वक्फ बोर्ड की मनमानियों पर अंकुश लगाने के लिए केंद्र सरकार ने जो संशोधन विधेयक पेश किया है, उसका मुस्लिम संगठन विरोध कर रहे हैं। इस बीच आश्चर्यजनक रूप से कुछ मुस्लिम विद्वान इसके समर्थन में आगे आए हैं। संशोधन विधेयक में वक्फ बोर्ड के कामकाज में पारदर्शिता लाने के साथ महिलाओं को भी इसमें शामिल करने का प्रस्ताव है। विधेयक का उद्देश्य वक्फ कानून-1995 के कई खंडों को रद्द कर उसके मनमाने अधिकार को कम करना है। मौजूदा कानून के अनुसार, वक्फ बोर्ड बिना किसी सत्यापन के किसी भी संपत्ति को वक्फ संपत्ति घोषित कर सकता है। संशोधन विधेयक में ऐसे लगभग 40 बदलाव करने का प्रस्ताव है। पारदर्शिता के लिए वक्फ बोर्ड को किसी भी तरह की संपत्ति पर दावे के लिए अनिवार्य सत्यापन प्रक्रिया से गुजरना होगा।
रेलवे व सेना के बाद जमीन के मामले में वक्फ बोर्ड देश में तीसरे स्थान पर है। वक्फ बोर्ड के पास 9.4 लाख एकड़ में फैली 8.7 लाख संपत्तियों का नियंत्रण है, जिसकी अनुमानित कीमत 1.2 लाख करोड़ रुपये है। देशभर में 32 वक्फ बोर्ड हैं, जिनमें उत्तर प्रदेश और बिहार में दो शिया वक्फ बोर्ड भी शामिल हैं। इनका नियंत्रण लगभग 200 लोग करते हैं।
विधेयक का समर्थन
अब तक वक्फ संशोधन विधेयक का समर्थन हिंदू सहित समाज का विभिन्न वर्ग ही कर रहा था, लेकिन अब मुस्लिम भी इसमें शामिल हो गए हैं। उत्तर प्रदेश के पूर्व मंत्री मोहसिन रजा ने कहा कि वक्फ बोर्ड की संपत्तियों का सही उपयोग नहीं हो रहा है। यह विधेयक समुदाय के पिछड़े वर्गों के हित में है। इससे वक्फ संपत्तियों का दुरुपयोग कम होगा। वहीं, इस्लामी विद्वान मुफ्ती वजाहत कासमी का कहना है कि कुछ राजनीतिक दलों द्वारा भ्रम फैलाया जा रहा है। सरकार गरीब और जरूरतमंद मुस्लिम समुदाय के हित के लिए कदम उठा रही है, जिससे वक्फ और मुस्लिम समुदाय, दोनों का विकास होगा। आल इंडिया सज्जादानशीन काउंसिल ने भी यही बात कही है।
कानून के विशेषज्ञ प्रो. फैजान मुस्तफाने कहा कि यह विधेयक वक्फ संपत्तियों के कानूनी विवादों को जल्दी सुलझाने और उनके बेहतर प्रबंधन के लिए महत्वपूर्ण होगा। पसमांदा मुस्लिम महाज ने विधेयक समर्थन करते हुए कहा कि वक्फ संपत्तियों से होने वाली आय का उपयोग मुस्लिम समाज के वंचित तबके के विकास में होना चाहिए। यह विधेयक यही सुनिश्चित करने का एक प्रयास है। जमीयत उलेमा-ए-हिंद के सदस्य अब्दुल हमीद नोमानी का कहना है कि संशोधन विधेयक से वक्फ संपत्तियों के प्रबंधन में पारदर्शिता आएगी और उन संपत्तियों का संरक्षण होगा, जो अब तक अनियमितताओं का शिकार रही हैं। इसी तरह, जकात फाउंडेशन आफ इंडिया के अनुसार, विधेयक में वक्फ संपत्तियों का दुरुपयोग रोकने के प्रावधान हैं, जो जरूरी हैं। आल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के सदस्य मौलाना खालिद रशीद फिरंगी महली ने संशोधन के पक्ष में कहा कि सरकार द्वारा लाए गए कुछ प्रावधान वक्फ संपत्तियों के दुरुपयोग को रोकने में मददगार होंगे। आल इंडिया वक्फ काउंसिल ने भी विधेयक का समर्थन किया है।
