देहरादून: उत्तराखंड राज्य के लिए हित के लिए अक्सर उपयोगी सुझाव देने वाले पूर्व राज्यपाल और पूर्व मुख्यमंत्री भगत सिंह कोश्यारी ने एक बार फिर अपनी बेबाक राय दी है, उन्होंने कहा है कि राज्य सरकार को पहाड़ों पर भूमि बंदोबस्ती पर कार्य शुरू करना चाहिए।
श्री कोश्यारी ने कहा कि आज पहाड़वासियों को ये नहीं पता कि उनके खाते की जमीन कहां-कहां बंटी हुई है, एक खेत का नंबर यहां है तो दूसरे का नंबर कहीं ऊपर दिखता है ऐसे में पहाड़ के लोगों की अपनी भूमि के प्रति संशय, भ्रम, दुविधा, परेशानियों है। जिसे सरकार को ही दूर करना है और इसे ज्यादा समय लटकाया नहीं जाना चाहिए। श्री कोश्यारी कहते हैं कि उन्होंने राज्य के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी से भी अनुरोध किया है कि उत्तराखंड के मूलनिवासियों को भूमि बंदोबस्ती की बेहद जरूरत है, ये काम कठिन जरूर है, लेकिन अब तकनीक के सहारे इसे समय से पूरा कराया जा सकता है।
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जानकारी के मुताबिक, श्री कोश्यारी जब मुख्यमंत्री थे तब भी वे इस बंदोबस्ती को लागू किए जाने की बात करते थे, उस वक्त राज्य नया-नया बना था और उनके अल्प कार्यकाल बाद राज्य में कांग्रेस की सरकार आ गई और तत्कालीन सीएम एनडी तिवारी ने इसे ठंडे बस्ते में डाल दिया। उल्लेखनीय है कि उत्तराखंड में राज्य बनने के बाद भूमि बंदोबस्ती नहीं हुई, आजाद भारत में केवल 1960 और 1964 के बीच ही पहाड़ी जिलों में भूमि बंदोबस्ती हुई थी। तब ये जिले यूपी के अधीन थे।
उत्तराखंड में भू कानून मूल निवास को लेकर आंदोलन होते रहे हैं, इस पर श्री कोश्यारी कहते हैं वो विषय अपनी जगह है, लेकिन पहले मूल निवासियों को ये तो पता हो कि उनकी भूमि कितनी और कहां-कहां पर है? उन्होंने कहा कि इससे सरकार के पास भी ऐसा भूमि बैंक सामने आ जाएगा। जिसकी जरूरत हमेशा से महसूस की जाती रही है। दरअसल, उत्तराखंड राज्य निर्माण के बाद भी भूमि बंदोबस्त के मामले को हर सरकार ने बेहद जरूरी माना है, लेकिन इस पर पहल नहीं हो पाई है।
उत्तराखंड में ज्यादातर जमीन गोल खातों में कैद है। जब-जब कोई किसान अथवा स्थानीय निवासी को अपनी खतौनी से जमीन की नापजोख करवानी होती है तो राजस्व कर्मी पटवारी उनका आर्थिक शोषण करते हैं,कई बार तो इसके लिए महीनो लगा दिए जाते हैं। प्रदेश के ज्यादातर हिस्सों में जंगल होने के कारण योजनाओं के क्रियान्वयन के लिए जमीन की उपलब्धता एक बड़ी चुनौती रही है। ऐसे में जमीन की असल स्थिति का पता लगाने के लिए भूमि का बंदोबस्त पहली शर्त है, हालांकि यह काम इतना बड़ा है और समय लेने वाला है कि सरकार जरूरत महसूस करते हुए भी इस पर हाथ डालने से बचती रही है।
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जानकारी के मुताबिक, इस बंदोबस्ती कार्य को पूरा करने के लिए कम से कम तीन साल का वक्त चाहिए और यदि ये काम शुरू हुआ तो मैदानी क्षेत्रों में रहने वाले ऊपरी जिलों के स्थानीय निवासी अपनी भूमि की बंदोबस्ती के लिए पहाड़ जरूर लौटेंगे। श्री कोश्यारी के इस बयान पर राजनीतिक गलियारों के साथ-साथ सामाजिक गलियारों में भी खासी चर्चा है, क्योंकि उनके बयानों को हमेशा राज्य हित में माना जाता रहा है। स्मरण रहे है कि श्री कोश्यारी, अपने राजनीतिक जीवन से सन्यास ले चुके है और वे अब सामाजिक मुद्दों पर ही अपनी बेबाक राय रखते हैं।
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