गत 18 सितंबर को नई दिल्ली में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक श्री मोहनराव भागवत ने श्रीपाद दामोदर सातवलेकर कृत वेदों के हिंदी भाष्य के तृतीय संस्करण का लोकार्पण किया। इस अवसर पर उन्होंने कहा कि वेद भौतिक और आध्यात्मिक ज्ञान की निधि एवं अखिल ब्रह्मांड के मूल हैं।
वे सारी दुनिया को जोड़ने का काम करते हैं। वेद और भारत दोनों एक ही हैं। वे सनातन धर्म का आधार हैं। वेदों में ज्ञान, विज्ञान, गणित, धर्म, चिकित्सा और संगीत की भी प्रचुरता है। उन्होंने कहा कि वेदों के मंत्रों में अंकगणित, घन और घनमूल के सिद्धांतों का भी स्पष्ट उल्लेख है। वेदों में समस्त विश्व के कल्याण की बात निहित है। वेद विश्व की समस्त मानवता को एकाकार होने का मार्ग दिखाते हैं।
सनातन संस्कृति में जीवन जीने के लिए स्पर्धा नहीं करनी पड़ती, यह हमें वेदों ने ही सिखाया है। उन्होंने कहा कि हमारे ऋषियों ने विश्व कल्याण के लिए वेदों की रचना की थी। हमारे यहां जब पुत्र का पेट भर जाता है तो माता तृप्त हो जाती है। यह बात विज्ञान चाहे न माने किंतु यह भौतिकवाद से परे का आनंद है। ज्ञान की समस्त प्रणालियों में वेदों का आधार देखने को मिलता है।
वेदों के अध्ययन से समस्त मानवता प्रकाशित होती रहेगी। महामंडलेश्वर स्वामी बालकानंद गिरी जी महाराज ने कहा कि आक्रांताओं ने वेद ग्रंथों और सनातन गुरुकुलों को नष्ट करने का प्रयास किया, लेकिन हमारे ऋषियों की स्मृतियों में रचे-बसे वेदों को वे नष्ट नहीं कर पाए।
इसीलिए भारतीय संस्कृति में वेद चिर स्थायी हैं और रहेंगे। विश्व हिंदू परिषद के संरक्षक एवं केंद्रीय प्रबंध समिति के सदस्य श्री दिनेश चंद्र ने प्रस्तावना में बताया कि स्वाध्याय मंडल पारडी, गुजरात तथा दिल्ली स्थित लाल बहादुर शास्त्री राष्ट्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय के वेद अध्ययन केंद्र द्वारा श्रीपाद दामोदर सातवलेकर द्वारा भाष्यकृत इन चारों वेदों के 8,000 पृष्ठ के प्रकाशन में 10 वर्ष की अथक मेहनत लगी है।
इस पुण्य कार्य में लगे विद्वानों व उनके सहयोगियों को इस अवसर पर सम्मानित भी किया गया। कार्यक्रम में देश के अनेक साधु-संतों के साथ ही कई संगठनों के वरिष्ठ कार्यकर्ता उपस्थित रहे।
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