देहरादून । उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने एक बार फिर देवभूमि के बदलते डेमोग्राफिक स्वरूप को लेकर चिंता जाहिर की है। उनका कहना है कि राज्य में अवैध रूप से बाहरी लोग आकर बस रहे हैं और अतिक्रमण कर रहे हैं, जिससे देवभूमि का सनातन स्वरूप खतरे में पड़ रहा है। सरकार इस मुद्दे को गंभीरता से लेते हुए अतिक्रमण हटाने और सत्यापन कराने के लिए अभियान चला रही है, लेकिन कई सरकारी विभागों की सुस्ती इस दिशा में सरकार के प्रयासों को कमजोर कर रही है। सीएम धामी ने स्पष्ट रूप से कहा है कि वे देवभूमि का धार्मिक और सांस्कृतिक स्वरूप किसी भी कीमत पर बिगड़ने नहीं देंगे। राज्य की जंग खाई सरकारी मशीनरी इस काम में वो तेजी नही दिखा रही जिसकी उम्मीद सीएम पुष्कर धामी को रहती आई है।
उत्तराखंड में पूर्ववर्ती कांग्रेस शासन काल के दौरान किया सरकारी भूमि पर अतिक्रमण से देवभूमि का सनातन स्वरूप बिगड़ रहा है। खास तौर पर केंद्र सरकार की भूमि ,वन विभाग और राजस्व विभाग की जमीनों पर अवैध रूप से हजारों नही लाखो लोग आकर बस गए है और बसते भी जा रहे है।
सरकारी मशीनरी के पास इस अतिक्रमण को हटाने के लिए या तो फुरसत नहीं है या फिर वो इस काम को फालतू का काम समझ कर अनदेखा कर रही है। जिलों में कुछ अधिकारी ऐसे भी है जो इस अभियान को इस लिए ठंडे बस्ते में डाल देते है कि ” मैं अपने कार्यकाल में क्यों बवाल मोल लूं”? इस सोच के चलते उत्तराखंड के चार मैदानी जिलों में अतिक्रमण की समस्या नासूर बन गई है और इसकी वजह से जनसंख्या असंतुलन एक राजनीतिक ,आर्थिक और सामाजिक समस्या का विकराल रूप धारण रही है।
वन विभाग द्वारा साढ़े तीन हजार एकड़ से अधिक जमीन अतिक्रमण से मुक्त करवाई गई है लेकिन अभी करीब आठ हजार हैक्टेयर भूमि कब्जेदारों के पास है। वन अधिकारियो द्वारा कभी राजनीतिक कारणों से अतिक्रमण हटाओ अभियान सुस्त कर दिया जाता है,तो कभी तेज कर दिया जाता है।
उधर रेलवे की जमीन मसूरी लालकुआं में कब्जा मुक्त की जा रही है हल्द्वानी रेलवे की जमीन का विवाद सुप्रीम कोर्ट में लंबित पड़ा हुआ है। शत्रु संपत्ति पर से देहरादून में अवैध कब्जे नही हटाए जा सके है, जबकि नैनीताल में सरकार ने शत्रु संपत्ति खाली करवा कर अपने कब्जे में ले ली है। लेकिन अभी भी बीस हजार करोड़ की संपत्ति अवैध कब्जेदारी में है।
राजस्व विभाग, ग्राम पंचायत की जमीनों पर हजारों की संख्या में बाहर से आए मुस्लिम बसते जा रहे है स्थानीय नेता उन्हे संरक्षण भी दे रहे है और उनसे चौथ भी वसूल रहे है। पछुवा देहरादून में ऐसे सैकड़ों मामले उजागर हुए है यहां गांव के गांव अपना सामाजिक स्वरूप बदलते हुए देख रहे है।
अतिक्रमण की समस्या और जमीनी हकीकत
उत्तराखंड में सरकारी जमीनों पर अतिक्रमण की समस्या दिनों-दिन बढ़ती जा रही है। खासकर वन विभाग, राजस्व विभाग और केंद्र सरकार की भूमि पर अवैध रूप से हजारों नहीं, बल्कि लाखों लोग आकर बस गए हैं। इस अवैध कब्जे के कारण राज्य की डेमोग्राफी तेजी से बदल रही है, जो एक राजनीतिक, आर्थिक और सामाजिक चुनौती बन गई है। हालांकि वन विभाग ने अब तक 3500 एकड़ से अधिक जमीन अतिक्रमण से मुक्त करवाई है, लेकिन अभी भी करीब 8000 हेक्टेयर भूमि कब्जेदारों के पास है।
सीएम धामी की चिंता सही साबित हो रही है क्योंकि सरकारी मशीनरी के पास इस अतिक्रमण को हटाने के लिए या तो फुर्सत नहीं है, या फिर कुछ अधिकारी इसे फालतू का काम समझकर अनदेखा कर रहे हैं। जिलों में कई अधिकारी इस अभियान को इसलिए ठंडे बस्ते में डाल देते हैं, क्योंकि उन्हें अपने कार्यकाल में किसी बवाल से बचना होता है।