वक्फ संशोधन विधेयक पर देशभर में बहस के बीच गत दिनों दिल्ली में मुस्लिम मजहबी गुरुओं व इस्लामी प्रचारकों की बैठक हुई। इसमें सभी ने कहा कि यह विधेयक मुसलमानों के हित में है। इससे मुस्लिम समुदाय को लाभ तो होगा ही, वक्फ संपत्ति का प्रबंधन और प्रशासन क्षमता में भी सुधार होगा। इस्लाम के प्रचारक मोहम्मद कासमिन ने कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पिछड़े-वंचित मुस्लिम समुदाय के हित में फैसले ले रहे हैं। उन्होंने मुसलमानों से अपील की कि वे इसे नकारात्मक दृष्टि से न देखें। यदि उनका कोई प्रश्न है तो इसे पढ़ने के बाद अवश्य पूछें। जमीयत उलेमा के दो दफ्तर वक्फ की जमीन पर है, ऐसे में वह वक्फ संशोधन विधेयक का समर्थन भला क्यों करेगी? इस्लामी गुरु ताहिर इस्माल ने कहा कि सरकार की नीयत पर शक नहीं किया जाना चाहिए। देश के हर जिले में वक्फ बोर्ड की जमीन पर कब्जा किया जा रहा है, उसे छुड़ाया जाना चाहिए। मुस्लिम विद्वान नाजिया हुसैन ने कहा कि वक्फ बोर्ड में महिलाओं को शामिल करने का प्रधानमंत्री मोदी का फैसला बिल्कुल सही है। यह विधेयक पारित होना चाहिए।
आरोपों के घेरे में वक्फ बोर्ड
भारत में वक्फ संपत्तियां इस्लामी परंपरा और कानून के अंतर्गत आती हैं। इनका प्रबंधन वक्फ बोर्ड करता है। वक्फ बोर्ड का मुख्य उद्देश्य मुस्लिम समुदाय के कल्याण के लिए काम करना था। जैसे- मजहबी इमारतों, स्कूल-कॉलेज, अस्पताल का निर्माण और आर्थिक रूप से पिछड़े मुसलमानों की सहायता करना। लेकिन ऐसा हुआ नहीं। हाल के वर्षों में वक्फ बोर्ड की कार्यप्रणाली और प्रबंधन पर ही सवाल उठने लगे। मुस्लिम समाज के एक बड़े हिस्से ने भी इस पर विरोध जताना शुरू कर दिया। इनका कहना है कि वक्फ बोर्ड द्वारा प्रबंधित संपत्तियों में भ्रष्टाचार, धांधली और मनमानी होती है। इसे लेकर कई मुस्लिम बुद्धिजीवी, सामाजिक कार्यकर्ता और धार्मिक मजहबी ने वक्फ बोर्ड के खिलाफ खुलकर सामने आए हैं।
वक्फ संपत्तियों का दुरुपयोग : कई मुस्लिम नेताओं का आरोप है कि वक्फ बोर्ड द्वारा संपत्तियों का दुरुपयोग किया जा रहा है। उदाहरण के लिए, वक्फ संपत्तियों को अवैध रूप से किराए पर दिया जाता है या बेच दिया जाता है और इससे होने वाली आय का सही उपयोग नहीं किया जाता। वक्फ संपत्तियों की सही जानकारी नहीं होने के कारण भी कई बार भ्रष्टाचार की संभावनाएं बढ़ जाती हैं। ऐसे आरोपों का एक प्रमुख उदाहरण दिल्ली वक्फ बोर्ड से जुड़ा है, जहां आरोप लगे हैं कि बोर्ड द्वारा करोड़ों रुपये की संपत्तियों को बेचा या गैर-इस्लामी उद्देश्यों के लिए उपयोग किया गया।
भ्रष्टाचार और वित्तीय धांधली : देश के कई वक्फ बोर्ड पर भ्रष्टाचार के गंभीर आरोप भी लगे हैं। आरोपों के अनुसार, बोर्ड के अधिकारी व्यक्तिगत लाभ के लिए वक्फ संपत्तियों का अवैध इस्तेमाल करते हैं। जैसे- उत्तर प्रदेश में वक्फ बोर्ड के एक पूर्व अधिकारी पर करोड़ों रुपये की वित्तीय धांधली का आरोप लगा था। उसने सस्ते दामों पर वक्फ संपत्तियों को बेच दिया था।
पारदर्शिता की कमी : विरोध करने वाले मुसलमानों का यह भी कहना है कि वक्फ बोर्ड की कार्यप्रणाली में पारदर्शिता नहीं है। वक्फ संपत्तियों का सही लेखा-जोखा नहीं रखा जाता और संपत्तियों से जुड़ी वित्तीय जानकारी भी छिपाई जाती है। इससे न केवल भ्रष्टाचार को बढ़ावा मिल रहा है, बल्कि समुदाय के लोगों का विश्वास भी वक्फ बोर्ड से उठ रहा है।
