गत 20-22 सितंबर तक समालखा (हरियाणा) में अखिल भारतीय वनवासी कल्याण आश्रम का कार्यकर्ता सम्मेलन आयोजित हुआ। इसका उद्घाटन प्रसिद्ध भागवत कथावाचक पूज्य रमेशभाई ओझा के करकमलों से हुआ। उन्होंने अपने आशीर्वचन में कहा कि हमारा कार्य उपकार नहीं, साधना है। परमात्मा ने हम सभी को एक साथ जीने के लिए जीवन दिया है। भागवत में तीन संदेश हैं-मनुष्य को मनुष्य के साथ कैसा व्यवहार करें, समग्र सृष्टि और जीव-जंतुओं से कैसा व्यवहार करें और प्रकृति के साथ कैसा व्यवहार करें।
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सह सरकार्यवाह श्री रामदत्त ने इस अवसर पर कहा कि तीन वर्ष के पश्चात् वनवासी कल्याण आश्रम के 75 वर्ष पूर्ण होने जा रहे हैं। सभी कार्यकर्ता यहां से यह संकल्प लेकर जाएं कि जिन जनजातियों में हमारा काम नहीं है, वैसी जनजातियों के बीच भी हम कार्य का विस्तार करें। सम्मेलन में 12 सत्रों में देश के विभिन्न भागों में वनवासी कल्याण आश्रम की गतिविधियों और कार्यक्रमों सहित विभिन्न मुद्दों पर चर्चा हुई।
उल्लेखनीय है कि वनवासी कल्याण आश्रम विभिन्न प्रांतों में अपनी संबद्ध इकाइयों के माध्यम से जनजाति समाज के सर्वांगीण विकास हेतु शिक्षा, स्वास्थ्य, ग्राम विकास, स्वावलंबन इत्यादि के 22,152 प्रकल्पों का देश के 17,394 स्थानों पर संचालन कर रहा है। इस दिन शाम को देश की 80 विभिन्न जनजातियों के प्रतिनिधियों ने अपने रीति-रिवाजों और परंपरा के अनुसार अपनी पूजा-पद्धति का प्रदर्शन कर एकता का संदेश दिया।
22 सितंबर के प्रथम सत्र में वनवासी कल्याण आश्रम के राष्ट्रीय अध्यक्ष सत्येंद्र सिंह ने कहा कि जनजाति समाज विशाल सनातनी समाज का आधार स्तंभ है। हम सभी की जड़-नाल वनों से जुड़ी हुई है। जनजाति समाज के पर्व-त्योहार एवं पूजा-पद्धति सनातनी परंपरा से मिलते हैं जिसका भाव एक ही है।
जनजाति सुरक्षा मंच के राष्ट्रीय सह संयोजक डॉ. राजकिशोर हांसदा ने कहा कि झारखंड में बांग्लादेशी मुस्लिम घुसपैठिए जनजाति लड़कियों को झांसे में लेकर निकाह करते हैं और जनसंख्या बढ़ाने के साथ ही जमीन भी हड़प रहे हैं। नागालैंड के डॉ. थुंबई जेलियांग ने कहा कि पूर्वोत्तर भारत के राज्यों में कन्वर्टिड लोग वहां के स्थानीय लोगों को ही बाहरी साबित करने में लगे हुए हैं। छत्तीसगढ़ के संगठन मंत्री रामनाथ ने बस्तर की माओवाद समस्या पर कहा कि जिस जनजाति का अस्तित्व जंगल से है, उस जंगल में माओवादियों द्वारा बारूदी सुरंगें बिछाई जा रही हैं, जहां वे स्वतंत्र रूप से नहीं जा सकते। वहां के लोगों को सरकारी सुविधाओं से भी वंचित रहना पड़ता है।
समापन समारोह में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक श्री मोहनराव भागवत ने जनजाति समाज की पारंपरिक पूजा-पद्धतियों का अवलोकन किया। श्री भागवत ने इस अवसर पर कहा कि हमारा जनजातिय समाज विविधताओं से भरा हुआ है। सबके खान-पान, रीति-रिवाज, पूजा-पद्धति का दर्शन करने से हमें यह स्मरण होता है कि हम भारत के लोग अपनी सारी विविधताओं को साथ लेकर, सबकी विविधताओं को स्वीकार करते हुए मिल-जुलकर चलते हैं, क्योंकि विविधता हमें सबकी मूल एकता की ओर ले जाती है।
उन्होंने कहा कि पर्यावरण, निसर्ग के प्रति, प्रकृति के प्रति मित्र भाव, प्रेम भाव, भूमि के प्रति अत्यंत भक्ति, प्रत्येक कण में पवित्रता और चैतन्य देखना, इसीलिए तो पूजा के इतने सारे प्रकार होते हैं। वेदों में भी हम यह देखते हैं कि नदियों की, पहाड़ों की, वायु की, अग्नि की स्तुति करने वाली ऋचाएं हैं। अपने आसपास की जो प्रकृति है, उसमें भी वही चैतन्य है, वही पवित्रता है। इस अवसर पर बड़ी संख्या में अनेक संगठनों के वरिष्ठ कार्यकर्ता उपस्थित रहे।
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