गत 14 सितंबर को हिंदी दिवस के अवसर पर नई दिल्ली स्थित संस्कार भारती के मुख्यालय ‘कला संकुल’ में काव्य संध्या का आयोजन हुआ। ‘पाञ्चजन्य’ द्वारा आयोजित इस कार्यक्रम का विषय था राजस्थान की वीरांगनाओं की स्मृति में काव्यघोष। इसके साथ ही 1991-92 में अजमेर में हुए सामूहिक बलात्कार कांड की पीड़ित बहनों को भी काव्यांजलि दी गई। उल्लेखनीय है कि अभी हाल ही में इस कांड के दोषियों को सजा हुई है।
कार्यक्रम के प्रारंभ में मां सरस्वती और भारत माता के चरणों में पुष्पांजलि अर्पित की गई। इसके बाद ‘पाञ्चजन्य’ के संपादक हितेश शंकर ने इस आयोजन की भूमिका रखते हुए कहा कि राजस्थान वीरों और वीरांगनाओं की भूमि है। ऐसी धरती पर अजमेर में लगभग 33 वर्ष पहले सैकड़ों हिंदू बेटियों के साथ जो हुआ, वह बहुत ही शर्मनाक था। लेकिन उनमें से कुछ बेटियों ने वीरता का परिचय देते हुए दरिंदों के विरुद्ध आवाज उठाई और आज उन लोगों को सजा हुई है। ऐसी वीरांगनाओं को नमन करना और उनके साहस और धैर्य को समाज तक पहुंचाना ही इस कार्यक्रम का लक्ष्य है। कार्यक्रम में कुल 13 नवोदित कवियों ने कविता, गीत और अन्य विधाओं के माध्यम से श्रोताओं को साहित्य की गंगा में डुबकी लगवाई। दिल्ली विश्वविद्यालय से हिंदी साहित्य में पीएचडी कर रहे युवा कवि धरमवीर ‘धरम’ ने मंच संचालन किया।
कवि ऋतिक राजपूत ने अपनी कविता ‘जौहर’ के माध्यम से राजस्थान की वीर माताओं और बहनों के बलिदान को श्रद्धांजलि दी। उन्होंने जौहर की उस परंपरा को रेखांकित किया, जिसने इतिहास के पन्नों में अपनी अमिट छाप छोड़ी है। दास आरोही ‘आनंद’ ने अपनी कविता ‘सत्य सनातन सेनानियों का तर्पण’ के माध्यम से उन सेनानियों की वीरता का वर्णन किया, जिन्होंने अपने प्राणों की आहुति देकर सनातन धर्म और भारत की रक्षा की है। उनकी कविता ने श्रोताओं में एक नई ऊर्जा का संचार किया। जब उन्होंने यह पंक्ति ‘जा करके देखो कैसे राम जी के लाड़लों ने बाबर व बाबरी के नाम को मिटा दिया’ सुनाई तो हर श्रोता झूम उठा। वहीं अक्षय प्रताप सिंह ने अपनी कविता ‘तिरंगा’ के माध्यम से श्रोताओं में देशभक्ति की भावना को और प्रबल किया। उन्होंने श्रोताओं को यह संदेश दिया कि तिरंगा केवल एक झंडा नहीं, बल्कि यह हमारी आजादी, शौर्य और गर्व का प्रतीक है।
33 वर्ष पहले सैकड़ों हिंदू बेटियों के साथ जो हुआ, वह बहुत ही शर्मनाक था। लेकिन उनमें से कुछ बेटियों ने वीरता का परिचय देते हुए दरिंदों के विरुद्ध आवाज उठाई और आज उन लोगों को सजा हुई है। ऐसी वीरांगनाओं को नमन करना और उनके साहस और धैर्य को समाज तक पहुंचाना ही इस कार्यक्रम का लक्ष्य है।
कवि सूर्य प्रकाश की शहीदों पर आधारित रचना ने श्रोताओं को भावुक कर दिया। उनकी इस पंक्ति ‘ऐ शहीदो, तुम्हारा जतन यूहीं जाया न जाएगा, जो गिरा है तुम्हारा लहू वो भुलाया न जाएगा’ ने खूब सराहना बटोरी। कवि मंगलम की ‘विश्वविद्यालय और लला’ में हास्य और गंभीरता का सुंदर समन्वय दिखा। शानो श्रीवास्तव ने ‘सनातन और राम’ पर अपनी कविता सुनाकर रामभक्ति का अद्भुत संचरण किया। कवि शिवम सिंह ने ‘हनुमंत’ कविता के जरिए श्रोताओं के हृदय में भक्ति और देशभक्ति की भावना को और गहराई से उभारा।
अमर पाल ‘अमर’ ने अपनी कविता ‘पुत्र का अंतिम प्रणाम अपनी मां को’ के माध्यम से मातृ-प्रेम की अद्वितीय अभिव्यक्ति की, जबकि जितेंद्र ‘जीत’ की ‘शबरी पुकार’ ने राम और शबरी की भक्ति का अनूठा वर्णन किया। रागिनी झा ‘धृति’ ने ‘राम जानकी छंद’ के जरिए माता जानकी की महिमा गाई। उन्होंने वीर हनुमान के संदर्भ में यह पंक्ति ‘किंतु जब प्रभु राम पड़े हों संकट में, तब केवल हनुमान दिखाई देते हैं…’ सुनाई तो पूरा सभागार तालियों से गूंज उठा। प्रशांत गुप्ता ने अपनी रचना ‘सनातन’ के माध्यम से धर्म और संस्कृति की बात रखी। अंत में धरमवीर ‘धरम’ ने अपनी रचना ‘बजरंगबली’ से कार्यक्रम का समापन किया।
कार्यक्रम के अंत में आमंत्रित कवियों को स्मृति चिह्न देकर सम्मानित किया गया। इस अवसर पर दिल्ली विश्वविद्यालय में हिंदी पढ़ाने वाले प्रो. चंदन चौबे ने हिंदी और सनातन संस्कृति की अमूल्य धरोहर पर चर्चा की। उन्होंने बताया कि हिंदी न केवल हमारी राष्ट्रीय भाषा है, बल्कि यह भारतीय संस्कृति और संस्कारों की संवाहक भी है।
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