ओडिशा

ओडिशा : जनजातीय बहुल इलाके में 100 एकड़ जंगल की जमीन में बन गया इस्लाम नगर

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डॉ. समन्वय नंद

भुवनेश्वर। ओडिशा में बीजद सरकार के शासन के दौरान जनजातीय बहुल मालकानगिरि जिले में एक बड़ा मामला सामने आया है। जिले के मोटु इलाके में लगभग सौ एकड़ जंगल जमीन को हड़पा गया। इस पर इस्लाम नगर बसा दिया गया । जंगल की जमीन को हड़पे जाने की इस प्रक्रिया में प्रशासन के सहयोग की बात सामने आ रही है।

प्राप्त जानकारी के राष्ट्रीय राजमार्ग 326 से मात्र 2-3 किमी की दूरी पर स्थित इस जंगल जमीन को हड़प कर इस्लाम नगर बनाया गया है। साबेरी नदी के तट पर घने जंगलों के बीच यह स्थित है। जंगल व उसके बाद मिट्टी का रास्ता और उसके बाद तारों से घेर कर इसे बनाया गया है ।

इतने विशाल जंगल की जमीन पर गैरकानूनी तरीके से भवनों का निर्माण किया गया है। उस इलाके में जाने के लिए सरकारी पैसे से व सरकारी योजना से सड़क भी बनाए जाने की बात सामने आयी है। मनरेगा योजना से इस सड़क का निर्माण किया गया है। इस संबंध में वहां बोर्ड भी लगाया गया है। बोर्ड से स्पष्ट हो रहा है कि इस गैरकानूनी तरीके से कब्जे किये जाने वाले इस सड़क निर्माण के लिए सरकार के 9 लाख से अधिक रुपये की राशि खर्च की गई है । 25 अप्रैल 2022 को इस सडक का निर्माण का कार्य शुरू किया गया था।

मालकानगिरि में जंगल की जमीन पर किया गया कब्जा

जंगल जमीन को हड़प कर भवन निर्माण व सड़क के साथ-साथ यहां राज्य सरकार के मत्स्य व कृषि विभाग की विभिन्न योजनाओं के माध्यम से व सरकारी राशि के सहायता से वहां बड़े तालाबों का भी खनन किया गया है। इस्लाम नगर के नाम दिये गये इस इलाकों में बड़े भवनों के साथ साथ गोदाम घर भी बनाया गया है। बिजली विभाग द्वारा इस इलाके में बड़े-बड़े ट्रान्सफार्मर भी लगाये गये हैं। इलाके में जेसीबी मशीन व ट्रैक्टर भी खड़े नजर आ रहे हैं। विभिन्न सरकारी योजनाओं से पैसे लेकर यहां निर्माण कार्य किया गया है। इस कारण प्रशासन के मिलीभगत से ही यह पूरा षड़यंत्र रचे जाने की बात सामने आ रही है ।

विश्व हिन्दू परिषद के स्थानीय कार्यकर्ता दिवाकर पाल, युवा भाजपा नेता माणिक चक्रवर्ती तथा हिन्दू जागरण मंच के स्थानीय कार्यकर्ता भागिरथी दलेई ने आरोप लगाया कि बीजू जनता दल के शासन के दौरान यह कार्य हुआ। सरकार व प्रशासन की जानकारी में व उनके प्रत्यक्ष समर्थन व सहयोग से गैर कानूनी तरीके से जंगल जमीन को ह़डप कर इसलाम नगर बसाया गया है।

इस भूमि पर अवैध कब्जे को लेकर सरकारी अधिकारियों की बातों में किसी प्रकार की समानता नहीं है। स्थानीय तहसीलदार इसे संरक्षित जंगल बता रहे हैं, जबकि स्थानीय वन विभाग के रेंजर इसे राजस्व जंगल बता रहे हैं । गैर कानूनी कब्जे को हटाने की जिम्मेदारी एक-दूसरे पर डाल रहे हैं। स्थानीय लोगों ने इसके खिलाफ कार्रवाई की मांग की है।

 

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