शिगेरू ने कहा है कि एशिया में भी ‘नाटो’ की तर्ज पर एक सैन्य गठबंधन बनाना होगा। यह इलाके में बाहर से मिल रहे खतरों से निपटने में कारगर होगा। इससे उनका देश जापान अपनी मदद के लिए अमेरिका और किसी अन्य देश के आसरे नहीं रहेगा। शिगेरू तो यहां तक कहते हैं कि इस ‘नाटो’ की रूपरेखा भी उन्होंने रच ली है।
एशिया के लगभग सभी देश कम्युनिस्ट चीन के आक्रामक तेवरों और बेवजह के उकसावों से त्रस्त हैं। चीन अपनी सेना के माध्यम से पड़ोसी देशों की जमीनों को कब्जाने के षड्यंत्र रचता आ रहा है। ताइवान को बिना आधार धमकाता रहा है और उसे एक दिन चीन में मिलाने की धमकियां देता रहा है। लेकिन अब उसकी इन हरकतों का जवाब देने की योजना जापान में तैयार की जा रही है। वहां जल्दी ही प्रधानमंत्री पद पर आने वाले नेता ने इस बात को खुलकर सबके सामने रखा है।
जिन नेता की जापान के अगले प्रधानमंत्री बनने की सबसे ज्यादा संभावना है, वे हैं शिगेरू इशिबा। चीन की हरकतों को बखूबी जानने वाले शिगेरू इसकी काट के लिए काफी दिन से प्रयास कर रहे हैं। उन्होंने ही कहा है कि चीन का मुकाबला सैन्य तरीके से ही हो सकता है इसलिए जापान को इस क्षेत्र पर ज्यादा गौर देना होगा।
शिगेरू ने ही कहा है कि एशिया में भी ‘नाटो’ की तर्ज पर एक सैन्य गठबंधन बनाना होगा। यह इलाके में बाहर से मिल रहे खतरों से निपटने में कारगर होगा। इससे उनका देश जापान अपनी मदद के लिए अमेरिका और किसी अन्य देश के आसरे नहीं रहेगा। शिगेरू तो यहां तक कहते हैं कि इस ‘नाटो’ की रूपरेखा भी उन्होंने रच ली है।
विकास के नए प्रतिमान गढ़ रहे जापान में सितम्बर के आखिरी सप्ताह में चुनाव होना है। अभी वहां लिबरल डेमोक्रेटिक पार्टी की सरकार है। आगामी 27 सितम्बर को यह पार्टी अपना नया नेता चुनने जा रही है। वही नेता अगला प्रधानमंत्री बनेगा। वर्तमान प्रधानमंत्री फुमियो किशिदा के स्थान पर वही नेता आएगा।
प्रधानमंत्री पद के सबसे बड़े दावेदार शिगेरू इशिबा ही हैं जो देश के रक्षा मंत्री रह चुके हैं। जापान में पिछले दिनों एक सर्वे किया गया था जिसमें वहां के कार्पोरेट जगत ने शिगेरू को अपनी पहली पंसद बताया था। उनके बाद क्रम में हैं साने ताकाइची, जो जापान की पहली महिला प्रधानमंत्री बनने की दावेदारी कर रही हैं।
शिगेरू इशिबा के प्रति पश्चिम के अनेक देश भी सकारात्मक नजरिए से देख रहे हैं। वह ऐसे नेता हैं जो अमेरिका तथा यूरोपीय देशों के बीच बने ‘नाटो’ के समर्थक माने जाते हैं और उसी की तर्ज पर ‘एशियाई नाटो’ जैसा एक गठबंधन बनाने की बात कर रहे हैं।
जैसा पहले बताया, कम्युनिस्ट चीन एशिया-प्रशांत क्षेत्र में अपने तीखे तेवरों और बेवजह की दबंगई के लिए कुख्यात है। शिगेरू मानते हैं कि चीन और रूस की सैन्य भागीदारी ने इस इलाके में भी दिक्कत पैदा की है। इस चुनौती को दूर करने के लिए ही वे ‘एशियाई नाटो’ के गठन पर जोर दे रहे हैं।
पिछले दिनों एक प्रेसवार्ता में शिगेरू ने कहा कि आज जरूरी हो गया है कि जापान इलाकाई सैन्य तनाव को दूर करने लिए तैयार रहे। वह कहते हैं कि वे जापान के प्रधानमंत्री बने तो इस दिशा में ठोस काम करेंगे। अपने चुनाव अभियान के लिए उन्होंने इसे एक बड़े मुद्दे के नाते आगे रखा है।
गौर करने की बात है कि जुलाई 2024 में अमेरिका में ‘नाटो’ का सम्मेलन हुआ था जिसमें प्रधानमंत्री किशिदा ने बताया था कि सैन्य गठबंधन नाटो की कोशिश रही है कि तोक्यो में संपर्क कार्यालय खोला जाए। इधर शिगेरू की ताजा बातों ने कुछ ऐसी ही झलक दी है। लेकिन एशियाई नाटो के स्वरूप के बारे में उन्होंने अभी पूरी तस्वीर साफ नहीं की है।
प्रेसवार्ता में उनका कहना था कि अपनी रक्षा के लिए हमें अधिकार है और ये बिना शर्त प्राप्त है। इसे पक्का करने के लिए जरूरी हुआ तो संविधान में बदलाव करना चाहिए। यही होगा जिसके माध्यम से जापान ‘एशियाई नाटो’ का हिस्सा बन सकता है।
वह आगे कहते हैं कि जापान को चाहिए कि सेना से जुड़े विषयों को लेकर अपनी दिशा तय करे। अमेरिका और जापान के गठबंधन के काम के तरीके पर और ज्यादा ध्यान देने की जरूरत है। जैसी संयुक्त कमान अमेरिका तथा दक्षिण कोरिया के बीच है, वैसी कुछ जापान के साथ भी हो।
शिगेरू के ‘नाटो’ वाले विचार में फिलीपींस, दक्षिण कोरिया तथा ऑस्ट्रेलिया सहित अन्य कुछ देश प्रमुख रूप से उभरते दिखे हैं। हो सकता है अमेरिका भी उसमें कोई भूमिका निभाए। शिगेरू की यह बात भी जापानियों को भाती है कि अमेरिका को प्रसन्न रखने के लिए हमें उसका मनचाहा काम करते रहने की जरूरत नहीं है।
सितम्बर के आखिरी सप्ताह में साफ हो जाएगा कि शिगेरू प्रधानमंत्री बनते हैं कि नहीं। अगर वे प्रधानमंत्री बने तो रक्षा क्षेत्र पर विशेष पकड़ होने के चलते उनका पूरा ध्यान एशिया—प्रशांत क्षेत्र की शांति और स्थिरता के सैन्य समाधान पर रहेगा। उनका यह कदम तब चीन को कितना असहज करेगा, यह सवाल समय की गर्त में छुपा है।
टिप्पणियाँ