मदरसों में जिस तरह की पढ़ाई होती है उसमें इस्लाम को ही सर्वोच्च बताया जाता है। NCPCR मदरसे को लेकर सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट को बताया कि मदरसों में जिस तरह की शिक्षा की दी जाती है, उसका स्तर व्यापक नहीं है और दीनी तालीम शिक्षा के अधिकार अधिनियम के प्रावधानों का उल्लंघन है।
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रिपोर्ट के मुताबिक, तालिबान उत्तर प्रदेश स्थित दारुल उलुम देवबंद मदरसा की धार्मिक और राजनीतिक विचारधाराओं से प्रभावित है। राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आय़ोग ने शीर्ष अदालत में लिखित में यह बात कही है। सुप्रीम कोर्ट में इलाहाबाद हाई कोर्ट के उस आदेश को चुनौती दी गई थी, जिसमें हाई कोर्ट ने उत्तर प्रदेश मदरसा शिक्षा बोर्ड अधिनियम-2004 को असंवैधानिक घोषित कर दिया गया था। कोर्ट ने कहा था कि मदरसे संविधान के अनुच्छेद 14 का उल्लंघन कर रहा है।
दरअसल, 5 अप्रैल को सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पीठ ने हाई कोर्ट के आदेश पर रोक लगा दिया था। आयोग ने अपनी दलील में कहा था कि मदरसा उचित शिक्षा प्राप्त करने के लिए अनुपयुक्त जगह है। आयोग कहता है कि मदरसों में न केवल शिक्षा के लिए एक असंतोषजनक और अपर्याप्त मॉडल प्रस्तुत किया जाता है, बल्कि ये मनमानी तरीके से पूरी तरह से आरटीआई एक्ट-2009 की धारा 29 के तहत प्रक्रिया का उल्लंघन है।
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एनसीपीआर का कहना है कि अल्पसंख्यक दर्जे वाले इन संस्थानों द्वारा बच्चों को शिक्षा का अधिकार का विस्तार करने से इनकार करना न केवल बच्चों को शिक्षा के लिए उनके सबसे महत्वपूर्ण मौलिक अधिकारों से वंचित रखता है। गौरतलब है कि मदरसों को शिक्षा के अधिकार अधिनियम-2009 के दायरे से छूट मिली हुई है।
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