कहां-कहां चिन्हित हुआ अतिक्रमण
उत्तराखंड राज्य में भागौलिक दृष्टि से 71प्रतिशत क्षेत्र में जंगल भूमि है, जहां सबसे ज्यादा अवैध रूप से अतिक्रमणकारी बसे हुए हैं, सरकार द्वारा एक सर्वे करवाया गया है जिसमे बताया गया है कि 11814 हेक्टेयर वन भूमि पर बाहर से आए लोगों ने कब्जा किया हुआ है। सर्वे में यह बताया गया कि जिन 23 नदियों में खनन होता है वहां नदी श्रेणी की वन भूमि पर कब्जे किए गए है।
दरअसल यहां 2005 तक खनन के लिए श्रमिक बाहरी प्रदेशों से जब आते थे और बरसात में खनन बंद होने के बाद वापिस चले जाते थे।किंतु कांग्रेस शासन काल में ये लोग यहां स्थाई रूप से कच्चे पक्के मकान बना कर बस गए और अब इस कब्जे वाली जगह के सौदे होने लग गए, इस सौदे बाजी को राजनीतिक संरक्षण मिला और अब यहां अवैध बस्तियां जनसंख्या असंतुलन, मुस्लिम तुष्टिकरण का कारण बन गई है।
गंगा तीर्थ नगरी में कुम्भ क्षेत्र को छोड़ दिया जाते तो पूरा जिले में हरी चादर फैल गई है। हरिद्वार जिले में गंगा, नैनीताल और उधम सिंह नगर जिले में गौला,कोसी नदी, देहरादून जिले में टोंस, यमुना, कालसी, रिस्पना, नौरा, अमलावा आदि नदियों के किनारे हजारों की संख्या में अवैध रूप से बाहर से लोग आकर बस गए है पुलिस इन दिनों इनका सत्यापन करवा रही है।
रेलवे राजस्व पीडब्ल्यूडी जलविद्युत सिंचाई की बेशकीमती जमीनों पर कब्जे
अवैध रूप से कब्जे करने वालो ने एक षड्यंत्र के तहत हल्द्वानी रामनगर की रेलवे की जमीनों पर कब्जे किए जिन्हे केंद्र और राज्य सरकार मिल कर खाली करवा रही है, इस मामले में सरकार हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट में अपने कब्जे की लड़ाई लड़ रही है।
देहरादून जिले में, हिमाचल, यूपी से लगे विकासनगर क्षेत्र में, ढकरानी आसन बैराज क्षेत्र में जलविद्युत विभाग और सिंचाई विभाग की नहरों के किनारे जमीनों पर हुए अवैध कब्जों को धामी सरकार ने बुल्डोजर चला कर खाली करवा लिया है, यहां बिना अनुमति बनी मस्जिदों और मदरसो को प्रशासन ने खुद हटाने का नोटिस भी दिया है। धर्मपुर, सहसपुर, क्षेत्र में भी अवैध कब्जे चिन्हित हुए है जिन्हे प्रशासन हटाने की तैयारी कर चुका है।
उत्तराखंड में बड़ी संख्या में जलविद्युत परियोजनाओं पर काम हुआ, यहां काम करने आए श्रमिक और अन्य लोग यहां की जमीनों पर अवैध रूप से बस गए, पिछले दिनों टिहरी डैम के पास मस्जिद बनाने का प्रकरण चर्चा में आया जिस पर बवाल हुआ, इसी तरह से सीमावर्ती धारचूला क्षेत्र में भी अवैध कब्जे हुए।
उत्तराखंड में ऑल वेदर रोड और अन्य सड़क प्रोजेक्ट चल रहे है जिसकी आड़ लेकर यहां लोग पहाड़ों की सरकारी जमीनों पर अवैध रूप से बसने लगे जिन्हे अब धामी सरकार बुल्डोजर से ध्वस्त कर रही है। इसी तरह राजस्व, पीडब्ल्यूडी, विभाग की जमीनों पर भी अवैध कब्जे होते चले गए, जिन्हे अब प्रशासन हटा रहा है।
शत्रु संपत्ति पर अवैध कब्जे
देहरादून और नैनीताल जिलों में शत्रु संपत्ति पर भी अवैध कब्जे हुए हैं। नैनीताल में सरकार ने शत्रु संपत्ति को खाली करवा लिया है, लेकिन देहरादून में अभी भी 20,000 करोड़ रुपये की शत्रु संपत्ति अवैध कब्जेदारी में है। यह संपत्ति उन लोगों की होती है जो भारत छोड़कर पाकिस्तान चले गए थे, और अब इस संपत्ति का स्वामित्व भारत सरकार के पास है।
मुस्लिम वन गुर्जरों का कब्जा
