पाकिस्तान की एक अदालत ने गुरुवार (19 सितंबर 2024) को ईशनिंदा के मामले में एक महिला को मौत की सजा सुनाई। दोषी महिला ईसाई है। सितंबर 2020 में एक व्हाट्सएप ग्रुप में इस्लाम के पैगंबर के बारे में अपमानजनक कंटेंट साझा करने के आरोप में शौगाता करन के खिलाफ ईशनिंदा कानून के तहत मामला दर्ज किया गया था। इस्लामाबाद की विशेष अदालत के न्यायाधीश अफजल माजुका ने सुनवाई के बाद शौगाता करन को पाकिस्तान दंड संहिता की धारा 295 सी के तहत दोषी पाया, जिसमें मौत की सजा का प्रावधान है। शौगाता पर तीन लाख रुपये का जुर्माना भी लगाया है। इसके अलावा, अदालत ने महिला को पाकिस्तान इलेक्ट्रॉनिक अपराध अधिनियम (पीईसीए) की धारा 11 के तहत सात साल की कैद और एक लाख रुपये का जुर्माना भी लगाया।
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न्यायाधीश ने आदेश में कहा कि दोषी को फैसले के 30 दिनों के भीतर हाई कोर्ट में अपील दायर करने का अधिकार है। न्यायाधीश माजुका ने कहा, “जब तक हाई कोर्ट इस फैसले को मंजूरी नहीं दे देता, तब तक सजा पर अमल नहीं किया जाएगा। शौगाता दूसरी ईसाई महिला हैं, जिसे पैगंबर और इस्लाम मजहब का अपमान करने के मामले में मौत की सजा सुनाई गई है।”
इससे पहले ईशनिंदा के आरोप में मौत की सजा पाने वाली आसिया बीबी को आठ साल तक जेल में रखा गया था, लेकिन पाकिस्तान सुप्रीम कोर्ट के पूर्व मुख्य न्यायाधीश आसिफ सईद खोसा की अध्यक्षता वाली पीठ ने अक्टूबर 2018 में उसे बरी कर दिया था। बरी होने के बाद बीबी अपने पूरे परिवार के साथ कनाडा चली गईं।
पाकिस्तान की इंटरनेशनल द न्यूज वेबसाइट के अनुसार, एक अन्य मामले में अतिरिक्त जिला एवं सत्र न्यायाधीश ने कुरान के अपमान से संबंधित मामले में दोषी पाए गए मुहम्मद हाशिम को आजीवन कारावास की सजा सुनाई है।
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कब लागू हुआ ईशनिंदा कानून
1980 के दशक में पूर्व सैन्य शासक जियाउल हक ने ईशनिंदा कानून को लागू किया था। ऐसा कहा जाता है कि ईशनिंदा के आरोप में पकड़े गए लोगों को अक्सर कट्टरपंथियों द्वारा निशाना बनाया जाता है। थिंक टैंक सेंटर फॉर सोशल जस्टिस के मुताबिक, पाकिस्तान में 1987 से लेकर अब तक लगभग तीन हजार लोगों पर ईशनिंदा का आरोप लगाया जा चुका है। इस साल जनवरी से अब तक पूरे पाकिस्तान में ईशनिंदा के आरोप में कम से कम सात लोगों की भीड़ द्वारा हत्या कर दी गई। वहीं, वर्ष 1994 से 2023 के बीच ईशनिंदा के आरोप में भीड़ के हमलों में कुल 94 लोगों को हत्या कर दी गई।
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