भारत

नक्सलियों के झूठ

Published by
Sudhir Kumar Pandey

अर्बन नक्सली और मीडिया का एक धड़ा नक्सलियों को लेकर लगातार झूठ परोसता रहा है। ये देश-विदेश में यही प्रचारित करते रहे कि माओवादी जनजातीय समाज और वंचितों के हित में जल, जंगल और जमीन की लड़ाई लड़ रहे हैं। लेकिन सच इस दावे से कोसों दूर है। आत्मसमर्पण करने वाले नक्सलियों ने भी इनकी कलई खोल दी है। ये अपने इलाके में कोई भी विकास कार्य नहीं होने देते, ताकि इनके साम्राज्य को चुनौती नहीं दी जा सके। स्थानीय लोग विकास चाहते हैं, लेकिन नक्सली स्कूलों, अस्पतालों को विस्फोट कर उड़ा देते हैं। सड़क नहीं बनने देते और आंगनवाड़ी का विरोध करते हैं। वे लेवी वसूलते हैं और ग्रामीणों को अपने कैडर को पुलिस और सुरक्षाबलों से छिपाने के लिए डराते-धमकाते हैं।

झूठ -1 : माओवादी वनवासियों और वंचितों के अधिकारों के लिए लड़ रहे हैं।

सच : माओवादी जनताजीय समुदाय का शोषण कर रहे हैं। वे ग्रामीणों से रसद वसूलते हैं और नक्सलियों को छिपाने के लिए दबाव डालते हैं। विरोध करने वाले की हत्या कर देते हैं।

झूठ-2 : नक्सली क्रांतिकारी हैं और अपने कैडर में महिलाओं को पुरुषों के बराबर अधिकार देते हैं।

सच : जनजातीय महिलाओं का सबसे अधिक यौन शोषण माओवादी ही करते हैं। ये अपने संगठन और कथित सेना में शामिल महिलाओं को भी नहीं छोड़ते।

झूठ-3 : माओवादी वनवासियों के वनाधिकार की लड़ाई लड़ रहे हैं।

सच : वनवासियों को वनाधिकार प्रदान करने के लिए केंद्र सरकार ड्रोन सर्वेक्षण के जरिये जमीन की डिजिटल मैपिंग कर रही है, तो अपना गढ़ बचाने के लिए माओवादी उसके विरुद्ध प्रोपेगेंडा चला रहे हैं।

झूठ-4 : माओवादी जल, जंगल, जमीन की रक्षा के लिए व्यवस्था से लड़ रहे हैं।

सच : ये विकास में बाधक हैं। यहां तक कि लोगों को शिक्षा और स्वास्थ्य सुविधाओं से भी वंचित रखना चाहते हैं। इसलिए स्कूलों, अस्पतालों को भी निशाना बनाते हैं।

झूठ-5 : माओवादी मानवता, जनजातीय संस्कृति के रक्षक हैं और वनवासियों की स्वतंत्रता के लिए लड़ रहे हैं।

सच : वे ग्रामीणों और जनप्रतिनिधियों की बेरहमी से हत्या करते हैं और समानांतर सरकार चलाते हैं। वनवासी समुदाय के विवादों का निपटारा पहले गायता और पुजारी सुलझाते थे, पर अब उनके मसले जनताना अदालत में संघम सदस्य करते हैं।

झूठ-6 : माओवादी अपने काम में शुचिता और पारदर्शिता रखते हैं और जनता की सहूलियत का ध्यान रखते हैं।

सच : अपने मंसूबों को पूरा करने के लिए नक्सली कल-कारखानों के मालिकों, स्थानीय व्यवसायियों, ठेकेदारों और ग्रामीणों से भी पैसे वसूलते हैं, जिसे रिवॉल्यूशनरी टैक्स कहा जाता है।

झूठ-7 : नक्सलवाद कोई उग्रवाद या अतिवाद नहीं, बल्कि शोषित किसानों और वंचित वनवासियों के आक्रोश से उपजा स्वत:स्फूर्त आंदोलन है।

सच : माओवादी स्थानीय लोगों को डरा-धमका कर जबरन अपने संगठन में शामिल करते हैं और विरोध करने पर हत्या कर देते हैं। वे सुनियोजित तरीके से जनजातीय समाज का इस्तेमाल ढाल के रूप में करते हैं।

झूठ-8 : माओवादी न्याय और स्वतंत्र न्यापालिका की बात करते हैं।

सच : ये न तो संविधान और न ही देश की किसी संवैधानिक व्यवस्था में विश्वास करते हैं। ये अपनी जनताना अदालतें लगाकर निर्दोष लोगों की निर्मम हत्या करते हैं।

झूठ-9 : स्थानीय जनजातीय समाज माओवादियों का समर्थन करता है। माओवादी सरकारों द्वारा उपलब्ध कराई जा रही शिक्षा, स्वास्थ्य आदि बुनियादी सुविधाओं का विरोध नहीं करते।

सच : अपने प्रभाव वाले इलाकों में नक्सली लोगों को शिक्षा, स्वास्थ्य जैसी बुनियादी सुविधाओं और विकास को बाधित करते हैं, क्योंकि इससे जनजातीय समुदाय के इनके विरुद्ध खड़े होने की संभावना बढ़ जाती है।

झूठ-10 : अर्बन नक्सली यह प्रचारित करते रहे हैं कि ग्रामीण क्षेत्रों में रोष की प्रतिक्रिया के रूप में माओवाद का जन्म हुआ, जो एक गैर-राजनीतिक आंदोलन है।

सच : नक्सलवाद एक विध्वंसक विदेशी राजनीतिक विचार की उपज है, जिसका एकमात्र उद्देश्य भारत में संवैधानिक सरकार की जगह निरंकुश सत्ता की स्थापना करना है। माओवाद का असली स्वरूप शहरी ही है, ग्रामीण और वन क्षेत्र तो उनकी गुरिल्ला रणनीति के साधन मात्र हैं।

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