त्रूदो की लिबरल पार्टी के अंदर से ही उनके विरुद्ध आवाजों का उठना साफ बता रहा है कि वे संदर्भहीन होते जा रहे हैं। पार्टी के बड़े नेताओं ने कहा है कि नेतृत्व में परिवर्तन होना वक्त की मांग है। कई सांसद और विधायक चाहते हैं कि त्रूदो अब पद त्याग दें।
कनाडा में यह सवाल फिर सिर उठा रहा है कि प्रधानमंत्री जस्टिन त्रूदो और कितने दिन कुर्सी पर टिके रहने वाले हैं? क्या अक्तूबर 2025 के आम चुनाव से पहले ‘खालिस्तान प्रेमी’ त्रूदो की रवानगी हो जाएगी? क्या उनकी पार्टी को अब प्रधानमंत्री पद पर अब किसी और को नहीं बैठा देना चाहिए? ये सब सवाल उठ रहे हैं मांट्रियल के उपचुनावों में त्रूदो की पार्टी की करारी हार से। यह सीट उस पार्टी के लिए बहुत सुरक्षित मानी जाती रही है। लेकिन लगता है, वहां के मतदाताओं का भी लिबरल पार्टी से मोहभंग हो चला है।
सत्तारूढ़ लिबरल पार्टी का संसद का यह उपचुनाव हारना वहां एक बड़ा संकेत माना जा रहा है। लिबरल पार्टी की स्थिति वहां वर्षों से मजबूत ही रही थी, लेकिन उसके उम्मीदवार का हार जाना त्रूदो की हाशिए पर जाती लोकप्रियता का सूचक माना जा रहा है। वहां कल आए उपचुनाव के नतीजे प्रधानमंत्री त्रूदो के लिए बड़ा झटका माने जा रहे हैं। उनकी कुर्सी अब गई, तब गई के हालात बनते दिख रहे हैं। कारण? अब उन्हीं की लिबरल पार्टी के नेता उन पर जबरदस्त दबाव डाल रहे हैं कि कुर्सी छोड़ दें।
बताया गया कि ‘क्यूबेकॉइस’ के उम्मीदवार लुई-फिलिप सॉवे 28 प्रतिशत वोट लेकर विजयी रहे जबकि लिबरल पार्टी के उम्मीदवार लौरा फिलिस्तीनी को उससे कम 27.2 प्रतिशत मत मिले हैं। तीसरे नंबर पर रहे न्यू डेमोक्रेटिक पार्टी के उम्मीदवार, जिन्हें 26.1 प्रतिशत वोट ही मिले। बता दें कि ‘क्यूबेकॉइस’ को अलगाववादी गुट माना जाता है। इस सीट से लिबरल सांसद के त्यागपत्र देने के बाद यहां उपचुनाव कराया गया था। नौ वर्ष से प्रधानमंत्री की कुर्सी पर बैठे त्रूदो की साख को यह बड़ा आघात है।
घटती लोकप्रियता को देखते हुए खालिस्तान समर्थकों से समर्थन के बूते कुर्सी बचाए रखने वाले प्रधानमंत्री त्रूदो से अधिकांश अनिवासी भारतीय भी नाराज हैं, क्योंकि खालिस्तानी तत्व उनके राज में निडर होकर ‘जनमत’ के बहाने अराजकता फैला रहे हैं। भारतीय उच्चायोग को उन्होंने अपनी नफरत का निशाना बनाया हुआ है। वे भारतीय राजनयिकों के विरुद्ध जहर उगलते रहे हैं। भारत के अनेक अवसरों पर शिकायत करने के बाद भी, त्रूदो खालिस्तानियों के विरुद्ध कोई कड़ा कदम नहीं उठा रहे हैं।
लेकिन अब त्रूदो की लिबरल पार्टी के अंदर से ही उनके विरुद्ध आवाजों का उठना साफ बता रहा है कि वे संदर्भहीन होते जा रहे हैं। पार्टी के बड़े नेताओं ने कहा है कि नेतृत्व में परिवर्तन होना वक्त की मांग है। कई सांसद और विधायक चाहते हैं कि त्रूदो अब पद त्याग दें। कनाडा इस वक्त संकट के दौर से गुजर रहा है, महंगाई बढ़ रही है, आवासों की कमी सामने आ रही है। इतना ही नहीं, अंतरराष्ट्रीय छात्रों में भी त्रूदो सरकार के कायदों को लेकर भारी रोष व्याप्त है।
चुनाव पूर्व हुए कुछ सर्वेक्षण बताते हैं कि आने वाले संसदीय चुनाव में पियरे पोलिएवर की मध्य-दक्षिणपंथी कंजर्वेटिव पार्टी लिबरल से हार सकती है। गत सप्ताह के एक सर्वेक्षण में कंजर्वेटिव पार्टी 45 प्रतिशत समर्थन दिया है।
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