राजनीतिक हस्तक्षेप : एक और बड़ा आरोप यह भी है कि वक्फ बोर्ड में राजनीतिक हस्तक्षेप बढ़ा है। बोर्ड में राजनीतिक रसूख वाले लोगों की नियुक्ति की जाती है। मुस्लिम नेताओं का कहना है कि वक्फ बोर्ड को राजनीतिक दबाव से मुक्त किया जाए ताकि यह सही तरीके से मुस्लिम समुदाय की सेवा कर सके।
ये आरोपों के घेरे में
कुछ राज्यों के वक्फ बोर्ड पर भ्रष्टाचार और वित्तीय अनियमितता के आरोप लगे हैं, जो दर्शाते हैं कि वक्फ संपत्तियों का दुरुपयोग हो रहा है।
दिल्ली वक्फ बोर्ड : इस पर करोड़ों रुपये की वक्फ संपत्तियों को अवैध रूप से बेचने का आरोप है। बोर्ड के कुछ अधिकारियों ने निजी लाभ के लिए अवैध रूप से वक्फ संपत्तियों को हस्तांतरित किया। मुस्लिम समाज की आपत्ति के बाद सामाजिक कार्यकर्ताओं ने अदालत का दरवाजा खटखटाया।
यूपी वक्फ बोर्ड : इसमें करोड़ों रुपये का घोटाला सामने आया है। वक्फ की जीमन सस्ते दाम पर बेच दी गईं। राज्य के कई बड़े अधिकारियों व राजनेताओं पर भी घोटाले के आरोप लगे।
महाराष्ट्र वक्फ बोर्ड : महाराष्ट्र में भी वक्फ बोर्ड पर भी सैकड़ों एकड़ की वक्फ जमीन अवैध रूप से हस्तांतरित करने के आरोप लगे। इसे लेकर मुस्लिम समाज में भारी विरोध किया। मुस्लिम नेताओं और सामाजिक कार्यकर्ताओं ने घोटाले की जांच की मांग की।
वक्फ की मनमानी
देशभर में वक्फ बोर्ड की मनमानी के भी मामले सामने आए हैं। इनमें वक्फ बोर्ड ने निजी ही नहीं, बल्कि सरकारी सम्पत्तियों पर भी दावे किए हैं। पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) ने भी फतेहपुर सीकरी और अटाला मस्जिद सहित देश के 120 स्मारकों को लेकर वक्फ बोर्ड से खींचतान की बात कही है। इसके कारण इन ऐतिहासिक धरोहरों के रखरखाव में कठिनाई हो रही है।
दिल्ली लुटियंस जोन : दिल्ली वक्फ बोर्ड ने दिल्ली की 123 प्रमुख संपत्तियों पर दावा ठोका था। इनमें सरकारी कार्यालय, बाजार और सरकारी भूमि भी शामिल थी। यही नहीं, उसने लुटियंस जोन में भी कई सरकारी संपत्तियों पर दावा किया था, जिनमें सरकार के आधिकारिक भवन और कार्यालय परिसर भी शामिल थे। वक्फ बोर्ड का कहना था कि ये संपत्तियां उसकी हैं। हालांकि सरकार ने उसके दावों को खारिज किया और यह मामला न्यायिक प्रक्रिया में चला गया।
ताजमहल : उत्तर प्रदेश वक्फ बोर्ड ने तो ताजमहल को ही वक्फ संपत्ति घोषित कर दिया था। उसका तर्क था कि यह एक मस्जिद है और इस्लामी कानून के तहत इसे वक्फ संपत्ति की मान्यता दी जानी चाहिए। हालांकि, भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) और न्यायालय ने वक्फ के दावे को खारिज कर दिया। इसके अलावा, वाराणसी में वक्फ बोर्ड ने कुछ ऐतिहासिक धार्मिक स्थलों के आसपास की संपत्तियों पर हाथ रखा, लेकिन स्थानीय लोगों के भारी विरोध और सरकार के हस्तक्षेप के बाद उसे पीछे हटना पड़ा। हद तो तब हो गई, जब वक्फ बोर्ड ने इलाहाबाद उच्च न्यायालय की जमीन पर ही अपना दावा ठोक दिया। उच्च न्यायालय को अपनी जमीन बचाने के लिए उच्चतम न्यायालय जाना पड़ा। शीर्ष अदालत ने तीन माह में अवैध निर्माण हटाने का आदेश दिया। इसे नहीं मानने पर उसे हटाने या ध्वस्त करने की बात भी कही।
इंदौर नगर निगम की ऐतिहासिक जीत
इंदौर के कर्बला मैदान की 6.7 एकड़ जमीन पर भी वक्फ बोर्ड ने दावा किया था। लेकिने जिला अदालत ने उसके दावे को खारिज करते हुए 100 करोड़ रुपये से अधिक की यह जमीन इंदौर नगर निगम को सौंप दी है।
