उत्तर प्रदेश

कन्वर्जन कारोबारी, उम्रकैद के अधिकारी

हिंदू से मुसलमान बने मोहम्मद उमर गौतम ने 1,000 से अधिक हिंदुओं को बनाया मुसलमान। उत्तर प्रदेश की एटीएस अदालत ने इस मामले में उसे और उसके ११ साथियों को दी आजीवन कारावास की सजा

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सुनील राय

गत 11 सितंबर को उत्तर प्रदेश के आतंकवाद निरोधक दस्ते (ए.टी.एस.) की विशेष अदालत के न्यायाधीश विवेकानंद शरण त्रिपाठी ने हिंदुओं को मुसलमान बनाने के एक मामले में 16 दोषियों को सजा सुनाई। इनमें से 12 को आजीवन कारावास और 10,000 रू. आर्थिक दंड की सजा हुई है। ये 12 हैं- मोहम्मद उमर गौतम, मौलाना कलीम सिद्दीकी, इरफान शेख, सलाउद्दीन जैनुद्दीन शेख, प्रकाश रामेश्वर कावड़े उर्फ आदम, भुप्रिय बंदो उर्फ अरसलान मुस्तफा, कौशर आलम, फराज वाबुल्लाशाह, धीरज गोविंद राव जगताप, सरफराज अली जाफरी, काजी जहांगीर और अब्दुल्ला उमर। अन्य चार दोषियों-मोहम्मद सलीम, राहुल भोला उर्फ राहुल अहमद, मन्नू यादव उर्फ अब्दुल मन्नान और कुणाल अशोक चौधरी को ‘उत्तर प्रदेश विधि विरुद्ध पंथ संपरिवर्तन (प्रतिषेध) अधिनियम’ की धारा-पांच के अंतर्गत दस-दस वर्ष की कैद और पचास-पचास हजार रु. अर्थ दंड की सजा मिली।

उल्लेखनीय है कि जून, 2021 में कन्वर्जन कराने वाले इस गिरोह का पता लगने के बाद एटीएस के उप निरीक्षक विनोद कुमार ने लखनऊ के थाना गोमती नगर में एफआईआर दर्ज कराई थी। इसमें कहा गया था कि देश-विरोधी एवं असामाजिक तत्व विदेशी संस्थाओं से आर्थिक मदद ले रहे हैं और उनके इशारे पर कन्वर्जन कराकर देश की जनसांख्यिकी को तेजी से बदलने का प्रयास कर रहे हैं। यह भी कहा गया था कि जिन लोगों को मुसलमान बनाया जाता है, उनके मन में हिंदुओं के प्रति नफरत का भाव पैदा किया जा रहा है। इन लोगों का गिरोह देश की संप्रभुता और एकता के लिए खतरा है। ये लोग कन्वर्जन के लिए नौकरी और धन का लालच दे रहे हैं। ये दिव्यांग, मूक-बधिर, बच्चों, महिलाओं एवं वंचित समाज के लोगों को विशेष रूप से निशाना बना रहे हैं। इसके बाद पूरे मामले की जांच की गई। उसी का परिणाम है कि इस गिरोह को सजा हुई है।

पुलिस ने 20 जून, 2021 को उमर गौतम को दिल्ली के जामिया नगर से और गिरोह के अन्य गुर्गों को देश के विभिन्न स्थानों से गिरफ्तार किया था। अभियोजन पक्ष ने न्यायालय में कहा कि उमर गौतम एवं अन्य अभियुक्त एक बड़े षड्यंत्र के अंतर्गत मजहबी उन्माद, वैमनस्य और घृणा फैलाकर देशभर में कन्वर्जन का काम करते थे। इस गिरोह के संपर्क दूसरे देशों से भी हैं। गिरोह के लोग हवाला के जरिए धन के लेन-देन में भी शामिल थे। न्यायालय ने अपने निर्णय में कहा कि अभियुक्तों ने आर्थिक रूप से कमजोर, दिव्यांग एवं वंचित समाज के लोगों को अपने जाल में फंसा कर उन्हें भ्रमित किया और फिर उन लोगों का कन्वर्जन कराया। इसलिए अभियुक्तों के साथ किसी भी प्रकार की नरमी बरतना न्यायोचित नहीं है।

अभी तक के इतिहास में कन्वर्जन का यह सबसे घिनौना कृत्य था। फतेहपुर जनपद का निवासी श्याम प्रताप सिंह 1984 में लगभग बीस वर्ष की आयु में बी.एस.सी. (कृषि) की पढ़ाई करने नैनीताल गया था। वहां उसकी भेंट बिजनौर जिले के नासिर खान से हुई। नासिर ने ही उसे मुसलमान बनाया और उसका नाम हो गया-मोहम्मद उमर गौतम। नैनीताल से लौटकर वह अपने गांव आया और अपनी पत्नी राजेश्वरी को भी मुसलमान बनाकर उसका नाम रजिया कर दिया था। उमर गौतम के बड़े भाई उदय प्रताप सिंह के अनुसार, ‘‘श्याम प्रताप सिंह के मुसलमान बनने के बाद वह परिवार के संपर्क में नहीं है। उससे हम लोगों का कोई वास्ता नहीं है।’’

