भारत संयुक्त राष्ट्र की सुरक्षा परिषद में स्थायी सीट का प्रबल दावेदार रहा है। और भारत की ओर से भी एक लंबे समय से इस परिषद के खाके में वक्त के अनुसार बदलाव करके उसे स्थायी सदस्यता देने की मांग की जाती रही है। विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने अपने हर वक्तव्य में भारत की इस नाते प्रबल दावेदारी को तथ्यों के साथ रखा है।
भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने संयुक्त राष्ट्र में समय के साथ बदलाव की बात करके एक बार फिर सुरक्षा परिषद में भारत की स्थायी सदस्यता का मुद्दा चर्चा में ला दिया है। इससे एक दिन पूर्व ही अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन ने मोदी से भेंट के मौके पर अंतरराष्ट्रीय मंच पर भारत का इस नाते समर्थन करने का वादा किया था। कल मोदी ने अपने संबोधन में भारत के वसुधैव कुटुम्बम के दर्शन को प्रतिपादित करते हुए एक विश्व एक परिवार की बात की और मानवता के हित के लिए सबका आगे आकर योगदान करने का आह्वान किया।
इसमें कोई संशय नहीं है कि भारत संयुक्त राष्ट्र की सुरक्षा परिषद में स्थायी सीट का प्रबल दावेदार रहा है। और भारत की ओर से भी एक लंबे समय से इस परिषद के खाके में वक्त के अनुसार बदलाव करके उसे स्थायी सदस्यता देने की मांग की जाती रही है। विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने अपने हर वक्तव्य में भारत की इस नाते प्रबल दावेदारी को तथ्यों के साथ रखा है।
भारत के साथ ही अमेरिका ने भी कहा है कि सुरक्षा परिषद में आवश्यक सुधार करने का वक्त आ गया है। अमेरिकी विदेश मंत्री एंटनी ब्लिंकन कहते हैं कि अमेरिका तो कबसे भारत सहित जापान व जर्मनी को भी इस परिषद में स्थायी सदस्यता देने की मांग उठाता आ रहा है। ध्यान दें कि संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में कुल 15 सदस्य हैं और इनमें से पी5 देश—चीन, फ्रांस, यूके, रूस तथा अमेरिका—ही स्थायी सदस्य हैं।इन पांचों के पास ही वीटो की ताकत है। बाकी के 10 सदस्य अस्थायी होते हैं यानी उनका दो साल का कार्यकाल होता है। पांच स्थायी सदस्यों में हैं।
भारत आज ग्लोबल साउथ की आवाज ही नहीं है, बल्कि विश्व की शीर्ष पांच अर्थव्यवस्थाओं में गिना जाने लगा है। जल्दी ही भारतीय अर्थव्यवस्था तीसरे क्रमांक पर आने वाली है। इसके प्रति मोदी सरकार की प्रतिबद्धता जगजाहिर है। भारत चाहता है कि संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में सिर्फ पश्चिम के विकसित कहे जाने वाले देश ही स्थायी सदस्य न बने रहें बल्कि विकासशील देशों को भी उसमें और अच्छा प्रतिनिधित्व मिलना जरूरी है। इसके लिए वक्त की यही मांग है कि परिषद के स्वरूप में आवश्यक सुधार किया जाए।
हालांकि इस बार संयुक्त राष्ट्र की जो 79वीं महासभा चल रही है उसमें राष्ट्रपति ब्लिंकन ने अपने भाषण में सुरक्षा परिषद में अफ्रीकी देशों के लिए दो, छोटे विकासशील टापू देशों के लिए बारी बारी से एक स्थायी सीट की बात जरूर की थी। इतना ही नहीं, उन्होंने लातीनी अमेरिकी तथा कैरेबियाई देशों भी स्थायी सीट का विचार रखा था।
ब्लिंकन का कहना था कि सुरक्षा परिषद में विकासशील देशों का व्यापक प्रतिनिधितत्व आज की आवश्यकताओं के अनुसार जरूरी है। यानी उन्होंने भी प्रधानमंत्री मोदी की बात को ही दूसरे शब्दों में आगे रखा। अमेरिका भी अफ्रीकी, छोटे टापू देशों और कैरेबियाई देशों को अलग रखने का पक्षधर नहीं है। इसी में उन्होंने आगे जर्मनी, जापान तथा भारत के लिए स्थायी सीट का अनुमोदन किया। बाइडेन का कहना है कि इस दृष्टि से संयुक्त राष्ट्र में व्यापक चर्चा किए जाने की जरूरत है।
मोदी ने भी अपने भाषण में यह बात रेखांकित की थी गत वर्ष जी20 के नई दिल्ली शिखर सम्मेलन में भारत ने अफ्रीदी देशों के संघ को जी20 में सम्मिलित किया था और उसके पीछे भी सोच यही थी कि बदलते परिदृश्य में अफ्रीकी देशों का भी जी20 में प्रतिनिधित्व होना जरूरी है।
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