इस जमीन को लेकर 1979 से कानूनी लड़ाई चल रही थी। जमीन पर अवैध कब्जा रोकने के लिए निगम ने दीवानी अदालत में मुकदमा किया था, जिसे 2019 में खारिज कर दिया गया। इसे निगम ने जिला अदालत में चुनौती दी और मध्य प्रदेश वक्फ बोर्ड, कर्बला मैदान समिति और मुस्लिम पक्ष के अन्य लोगों को प्रतिवादी बनाया था। प्रतिवादियों का कहना था कि यह जमीन उन्हें होल्कर राजवंश ने मोहर्रम पर ताजिये ठंडे करने के लिए आरक्षित कर दी थी, जहां मस्जिद भी बनी हुई है।
200 वर्ष से इस जमीन पर उनका कब्जा बना हुआ है, लेकिन वे जमीन पर अपना दावा साबित नहीं कर सके। लिहाजा 13 सितंबर को अदालत ने निगम के पक्ष में फैसला सुनाया। अदालत ने होल्कर राजवंश के शासनकाल में प्रचलित इंदौर नगर पालिक अधिनियम-1909 व मध्य भारत नगर पालिका अधिनियम-1917 से लेकर होल्कर रियासत के भारत संघ में विलय का हवाला दिया। साथ ही, नगर पालिका अधिनियम-1956 के प्रावधानों के आधार पर यह फैसला दिया। हालांकि, अदालत अपने फैसले में तथ्यों पर गौर करने के बाद इस निष्कर्ष पर पहुंची कि पिछले 150 वर्ष से इस जमीन के एक हिस्से का उपयोग ताजिए ठंडे करने के धार्मिक कार्य के लिए होता आ रहा है।
जयपुर एयरपोर्ट : जयपुर वक्फ बोर्ड ने तो जयपुर अंतरराष्ट्रीय हवाईअड्डे पर ही दावा कर दिया था। लेकिन अदालत में बोर्ड को मुंह की खानी पड़ी। राजस्थान के कई जिलों में भी वक्फ ने सरकारी और निजी संपत्तियों पर दावा किया था। इनमें बाजार, कृषि भूमि और सरकारी दफ्तर शामिल थे।
निजी संपत्तियों पर दावा : महाराष्ट्र वक्फ बोर्ड ने निजी स्वामित्व वाली संपत्तियों पर ही दावा ठोक दिया था, जबकि इन संपत्तियों पर उनका मालिकाना हक पीढ़ियों से चला आ रहा था।
बेंगलुरु प्रकरण : कर्नाटक वक्फ बोर्ड ने बेंगलुरु के कुछ प्रमुख स्थानों की सरकारी जमीनों को हड़पने की कोशिश की थी। इसमें स्कूल, सरकारी कार्यालय व अस्पतालों की जमीनें थीं।
ग्रामीण जमीनों पर नजर : हरियाणा के कुछ ग्रामीण इलाकों में वक्फ बोर्ड ने सैकड़ों एकड़ जमीन पर दावा किया था, जिसमें स्थानीय किसानों की जमीनें शामिल थीं।
चारमीनार : हैदराबाद के चारमीनार क्षेत्र में भी वक्फ बोर्ड ने कई संपत्तियों पर दावा किया, जिनमें कई व्यावसायिक और आवासीय इमारतें शामिल थीं।
तमिलनाडु का चर्चित मामला : 2022 में वक्फ बोर्ड ने तमिलनाडु के तिरुचेंथुरई गांव पर ही रातोंरात दावा ठोक दिया। यही नहीं, गांव में 1,500 वर्ष पुराना सुंदरेश्वर मंदिर है, उसे भी अपना बताया। इस मामले का खुलासा तब हुआ, जब गांव का एक व्यक्ति अपनी जमीन बेचना चाहा।
बिहार का गांव पर टेढ़ी नजर : हाल ही में बिहार के फतुहा स्थित एक बस्ती गोविंदपुर गांव पर वक्फ बोर्ड ने दावा किया है। इस गांव में 95 प्रतिशत हिंदू और 5 प्रतिशत ही सुन्नी मुसलमान रहते हैं। उन्होंने सुन्नी वक्फ बोर्ड के हवाले से पूरे गांव को वक्फ बोर्ड की संपत्ति घोषित कर दी।
मोदी सरकार ने 8 अगस्त को लोकसभा में दो विधेयक वक्फ (संशोधन) विधेयक 2024 और मुसलमान वक्फ (खात्मा) विधेयक 2024 पेश किए थे। इन विधेयकों पर संयुक्त संसदीय समिति में बहस चल रही है। इसे लेकर समिति की कई बैठकें हो चुकी हैं। इस बीच, संयुक्त संसदीय समिति को इन विधेयकों के समर्थन में 84 लाख सुझाव मिले हैं। 70 बॉक्स में लिखित सुझाव भी मिले हैं।
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