर ने हिंदुओं से अपने धर्म और रीति-रिवाजों के प्रति गंभीर रहने की अपील की। उन्होंने कहा कि आज का सनातनी समाज अपने ही धर्म और रीति-रिवाजों का मजाक उड़ाने में पीछे नहीं रहता, जबकि अन्य धर्मों में ऐसा नहीं होता। “मुसलमान कभी अपने मौलवियों का अपमान नहीं करते, लेकिन हिंदू अपने संतों और तीर्थस्थलों को लेकर मजाक बनाते हैं।
उन्होंने इस बात पर अफसोस जताया कि हिंदू समाज अपने ही धार्मिक गुरुओं और मंदिरों को ‘पाखंड की दुकान’ कहता है। जबकि उन्होंने यह भी साफ किया कि वह किसी विशेष धर्म के खिलाफ नहीं हैं लेकिन यह जरूरी है कि लोग अपने धर्म को समझें और उसका सम्मान करें।
हवस का मौलवी क्यों नहीं हो सकता?
बाबा बागेश्वर ने आगे कहा कि लोगों के मन में गलत धारणाएँ भरी जा रही हैं, जिसके परिणामस्वरूप आजकल लोग श्राद्ध जैसे पवित्र कर्मकांड को भी मजाक समझने लगे हैं। उन्होंने यह भी कहा कि हमारे विचारों को विकृत करने के लिए सुनियोजित तरीके से गलत शब्द और विचार हमारे मस्तिष्क में डाले जा रहे हैं, और यही कारण है कि आज लोग श्राद्ध जैसे महत्वपूर्ण संस्कार का भी सम्मान नहीं करते और उसे हंसी का पात्र बना लेते हैं। लेकिन लोग यह भूल जाते हैं कि यह हमारे पूर्वजों के संस्कारों का हिस्सा है।
धर्म के प्रति जिम्मेदारी और जागरूकता की जरूरत
बाबा बागेश्वर ने अपने भाषण के माध्यम से समाज को चेताया कि धर्म और संस्कार केवल अनुष्ठान नहीं हैं, बल्कि यह हमारी पहचान का हिस्सा हैं। उन्होंने कहा, हम अपने धर्म के संस्कारों और परंपराओं को मानते हैं, और इन्हें संरक्षित रखना हमारी जिम्मेदारी है। उन्होंने इस बात पर भी जोर दिया कि हिंदू समाज को जातिवाद और आंतरिक मतभेदों से ऊपर उठकर एकजुट होने की जरूरत है।
बाबा बागेश्वर ने यह भी कहा कि वो जातिवाद के पक्ष में नहीं हैं, लेकिन अपने पूर्वजों के संस्कारों का पालन करने पर जोर देते हैं। हम हिंदुत्व के समर्थक हैं, लेकिन हमारे पूर्वजों के जो संस्कार हैं, उन्हें हम मानेंगे।
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