उत्तराखंड में कॉर्बेट और राजा जी टाइगर रिजर्व से मुस्लिम गुर्जरों को बाहर निकालकर प्रत्येक परिवार को एक-एक हेक्टेयर जमीन दी गई थी। लेकिन इन गुर्जरों ने अपने रिश्तेदारों को हिमाचल और उत्तर प्रदेश से बुलाकर बड़ी मात्रा में जमीन कब्जा ली और उस पर खेती करना शुरू कर दिया।
अब जब सर्वे में इस प्रकरण का खुलासा हुआ तो मालूम हुआ कि तराई पश्चिम पूर्वी वन प्रभाग, देहरादून और हरिद्वार वन प्रभाग में हजारों एकड़ जमीन इन गुर्जरों ने कब्जा ली और फिर खरीद फरोख्त का कारोबार भी करने लगे। इसमें कई राजनीतिक और वनाधिकारियों के संरक्षण के विषय भी सामने आए, लेकिन सीएम धामी ने स्पष्ट कर दिया कि कोई दबाव नहीं है और उन्हे जंगल बिल्कुल अतिक्रमण मुक्त चाहिए,उन्होंने कहा कि पुराने चले आ रहे गोट खत्ते आबादी को छोड़ कर एक एक इंच सरकारी जमीन खाली करवाई जाएगी।
वन विभाग ने सख्त रुख अपनाते हुए अभी तक तीन हजार एकड़ से ज्यादा जमीन को अवैध कब्जे से मुक्त करवा लिया है। शेष पर कारवाई चल रही है। वन विभाग ने कालागढ़ में रामगंगा जल विद्युत परियोजना और ऋषिकेश में आईडीपीएल को लीज पर दी अपनी जमीन को भी वापिस लिए जाने का काम शुरू किया है।
मुख्यमंत्री धामी का सख्त रुख
मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी का कहना है- “वो देवभूमि उत्तराखंड का सनातन स्वरूप बिगड़ने नही देंगे, हमारे तीर्थ हमारी नदियां पावन है और पूजनीय है जिनका संरक्षण करना इनकी सेवा करना हमारा पहला कर्तव्य है, हम नदियों को जंगल को कब्जा मुक्त कराने का अभियान छेड़ चुके है। ये हिमालय ये शिवालिक हमारे आराध्य देवी देवताओं के वास है।
सीएम धामी कहते है कि हम एक एक इंच सरकारी भूमि कब्जे से मुक्त कराएंगे। बेहतर यही होगा कि अवैध कब्जेदार खुद ही कब्जा छोड़ दे अन्यथा हमारा बुल्डोजर आ रहा है। वहीं सीएम धामी ने सभी जिलाधिकारियों को स्पष्ट कह दिया है कि बिना किसी राजनीतिक, सामाजिक दबाव के अवैध रूप से बसे लोगो को हटाया जाए।
धार्मिक संरचनाओं की आड़ पर अवैध कब्जा
धार्मिक संरचनाओं की आड़ में भी अतिक्रमण हो रहा है। उत्तराखंड के वन, पीडब्ल्यूडी, रेलवे और सिंचाई भूमि पर मजारे, मस्जिदें और मदरसे बना दिए गए हैं, जिन्हें धामी सरकार ने सख्ती से हटाना शुरू कर दिया है। खासकर कॉर्बेट और राजा जी टाइगर रिजर्व के जंगलों में जहां इंसानों का प्रवेश भी प्रतिबंधित है, वहां मजारे बना दी गई थीं, जिन्हें अब ध्वस्त किया जा रहा है।
सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों का पालन
सुप्रीम कोर्ट ने धार्मिक संरचनाओं को लेकर 2009 और 2019 में निर्देश जारी किए थे कि कोई भी नया धार्मिक स्थल सरकारी भूमि पर नहीं बनाया जा सकता। धामी सरकार ने इन निर्देशों के तहत ही अवैध धार्मिक संरचनाओं को हटाया है।
कैबिनेट द्वारा सख्त कानून की मंजूरी वाला बिल भी लटका
उत्तराखंड की धामी कैबिनेट ने एक अध्यादेश लाने का प्रस्ताव पास किया है।जिसमे सरकारी और निजी भूमि पर अतिक्रमण करने वाले के खिलाफ आईपीसी एक्ट के तहत मामला दर्ज करने और उसे दस साल तक कड़ी सजा दिए जाने का प्रावधान किया गया है,ये विषय अगले विधानसभा सत्र में रखा जाना है,खबर है कि इस मामले को लेकर नौकरशाही ने अडंगा लगा दिया है। धामी सरकार ने अतिक्रमण करने वालो के खिलाफ गैंगस्टर और रासुका जैसे कठोर कानून लगाने के लिए पुलिस प्रशासन को स्वतंत्रता दी है परंतु शासन स्तर पर ढुल मुल कारवाई से ये बिल अधर में लटका हुआ है।
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