नई दिल्ली | बांग्लादेश में हिंदू, बौद्ध और ईसाई समुदायों के खिलाफ हिंसा बढ़ती जा रही है। 19 सितंबर को बांग्लादेश के खागराचारी जिले में चकमा समुदाय के 100 से अधिक घरों और दुकानों को जलाने का मामला सामने आया है। यह घटना शाम करीब 5 बजे हुई। हमला मैदानी इलाकों से अवैध रुप से आये लोगों द्वारा किया गया था।
यह हमला आदिवासी छात्रों द्वारा एक विरोध प्रदर्शन के बाद हुआ। दरअसल, 18 सितंबर को 40,000 आदिवासियों द्वारा ‘पहचान के लिए मार्च’ निकाला गया था। इस मार्च में आदिवासियों ने अधिकारों की मान्यता और उनकी पहचान की गारंटी की मांग कि थी। चकमा समुदाय पर यह हमला उसी प्रर्दशन के विरोध में किया गया है।
अधिकारों और जोखिम विश्लेषण समूह (RRAG) के निदेशक सुहास चकमा ने बताया कि शेख हसीना सरकार के गिरने के बाद देश में अराजकता का माहौल बन गया है। उन्होंने कहा कि 17 सितंबर 2024 को मुख्य सलाहकार मोहम्मद यूनुस ने बांग्लादेश सेना को मजिस्ट्रेटी शक्तियाँ दी थीं, लेकिन उसी सेना ने चकमा दुकानों और घरों को जलाने में मदद की।
चकमा ने आरोप लगाया कि दिघिनाला छावनी में तैनात बांग्लादेशी सेना ने इस हिंसा के दौरान आक्रमकारियों के रोकने का कोई प्रयास नहीं किया। बल्कि आक्रमणकारियों का समर्थन किया। इस हमले के बाद दिघिनाला सदर क्षेत्र में कोई भी चकमा निवासी नहीं बचा है। RRAG इस घटना को संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार तंत्र के सामने लाने की योजना बना रहा है।
चकमा समुदाय ने लंबे समय से भूमि विवादों का सामना किया है। 1979 से 1983 तक तत्कालीन राष्ट्रपति जनरल जियाउर रहमान ने लगभग 500,000 लोगों को इस क्षेत्र में बसाया था। जिससे आदिवासी जनसंख्या अल्पसंख्यक हो गई थी। इस घटना ने बांग्लादेश में आदिवासी समुदायों की सुरक्षा और अधिकारों पर गंभीर सवाल उठाए हैं।
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