विश्लेषण

वर्ल्ड ट्रांसलेशन डे: जरूरत है विलियम टंडेल को याद करने की, जिन्हें बाइबिल के ट्रांसलेशन पर मार कर जला दिया

Published by
सोनाली मिश्रा

आज वर्ल्ड ट्रांसलेशन डे पूरे विश्व में भाषाविदों के बीच मनाया जा रहा है। हिन्दी में इसे अनुवाद दिवस कहते हैं, परंतु जब हम अनुवाद की बात करते हैं तो पाते हैं कि वह ट्रांसलेशन से एकदम भिन्न है। जहां ट्रांसलेशन का अर्थ होता है एक भाषा की सामग्री को दूसरी भाषा में लाना तो अनुवाद का अर्थ अत्यंत व्यापक है। अनुवाद शब्द मूलत: अनु+वाद से बना हुआ है।  अनु अर्थात पीछे की ओर और वाद का अर्थ है कथन। किसी भी पूर्वकथन का अनुसरण करके कहे या लिखे गए कथन को ही अनुवाद कहते हैं। संस्कृत के कुछ कोशों में इसका अर्थ ‘प्राप्तस्य पुन: कथनम’ या ज्ञातार्थस्य प्रतिपादनम्’ मिलता है।

प्राचीन ग्रंथों की अगर और बात करें तो पाएंगे कि पाणिनि ने अपने अष्टाध्यायी में एक सूत्र दिया है “अनुवादे चरणानाम”। कई टीकाकारों ने इसका अर्थ “सिद्ध बात का प्रतिपादन” या कही हुई बात का कथन बताया है” इसी प्रकार भ्रतर्हरी ने अनुवाद शब्द का प्रयोग दुहराने या पुन:कथन के रथ में दिया है– अनुवृत्तिरनुवादो वा”।  जैमिनीय न्यायमाला में भी अनुवाद का “ज्ञात का पुन:कथन” के अर्थ में हैं।

इसे भी पढ़ें: हॉलीवुड अभिनेत्री ने कहा-अफगानिस्तान में महिलाएं आजाद नहीं, तालिबान बोला- ‘शरिया के अनुसार पूरी आजादी!’

परंतु जब हम अनुवाद को ट्रांसलेशन का पर्याय बनाते हैं तो इस पूरी परिभाषा एवं भारत की उन्नत परंपरा को सीमित कर देते हैं। इसी के साथ जब ट्रांसलेशन की परिभाषा पर दृष्टि डालते हैं तो यह पाते हैं कि पाते हैं कि यह मूलत: स्रोत भाषा से लक्ष्य भाषा में लाने की प्रक्रिया है। जैसा कैटफोर्ड ने भी लिखा है कि “the replacement of textual material in one language (SL) by equivalent textual material in another language” इसलिए ट्रांसलेशन को अनुवाद कहना, अनुवाद की भारतीय परंपरा के साथ अन्याय है क्योंकि भारत में कभी भी अनुवाद को लेकर किसी भी प्रकार की हिंसा या असहिष्णुता नहीं हुई। क्योंकि कथा को बार-बार इस प्रकार से कहा गया कि कथा एक होते हुए भी वह रचना नई लगी।

परंतु क्या कथा को बार-बार कहना और वह भी दूसरी भाषा में इस प्रकार से भिन्न कहना कि वह एक नई रचना हो जाए ट्रांसलेशन में संभव है? ट्रांसलेशन का हिन्दी पर्याय “भाषांतरण” हो सकता है, अनुवाद नहीं। अनुवाद का अर्थ अत्यंत व्यापक है।

ट्रांसलेशन दिवस का इतिहास

ट्रांसलेशन दिवस बाइबिल का ग्रीक से लैटिन में ट्रांस्लेट करने वाले पादरी सैन्ट जेरोम की याद में मनाया जाता है। उन्हें बाइबिल ट्रांसलेशन का फादर माना जाता है। ऐसा कहा जाता है कि जेरोम ने न्यू टेस्टामेन्ट की ग्रीक पांडुलिपियों से बाइबिल के अधिकांश भाग का लैटिन में भाषांतरण किया था। उनकी मृत्यु 30 सितंबर 420 में हुई थी, तो सैन्ट जेरोम की याद में यह दिन मनाया जाता है।

यह भी कहा जाता है कि बाइबिल का ट्रांसलेशन हर भाषा में हुआ है, यह सच है कि बाइबिल का ट्रांसलेशन हर भाषा में हुआ है, परंतु यह ट्रांसलेशन किन्होंने और किस उद्देश्य के लिए किया है यह भी महत्वपूर्ण है। यह ट्रांसलेशन संभवतया धर्मांतरण के लिए ही किया गया होगा, तभी ट्रांसलेशन में तारतम्यता रही, एकरसता रही।

कौन था बाइबिल का ट्रांसलेटर जिसे जला कर मारडाला गया था?

