शिक्षा

नई शिक्षा नीति युवा पीढ़ी को बुनियादी और आत्मनिर्भर बनाएगी

Published by
निलेश कटारा

1986 के बाद नई शिक्षा नीति को 2020 में केंद्रीय सरकार ने स्वीकृति प्रदान की। नई शिक्षा नीति के द्वारा मातृभाषा के माध्यम से बच्चों को शिक्षित करने का प्रावधान किया गया है। इसके साथ ही रोजगारोन्मुखी शिक्षा की व्यवस्था की गई है। रोजगारोन्मुखी शिक्षा से छात्रों में तकनीकी दक्षता का विकास होगा, जिससे शिक्षा प्राप्त करने के उपरांत वे अपना रोजगार प्रारंभ कर सकते हैं। राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के शिक्षा दर्शन में छात्रों को रोजगारपरक शिक्षा देने का प्रावधान किया गया है। महात्मा गांधी ने इसी उद्देश्य से बुनियादी विद्यालयों की स्थापना की थी। इस तरह की शिक्षा पद्धति बहुत हद तक बेरोजगारी की समस्या पर नियंत्रण स्थापित करने में सफल हो सकेगी।

आज का युग तकनीकी का युग है। सारे संसार में तेजी के साथ टेक्नोलॉजी का विकास हो रहा है। नवीन शिक्षा पद्धति छात्रों को विभिन्न प्रकार के तकनीक में दक्ष करने में सक्षम है। जहां तक नवीन शिक्षा पद्धति के सफल होने का प्रश्न है वह बहुत हद तक उसे लागू करने वाले प्रशासनिक एजेंसी के ऊपर निर्भर है। नवीन शिक्षा पद्धति को प्रभावी तरीके से क्रियान्वित करने के लिए बड़े पैमाने पर योग्य शिक्षकों की आवश्यकता है। इसके लिए शिक्षक एवं छात्र के अनुपात को भी कम करना होगा। तभी जाकर के प्रभावी तरीके से शिक्षक छात्रों को शिक्षित कर सकेंगे। इसके साथ ही विद्यालयों में आधुनिक श्रव्य दृश्य उपादानों की व्यवस्था करनी होगी। तभी जाकर छात्रों को वैज्ञानिक तरीके से पढ़ाया जा सकेगा। तकनीकी शिक्षा को सफल बनाने के लिए दक्ष टेक्नीशियनों की नियुक्ति करनी होगी। जिससे विभिन्न प्रकार के ट्रेंड में छात्र दक्षता प्राप्त कर सकें और शिक्षा प्राप्त करने के उपरांत आत्मनिर्भर बन सके। तभी जाकर के नवीन शिक्षा पद्धति सफल हो पायेगी।

शिक्षा ही सफलता का रहस्य है

किसी भी काम में सफलता प्राप्त करने के लिए प्रयत्न करना ज़रूरी है और प्रयत्न का सही दिशा में होना ज़रूरी है। यह जो सही दिशा है वह हमारी बुद्धि और विवेक तय करते हैं, जिसके लिए उन्हें हमारे अंतःकरण में संचित ज्ञान की आवश्यकता पड़ती है। यह ज्ञान हमें शिक्षा के माध्यम से मिलता है। शिक्षा चाहे हमने अध्ययन करके पायी हो, किसी गुरु से ली हो, अपने रोज़मर्रा के अनुभव से प्राप्त की हो, अपने आसपास होने वाली गति-विधियों के अवलोकन से या किसी अन्य स्रोत से ली हो।

शिक्षा न केवल कार्यों को सही ढंग से करने का तरीक़ा बताती है, बल्कि समाज में समुचित व्यवहार करना भी सिखाती है। अच्छा व्यवहार और आचरण हमारे अच्छे चरित्र का निर्माण करते हैं, जो जन्म जन्मांतरों में हमारे संस्कार के रूप में चलता है। इसी प्रकार शिक्षा ही हमें बुरे प्रलोभनों से दूर रखती है और बुरी आदतों में लिप्त होने से बचा कर हमारे शारीरिक स्वास्थ्य को भी सही रखती है। दूसरे शब्दों में कहें तो शिक्षा एक वरदान है जो हमारे समूचे जीवन को सुखमय और शांति पूर्ण रखने में सबसे अधिक महत्वपूर्ण कार्य करती है।
शिक्षा या विद्या एक ऐसा धन है जिसे न तो कोई चुरा सकता है और न ही कोई छीन सकता है। ऐसा धन जिसका दान किया जाए तो घटने की बजाय उत्तरोत्तर बढ़ता जाता है। इसके पास होने पर हमें दुनिया के हर हिस्से में सम्मान मिलता है।

इस सम्बंध में बचपन में याद किया हुआ एक श्लोक दोहराना चाहता हूँ:-

विद्यां ददाति विनयं, विनयाद् याति पात्रताम्। पात्रत्वात् धनमाप्नोति, धनात् धर्मं ततः सुखम्॥

भावार्थ

विद्या से हमे विनय की प्राप्ति होती है , विनय से हमें पात्रता की प्राप्ति होती है , पात्रता से हमे धन की प्राप्ति होती है , धन से धर्म की प्राप्ति होती है और धर्म से सुख की प्राप्ति होती है।

और एक अन्य श्लोक जो इस सम्बंध में माता पिता के रूप में हमारी ज़िम्मेदारी तय करता है:-

माता शत्रुः पिता वैरी येन बालो न पाठितः। न शोभते सभामध्ये हंसमध्ये बको यथा ॥

जो अपने बालक को नहीं पढ़ाते ऐसी माता शत्रु समान और पिता वैरी है; क्यों कि हंसो के बीच बगुले की भाँति, ऐसा मनुष्य सभ्य लोगों की सभा में शोभा नहीं देता।

 

Share
Leave a Comment

Recent News