श्रीरंग वासुदेव पेंढारकर
आश्विन कृष्ण पक्ष (दक्षिण भारत के कुछ पंचांगों के अनुसार भाद्रपद कृष्ण पक्ष) देश में पितृ पक्ष के रूप में मनाया जाता है। बोलचाल में इसे श्राद्ध पक्ष भी कहते हैं। पितृ या पितर शब्द स्त्री और पुरुष दोनों ही पूर्वजों को समाहित करता है। पितृ पक्ष का नियोजन अपने पूर्वजों को याद करने और उनके प्रति अपनी श्रद्धा प्रकट करने के लिए ही किया गया है।
आज हमारा अस्तित्व, हमारी पहचान और हमारा व्यक्तित्व भी हमारे पूर्वजों का अनुग्रह ही है। यदि वे न होते तो हम भी न होते। यदि वे हमारी पहचान को, हमारे मूल्यों को, हमारी परंपराओं को, हमारी सांस्कृतिक विरासत को और हमारी प्राचीन मनीषा को जीवन्त और अक्षुण्ण नहीं रखते और उन्हें संस्कार रूप में हमें प्रदान नहीं करते तो आज हम जो हैं वैसे तो कतई नहीं रहते। भारत के इतिहास के परिपेक्ष में यह और भी अधिक महत्वपूर्ण हो जाता है क्योंकि यह हमारे पूर्वजों का ही अनुग्रह है कि आज भी हमारी हिन्दू सभ्यता विश्व की सबसे प्राचीन अनवरत प्रवाहित सभ्यता के रूप में जीवन्त है। यह हमारे पूर्वजों का ही अनुग्रह है कि हम सदियों तक होते रहे आक्रांताओ के आक्रमणों के उपरान्त भी अपनी मौलिकता सहेजे हुए हैं। यह हमारे पूर्वजों का ही अनुग्रह है कि अमानवीय यातनाएं से गुजरने के बाद भी उन्होंने अपना अस्तित्व, अपनी पहचान बनाए रखी।
गत लगभग एक हजार वर्षों का काल हमारे लिए दासता और दमन का काल रहा। क्रूर आक्रांताओं के आधिपत्य की वजह से हमारे समाज को घोर विपन्नता और तानाशाही का सामना करना पड़ा। स्वभावत: हमारे समाज का सांस्कृतिक पतन भी हुआ और कईं कुरूतियां समाज में प्रवेश कर गई। इस काल को हम विकृति काल कह सकते हैं। संभवतः इसी दौरान किसी वजह से पितृ पक्ष को अशुभ मानने की भावना भी रूढ़ हो गई होगी। अन्यथा पितरों को यानी की पूर्वजों को अशुभ मानने का कोई कारण नजर नहीं आता। समाज का बड़ा हिस्सा इन पंद्रह दिनों में जमीन आदि के सौदे सहित कोई भी शुभ कार्य प्रारम्भ करने को टालता है। पंद्रह दिन तक बाजार की गति सुस्त हो जाती है। यह आचरण तर्क संगत नहीं लगता। यदि किसी काल पर हमारे पितरों का विशेष प्रभाव है तो वह अशुभ क्यों माना जाय? हमारे पितृ हमारा अशुभ क्यों सोचेंगे या करेंगे? क्या यह नहीं सोचा जा सकता कि किसी भी शुभ कार्य के प्रारम्भ करने हेतु पितृ पक्ष अधिक शुभ, अधिक श्रेष्ठ पक्ष है क्योंकि इस दौरान हमारे पितरों का हम पर विशेष आशीर्वाद रहता है।
उचित होगा यदि पितृ पक्ष को, अपने पितरों के अनुग्रह को याद कर उन्हें आदरांजलि अर्पित करने के अवसर के रूप मनाया जाय। उनके सुकृतों, उनके त्याग और उनकी निष्ठा का स्मरण किया जाय, आने वाली पीढ़ी को उनके इन अनुग्रहों से परिचित करवाया जाए और इस पर अशुभ काल होने का जो कलेवर चढ़ा दिया गया है उससे इसे मुक्त किया जाय। जिन घरों में श्राद्ध पक्ष में श्राद्ध का आयोजन होता है, वहां उपलब्ध घर, कुल के सदस्य उपस्थित रहते ही हैं परन्तु आज के युग में देश के विभिन्न क्षेत्रों या विदेशों में रह रहे परिवार के सदस्य वंचित रह जाते हैं। ऐसे में गूगल मीट जैसी नवीन तकनीकों के उपयोग से पूरा परिवार एक साथ जुड़ सकता है तथा परिवार के वरिष्ठ सदस्य गुजर चुकी पीढ़ियों के सम्बंध में नई पीढ़ियों को अवगत करा सकते हैं। नए युग, नई परिस्थितियों और नई व्यवस्थाओं के परिपेक्ष में यदि पितृ पक्ष जैसी प्रथाओं को पुनर्परिभाषित करते रहेंगे तो उनका उद्देश्य तो पूर्ण होगा ही उनकी प्रासंगिकता भी बनी रहेगी। सभी पूर्वजों को सादर प्रणाम और हृदय से आभार।
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