बाइबिल के असंख्य भाषाओं में भाषांतरण प्राप्त होते हैं। मगर बाइबिल का एक ऐसा अभागा ट्रांसलेटर भी है, जिसे आज के दिन याद किया जाना चाहिए। क्योंकि वह उस अन्याय की अनकही कहानी बताता है, जो उसके साथ उन्होंने किया जो आज तक अभिव्यक्ति की आजादी के सबसे बड़े पैरोकार बने बैठे हैं।

वह था विलियम टिंडेल! विलियम टिंडेल का जन्म 1490 में इंग्लैंड में हुआ था। वह ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी में पढ़ाई हासिल कर कैम्ब्रिज यूनिवर्सिटी में इन्स्ट्रक्टर बन गया था। विलियम टिंडेल की भेंट वहाँ पर कुछ ऐसे हयूमेनिस्ट शिक्षाविदों से हुई, जिनके साथ चर्चा के बाद उसे लगा कि बाइबिल को ही चर्च की परम्पराएं और धार्मिक निर्देश निर्धारित किए जाने चाहिए। इसके बाद उसे न्यू टेस्टामेन्ट के ट्रांसलेशन की धुन सवार हुई। उसने ग्रीक से सीधे ट्रांस्लेट करना शुरू कर दिया, मगर इंग्लैंड में चर्च के अधिकारियों को यह पसंद नहीं आया और उन्होनें उसे ऐसा करने से रोका। मगर वह नहीं रुका और 1524 में जर्मनी चला गया। वहाँ पर उसे लंदन के अमीर व्यापारियों से पैसा मिलता रहा। 1525 में उसके न्यू टेस्टामेन्ट का ट्रांसलेशन पूरा हुआ और प्रकाशित हुआ।

फिर दबाव के कारण उसे वॉरंस (Worms) भागना पड़ा। जहां पर उसके इस भाषांतरण के दो और संस्करण प्रकाशित हुए। पहली कॉपीस इंग्लैंड में चोरी छुपे वर्ष 1526 में गईं। उसके बाद उसने ओल्ड टेस्टामेन्ट पर काम करना शुरू किया। मगर इस बार चर्च के अधिकारी उससे बहुत नाराज थे और उसका यह भाषांतरण पूरा होने से पहले ही उसे गिरफ्तार कर लिया गया था और फिर उसे कैद किया गया और अंतत: उस पर विधर्मी होने का आरोप लगाते हुए वर्ष 1536 में गला दबाकर मार डाला गया और उसके बाद उसके शव को जला दिया गया।

इसे भी पढ़ें: हसन नसरल्लाह की मौत पर पाकिस्तान में प्रदर्शन, लगे ‘अमेरिका मुर्दाबाद’ के नारे, प्रदर्शनकारियों ने बरसाए पत्थर

जहां 30 सितंबर को ट्रांसलेशन दिवस मनाया जाता है कि सैन्ट जेरोम की मौत इस दिन हुई थी, तो यह भी बहुत रोचक है कि विलियम टिंडेल जिसे बाइबिल के ट्रांसलेशन के कारण मौत की सजा सुनाई गई, उसकी भी मौत इन्हीं दिनों हुई होगी, क्योंकि आधिकारिक तारीख हालांकि, 6 अक्टूबर बताई जाती है, परंतु ऐसा माना जाता है कि उसकी मौत इससे कुछ दिन पहले अर्थात अक्टूबर के शुरुआती दिनों के आसपास कर दी गई थी। ऐसा नहीं है कि विलियम टिंडेल को ही यह सजा मिली थी। उसके साथी थॉमस बिलनी की भी हत्या विधर्मी होने के आरोप में कर दी गई थी और उन्हें जलाकर मारा गया था। उसने टिंडेल की बाइबिल की प्रतियां वितरित की थीं और गॉस्पल को चर्च के अनुसार न बताकर बाइबिल के अनुसार बताया था।

बिलनी को जलाकर इसीलिए मार डाला गया था क्योंकि उसने टिंडेल की ट्रांस्लेट की गई बाइबिल बांटी थी, जिसे चर्च ने मान्यता नहीं दी थी। उसे 19 अगस्त 1531 को जलाकर मार डाला गया था। यह दुर्भाग्य है कि ट्रांसलेशन जैसी कला को भी बाइबिल ट्रांसलेशन के साथ ही जोड़ दिया गया है, जबकि यह परंपरा तो लगभग हर पंथ में, हर धर्म में अनवरत चलती आ रही थी और अभी तक आ रही है और बाइबिल के एक ट्रांसलेटर, जिसने मूल को समझकर और संभवतया बाइबिल के सच्चे संदेशों को ट्रांस्लेट करना चाहा तो उसे ही नहीं मारा गया बल्कि जिन्होंने उसकी प्रतियां वितरित कीं, उसे भी जलाकर मार डाला गया। जब सैन्ट जेरोम की बात होती है तो विलियम टिंडेल की बात क्यों नहीं?

Share
Leave a Comment