मोहम्मद उमर ने मुसलमान बनने के बाद हिंदुओं को मुसलमान बनाना अपना फर्ज मान लिया था। ए.टी.एस. ने अपनी जांच में पाया कि उमर गौतम ने 1,000 से अधिक लोगों को मुसलमान बनाया। वह लोगों को भ्रमित करने के लिए खुद को एक बड़े राजनीतिक परिवार का सदस्य बताता था।

इस गिरोह ने नोएडा, सेक्टर- 117 में नोएडा डेफ सोसाइटी के एक केंद्र में प्रशिक्षण लेने आए दिव्यांग बच्चों को भी मुसलमान बनाने से परहेज नहीं किया। मूक-बधिर विद्यालय में प्रशिक्षण लेने वाले छात्र आदित्य कुमार गुप्ता को मुसलमान बनाने के बाद उसे दक्षिण के एक राज्य ले जाया गया। काफी दिनों तक जब कोई खोज-खबर नहीं मिली तब उसके माता-पिता ने कानपुर नगर में लापता की रिपोर्ट दर्ज कराई। ए.टी.एस. ने आदित्य के माता- पिता से पूछताछ की तो पता लगा कि आदित्य से वीडियो कॉल के माध्यम से बात हुई थी। उसके बाद यह जानकारी मिली थी कि कुछ अन्य दिव्यांगों को भी मुसलमान बनाया गया था।

उमर गौतम के कब्जे से ए.टी.एस. को एक सूची प्राप्त हुई थी, जिसमें कुछ लोगों के नाम लिखे हुए थे। उस सूची में ऋचा का नाम बारहवें क्रमांक पर था। ऋचा इलाहाबाद विश्वविद्यालय के राजनीति विज्ञान विभाग के प्रोफेसर शाहिद के संपर्क में थी। उससे प्रभावित होकर ऋचा मुसलमान बनी और उसने अपना नाम माहिम अली कर लिया था। ऋचा कानपुर के घाटमपुर इलाके के बीहूपुर पहवा गांव की रहने वाली है। मुसलमान बनने के बाद उसने अपने परिवार से नाता तोड़ लिया है।

सजा पाने वालों में मौलाना कलीम सिद्दीकी भी शामिल है। उसने अनेक हिंदू युवाओं को मुसलमान बनाया। सितंबर, 2021 में नितिन पंत नामक एक युवक ने आरोप लगाया था कि कलीम ने उस पर मुसलमान बनने के लिए दबाव डाला था। नितिन पंत ने ही बताया था कि मौलाना कलीम ने मुसलमान बनाकर उसका नामकरण अली हसन कर दिया था। कहा जा रहा है कि मुसलमान बनाने के बाद नितिन को पहले राजस्थान के मेवात में रखा गया। वहां से उत्तर प्रदेश के मुजफ्फरनगर मेें फूलत स्थित एक मस्जिद में रखा गया था। वहां पर अवैध हथियार भी बनाए जाते थे।

नितिन ने उस समय कहा था, ‘‘कलीम ने मुझसे कई बार कहा कि तुम उच्च जाति की हिंदू लड़कियों को अपने जाल में फंसाओ। जो लड़कियां संपर्क में आएं उनके अश्लील वीडियो बना लो। युवाओं में नशे की आदत डलवाओ। इन सब कार्यों के लिए पैसे दिए जाएंगे।’’ बाद में ए.टी.एस. ने नितिन से संपर्क कर कई तरह के साक्ष्य प्राप्त किए थे। फूलत (मुजफ्फरनगर) का निवासी मौलाना कलीम सिद्दीकी ग्लोबल पीस सेंटर और जमीयत-ए-वलीउल्लाह ट्रस्ट का भी अध्यक्ष था। इसके द्वारा कई मदरसों को पैसे उपलब्ध कराए जाते थे। कलीम को हवाला के माध्यम से विदेशों से भारी धनराशि मिलती थी।

आखिरकार अब इस गिरोह के गुर्गों को सजा मिली है। इससे ऐसे तत्वों का हौंसला अवश्य कुछ कम होगा, लेकिन जिस तरह से इस गिरोह को कई संगठनों का परोक्ष-अपरोक्ष रूप से समर्थन मिला, वह चिंताजनक है। ऐसे संगठनों के विरुद्ध भी कार्रवाई होनी चाहिए, तभी यह मजहबी खेल बंद होगा।

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