आखिर भारत और अमेरिका के बीच सुरक्षा सेमीकंडक्टर समझौते पर दुनिया की नजरे क्यों टिकी हुई हैं। अमेरिका और भारत की साझेदारी से भारत के पहले सुरक्षा सेमीकंडक्टर विकास और निर्माण संयत्र की स्थापना होगी। जिससे देश को आधुनिक संवेदन, संचार और मिलिट्री के लिए हाई वोल्टेज पावर इलेक्ट्रोनिक्स की क्षमता में बढ़त होगी। यह चिप्स उत्पादन संयंत्र भारत को भविष्य में चीन और पाकिस्तान सहित दक्षिण और दक्षिण पूर्व के विरोधियों से अतिरिक्त सुरक्षा प्रदान करेगा।
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और जो बाइडन के बीच हुआ विलमिंगटन समझौता भारत के प्रतिद्वंद्वियों को एक स्पष्ट संकेत भेजता है।
यदि रविवार को अमेरिका में हुए इस समझौते की प्रारंभिक प्रतिक्रियाओं का विश्लेषण किया जाए तो चीन की कम्युनिस्ट पार्टी और राष्ट्रपति शी जिनपिंग इससे चिंतित दिखाई देते हैं। भारत सेमीकंडक्टर मिशन भारत और अमेरिका अंतरिक्ष बल और जनरल ऑटोमिक्स के भारत सेमी और थर्डआईटेक समझौते को भी सहायता देगा।
कुछ विश्लेषकों ने सेमीकंडक्टर समझौते की तुलना सिविल न्यूक्लियर संधि से की है। जो कि भारत के सुरक्षा तंत्र को एक नये स्तर पर पहुंचा देगा। हालांकि देश के बाहर और अन्दर साम्यवादी इसका विरोध करेंगे और आरोप लगाएंगे, जैसा कि न्यूक्लियर संधि के दौरान मनमोहन सिंह सरकार के साथ हुआ था। जिससे उनकी सरकार लगभग गिरने वाली थी। यह समझौता प्रधानमंत्री मोदी के अमेरिकी दौरे का मुख्य आकर्षण रहा है। जिसका देश के अंदर और बाहर स्थित दुश्मनों के द्वरा विरोध किया जा रहा था।
हर साल सेमीकंडक्टर चिप्स के लिए एक अरब यूएस डॉलर खर्च करना बेतुका था। यह चिप्स अपने तकनीकि कौशल और नवाचार के कारण भारत के लिए आवश्यक है। इस समझौते के अंतर्गत कोलकाता पावर सेंटर में स्थापित वैश्विक फाउंडरीज फैसिलिटी भारत की चिप्स उत्पादन क्षमता को बढ़ाएगी।
इस समझौते के बाद भारत को व्यावसायिक और उत्पादन कार्यों के लिए चीन से सेमीकंडक्टर खरीदने की आवश्यकता नहीं होगी। भारत अंतरर्राष्ट्रीय खिलाड़ियों को नए अवसर देगा, ताकि वे औद्योगिक अनुप्रयोगों के लिए देश के अंदर चिप्स का उत्पादन कर सकें। भारत ने कई अंतरर्राष्ट्रीय कंपनियों के साथ साझेदारी की है। जिसमें यूएस, यूरोप, ताइवान और सिंगापुर हर साल उच्च गुणवत्ता वाले चिप्स का उत्पादन करेंगे।
हर दिन सात करोड़ चिप्स उत्पादन के लिए 1.5 लाख रुपये खर्च किये जाते है। यह चीन की विस्तारवादी नीतियों से हटकर वैकल्पिक आपूर्ति श्रृंखलाएं स्थापित करने के व्यापक लक्ष्य का हिस्सा है। भारत द्वारा वैश्विक रुप से मुख्य पाँच चिप्स निर्माताओं में शामिल होने के लिए चार निर्माण संयंत्रों का निर्माण किया जा रहा है। अन्य दो सेमीकंडक्टर चिप्स संयंत्र काईनेस सेमीकॉन और सीजी पावर के द्वारा साणंद, गुजरात में स्थापित किए जा रहे हैं, जबकि शेष दो संयंत्र टाटा इलेक्ट्रॉनिक्स के द्वारा डाडेरा, गुजरात औऱ मोरेगांव असम में स्थापित किये जा रहे हैं।
2021 में भारत में नए सेमीकंडक्टर तंत्र स्थापित करने की संभावना लगभग शून्य थी। सेमीकंडक्टर के उत्पादन, प्रक्रिया, विकास और एक संपूर्ण तंत्र स्थापित करने के लिए उत्पादन से संबंधित योजनाओं के तहत 76,000 करोड़ रुपये की सहायता निश्चित की गई थी।
साल 2030 तक भारत में सेमीकंडक्टर बाजार के 109 अरब यूएस डॉलर पहुंचने की संभावना है। जोकि वर्तमान में केवल 38 अरब डॉलर का है। सेमीकंडक्टर ना केवल देश की जीडीपी में बढोत्तरी करेंगे बल्कि लाखों हाई स्किल्ड नौकरियों का भी निर्माण करेंगे। भारत की आयात निर्भरता कम होगी। इतना ही नहीं भारत संबंधित कई उद्योग क्षेत्रों को सेमीकंडक्टर चिप्स का निर्यात भी कर सकेगा।
हाल के वर्षों में कई व्यापारिक समझौतों की योजना से भारत में बिजली, औद्योगिक क्षेत्र और लॉजिस्टिक्स से जुड़ी बुनियादी सुविधाओं में सुधार होगा। इसके अलावा, चिप्स विशेषज्ञों की बढ़ती मांग के कारण, नई शिक्षा और कौशल विकास कार्यक्रमों की आवश्यकता होगी।
एक बार सेमीकंडक्टर की सुनिश्चित सप्लाई होने पर ईलेक्ट्रॉनिक्स उत्पादन, दूरसंचार और ऑटोमोबाईल उद्योग का भी विस्तार होगा। भविष्य में होने वाली लड़ाइयों और युद्धों में सेमीकंडक्टर की महत्ता के कारण भारत की भू-राजनीतिक स्थिति का भी प्रभाव बढ़ेगा। सेमीकंडक्टर क्षेत्र में पहले ही कई स्टार्ट-अप प्रगतिशील योजनाओं के साथ उभरकर आ रहे हैं।
भूतकाल की गलतियों को पीछे छोड़ते हुए भारत अब एक बड़ा कदम उठाने वाला है।
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